
Maharajganj : क्षेत्र के ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण देवदह बनरसिहा कला स्थित प्राचीन बौद्ध स्तूप पर रविवार को अंतरराष्ट्रीय भिक्खुणी दिवस के अवसर पर विशेष पूजा-अर्चना और वंदना कार्यक्रम का आयोजन भव्य रूप से किया गया, जिसमें पूरा परिसर “बुद्धं शरणं गच्छामि” से गूंज उठा। इस मौके पर बौद्ध भिक्षुओं और धर्मावलंबियों ने स्तूप की परिक्रमा कर विशेष पूजा-वंदना की।
कार्यक्रम का आयोजन धम्म प्रचारक सेवक संघ, तथागत परमिता संघ महाराष्ट्र एवं देवदह रामग्राम बौद्ध विकास समिति नौतनवा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। इस आयोजन का उद्देश्य बौद्ध धर्म में भिक्खुणियों की भूमिका को सम्मान देना और महात्मा बुद्ध द्वारा दी गई शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करना था। पूजा कार्यक्रम की शुरुआत प्राचीन बौद्ध स्तूप की परिक्रमा से हुई। इसके बाद बौद्ध भिक्षुओं और उपस्थित धर्मावलंबियों द्वारा स्तूप की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की गई। त्रिशरण, पंचशील एवं अन्य बौद्ध संस्कारों के साथ वातावरण पूरी तरह से आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया।
इस अवसर पर समिति के अध्यक्ष जितेन्द्र राव ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भाद्रपद पूर्णिमा का यह दिन बौद्ध धर्म के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज ही के दिन वैशाली में महात्मा बुद्ध ने अपनी मौसी महाप्रजापति गौतमी को पहली बार प्रव्रज्या देकर भिक्खुणी संघ की स्थापना की थी। यह दिन महिलाओं को धार्मिक स्वतंत्रता और समानता देने का प्रतीक बन गया है।
इस अवसर पर भंते धम्मपाल, भंते महिपाल, महेन्द्र जायसवाल, लक्ष्मीचंद पटेल, संतराम, रोहित गौतम, शिवभुजा पांडेय, विजयलक्ष्मी गौतम, इंद्रेश, प्रिमाशु राव, अंजू गौतम, सावित्री, श्रेया गौतम सहित कई श्रद्धालु व बुद्ध अनुयायी उपस्थित रहे।
इस आयोजन ने स्थानीय स्तर पर बौद्ध धरोहरों के संरक्षण और प्रचार की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। उपस्थित श्रद्धालुओं ने देवदह स्तूप जैसे ऐतिहासिक स्थलों को पर्यटन और अध्यात्म के केंद्र के रूप में विकसित करने की अपील की।