Maharajganj : बाल दिवस पर बड़ा सवाल, बच्चों का बचपन आखिर कहाँ खो गया?

Kolhui, Maharajganj : 14 नवंबर आया और बाल दिवस मनाया गया। भाषण हुए, मिठाइयाँ बंटी, बच्चों को फूल दिए गए। लेकिन सवाल अब भी वही है क्या बच्चों का बचपन बचा है?
गली-गली, चौराहों पर, होटल-ढाबों में झूठे बर्तन माँजते मासूम हाथ। ईंट-भट्ठों पर पसीना बहाते नौनिहाल। चाय की दुकानों पर कोल्हू के बैल की तरह पिसते बच्चे।
कौन नहीं देखता? सब देखते हैं। पर कोई बोलता नहीं।

संविधान कहता है कि 14 साल से कम उम्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मिलेगी। लेकिन संविधान किताबों में है, ज़मीन पर नहीं। सात दशक बीत गए, पर बच्चे आज भी किताब की जगह ईंट ढो रहे हैं।
जरा देर से सामान पहुँचाया तो गाली। कभी थप्पड़। कभी चपत। कभी-कभी तो शारीरिक शोषण तक सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

और यह सब कौन करता है?
वही लोग, जिनके पास ज़िम्मेदारी है बड़े अफसर, व्यापारी, उद्योगपति, अमीर घराने।
अपने बच्चों के लिए सारी सुख-सुविधाएँ, और दूसरों के बच्चों के लिए मजदूरी।

कहीं माँ मर गई।
कहीं पिता ने अनदेखी कर दी।
और बच्चा पहुँच गया होटल-ढाबे में।
संस्थाएँ हैं, योजनाएँ हैं लेकिन असर कहाँ है?
कागज़ पर सब कुछ है, ज़मीन पर कुछ नहीं।

समाज क्यों नहीं सोचता?
क्यों नहीं देखता उन मासूम चेहरों की मायूस मुस्कान?
क्यों नहीं सुनता उनकी आह?
क्यों नहीं पहचानता अपने ही बच्चों की छवि उनमें?

बाल दिवस पर भाषण बहुत हैं, हकीकत कम।
बच्चों का बचपन पेट की आग में जल रहा है।
और हम सब चुप हैं।

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