
महराजगंज : जुलाई माह 2025 में पिछले साल 2024 की अपेक्षा 363 एमएम कम बारिश हुई है। इससे महराजगंज में सूखे जैसे हालात बन गए हैं। बारिश न होने से खेतों में दरार पड़ गई है। खेतों में सूखते धान के पौधों को देखकर किसान कराह उठे हैं। देश के पीएम व प्रदेश के सीएम सहित हर कोई कहता है कि अन्नदाता महान होते हैं। इनके जरिए ही हम सभी को दो जून की रोटी नसीब होती है। लेकिन सूखे ने उनके मुस्कराते चेहरों पर मातम जैसी लकीरें खींच दी हैं। मानो किस्मत उनसे रुठ गई हो। इन्द्रदेव ने भी उनसे मुंह मोड़ लिया है।
यहां बता दें कि कभी उनके आंगन में किलकारियां गूंजती थीं। खेती के बलबूते जीवन के तमाम ताने-बाने बुनते थे। लेकिन अब धान की खेती को लेकर न तो उन्हें घर में चैन मिल रहा है और न ही बाहर से कोई मदद। चेहरे उदास हैं। मन में आगे की चिंता खाए जा रही है। उनकी खेती एक-एक बूंद पानी के लिए तरस रही है। आखिर कौन सुनेगा उनकी बात? नहर के सटे उनका खेत है, पर नहर की एक बूंद भी उनके खेतों तक नहीं पहुंच पा रही है। गुलों का अस्तित्व खत्म हो चला है। ग्राम प्रधानों ने भी गुलों की मरम्मत कराने में रुचि नहीं दिखाई।
खेतों में दरारें पड़ गई हैं। पौधे सूखकर पुआल जैसे बनते जा रहे हैं। सावन में बारिश की कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। पंपिंग सेट के पानी से धान के पौधों को जिलाए रखने में उनकी हिम्मत टूट रही है। नहर की सतह नीचे है। खेत ऊपर होने से नहर का पानी खेतों में पहुंचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। इससे नहर से थोड़ी दूर स्थित खेतों को एक बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है। इससे धान के खेतों में सूखे के हालात बनने शुरू हो गए हैं। यदि तत्काल बारिश नहीं हुई, तो 1.67 लाख हेक्टेयर में लहलहाती धान की फसल का उत्पादन प्रभावित होने की संभावना बढ़ गई है।
अबकी जुलाई में 363 एमएम कम बरसा पानी
पिछले साल 2024 की अपेक्षा इस वर्ष जुलाई में 363 एमएम कम पानी बरसा है। बाढ़ कंट्रोल रूम के अनुसार, पिछले साल जून में जहां 73 एमएम और जुलाई में 426 एमएम बारिश हुई थी, वहीं इस साल जून में 158 एमएम और जुलाई के 22 दिनों में मात्र 63 एमएम बारिश होने की खबर है। जबकि जुलाई माह 2003 में 395 एमएम बारिश हुई थी। वहीं 2004 में 324 एमएम, 2005 में 294 एमएम, 2006 में 207 एमएम, 2008 में 317 एमएम, 2009 में 260 एमएम, 2010 में 320 एमएम, 2011 में 314 एमएम, 2012 में 194 एमएम बारिश का रिकॉर्ड है। जबकि 2014 में 61 एमएम और 2015 में 122 एमएम बारिश हुई थी। वर्ष 2016 में 354 एमएम, 2017 में 271 एमएम, 2018 में 172 एमएम, 2019 में 277 एमएम, 2020 में 481 एमएम, 2021 में 330 एमएम, 2022 में 57 एमएम और 2023 के जुलाई में 139 एमएम बारिश हुई है।
वर्ष 2007 में हुई थी सबसे अधिक 527 एमएम बारिश
बाढ़ कंट्रोल रूम के 19 वर्षों के रिकॉर्ड के अनुसार, सबसे अधिक वर्षा वर्ष 2007 में 527 एमएम दर्ज की गई थी। वहीं 2020 में 481 एमएम और 2003 में 395 एमएम बारिश हुई थी। 2024 के जुलाई में 426 एमएम बारिश दर्ज की गई थी, जबकि दैवीय आपदा के कारण सबसे कम वर्षा 2014 में मात्र 61 एमएम और 2015 में 122 एमएम दर्ज की गई थी।
बाल्मीकि नगर बैराज पर भी थम गई रफ्तार
अबकी जुलाई में बाल्मीकि नगर बैराज पर गंडक नदी में पानी की रफ्तार में कमी आई है। बाढ़ कंट्रोल रूम के अनुसार, जहां 2024 के जुलाई में 4,40,750 क्यूसेक जलस्तर रिकॉर्ड किया गया था, वहीं 2025 के जुलाई के 22 दिनों में मात्र 1,09,000 क्यूसेक पानी डिस्चार्ज होने की खबर है।
सूखे की हालात से निपटने के लिए किसान धान की फसल का बीमा कराएं। बीमा कराने के लिए 31 जुलाई अंतिम तिथि निर्धारित की गई है। वैसे मौसम का रुख बता रहा है कि जल्द ही बारिश होने की संभावना है।
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