
सोनौली, महराजगंज। नेपाल के पाल्पा ज़िले में स्थित सत्यवती देवी मंदिर में इस बार आस्था और परंपरा का अद्भुत संगम देखने को मिला। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित धार्मिक मेले में करीब तीन लाख श्रद्धालु शामिल हुए, जिन्होंने देवी सत्यवती बजै से ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर वरदान मांगे।
स्थानीय मान्यता के अनुसार, सत्यवती बजै कान से सुन नहीं सकतीं, इसलिए भक्त अपनी मनोकामनाएँ ऊँची आवाज़ में व्यक्त करते हैं। मंदिर परिसर में पूरी रात “सत्यवती माता की जय” के जयकारे गूंजते रहे, और आस्था से भरी भीड़ ने तालाब की परिक्रमा करते हुए देवी से मनचाहा वर माँगा।

यह प्राचीन मेला कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी से पूर्णिमा तक चलता है। भक्तजन इस अवधि में सत्यवती ताल के किनारे बाँस का लिंगो गाड़कर पूजा करते हैं और पूर्णिमा की सुबह उसे निकालकर घर ले जाते हैं । इसे शुभता और सफलता का प्रतीक माना जाता है।
मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष दान बहादुर गाहा ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में बताया कि इस बार केवल पाल्पा ही नहीं, बल्कि गुल्मी, अर्घाखाँची, कपिलवस्तु, नवलपरासी, कास्की, चितवन, दाङ, पर्वत, बागलुङ, म्याग्दी समेत भारत के महाराजगंज, कुशीनगर, गोरखपुर, गोंडा, बस्ती और लखनऊ से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे।
जनविश्वास है कि सत्यवती देवी अपने भक्तों की हर सच्ची मनोकामना पूरी करती हैं। इस अवसर पर भक्त राँगा, मुर्गा, बकरा और बतख की बलि अर्पित कर उन्हें जंगल में छोड़ देते हैं। यह देवी के प्रति भक्ति और आस्था का प्रतीक माना जाता है।पूरे पाल्पा क्षेत्र में इन दिनों श्रद्धा और उल्लास का माहौल है। मंदिर मार्गों पर भक्तों की भीड़ उमड़ रही है, ताल के किनारे दीप जल रहे हैं और पहाड़ों में गूंज रही है आस्था की पुकार- “सत्यवती बजै मेरी मनोकामना पूरी करो”।
एक महिला श्रद्धालु कदम शर्मा और उनके परिवार के लोगों ने दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत के दौरान बताया कि हम लोग पिछले पांच साल से पूजा अर्चना के लिए आते हैं और जो भी सच्चे मन से मांगते हैं सत्यवती माता पूरा करती हैं।










