12 करोड़ की मशीनें…फिर भी इलाज नहीं, सरकारी अस्पताल बना कबाड़घर!

बरेली। कहने को तो ये 300 बेड का चमचमाता सरकारी अस्पताल है, लेकिन हकीकत में ये अस्पताल नहीं, धूल खा रही मशीनों की कब्रगाह बन गया है। डॉक्टर नहीं, स्टाफ नहीं, इलाज की बात तो छोड़िए… लेकिन खरीद हो गई सीधे 12 करोड़ की! और अब इस पूरे खेल की परतें खोलने जा रहा है (कैग)।

मशीनें रखीं, मरीज नहीं — जांच बंद, फाइलें गायब!
बिना स्टाफ के अस्पताल में आईसीयू बेड, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, डीप फ्रीजर, बाईपैप मशीन जैसी महंगी मशीनें खरीद ली गईं। दो साल से ये सब स्टोर में बंद हैं, जैसे किसी कबाड़खाने में हों। ऑडिट टीम जब पहुंची तो खरीद से जुड़े रजिस्टर तक नहीं मिले। यानी दस्तावेज भी गायब!

2015 में ही खरीद डाली, बिल्डिंग का ट्रांसफर भी नहीं हुआ था!
खुलासा ये भी हुआ है कि अस्पताल का भवन 2015-16 में बना ही नहीं था, लेकिन उसी वक्त लगभग 4.75 करोड़ रुपये के उपकरण खरीद लिए गए। कोरोना में जब इन्हें खोजने की कोशिश हुई तो आधी मशीनें लापता थीं!

ओपीडी चालू, बाकी सब ठप!
फिलहाल अस्पताल के एक हिस्से में ओपीडी चल रही है। मरीज फिजिशियन, नेत्र रोग, दंत रोग जैसे इलाज के लिए आते हैं, लेकिन CBC जांच, डिजिटल एक्सरे, एनालाइजर जैसी मशीनें या तो खराब हैं या धूल में दब चुकी हैं। रीजेंट तक नहीं मिल रहा, तो जांच क्या खाक होगी?

कैग ने मांगा हिसाब-किताब — अब फंसे अफसर!
भारतीय लेखा परीक्षा विभाग (CAG) ने सीएमओ से रिपोर्ट तलब की है। निर्माण लागत, शासनादेश, 4.75 करोड़ व 8.26 करोड़ की दो चरणों में की गई खरीद, सभी की जानकारी मांगी गई है। सूत्रों की मानें तों मामला अब मार्च 2023 की CAG रिपोर्ट में दर्ज किया गया है

वर्जन….
सीएमओ डॉक्टर विश्राम सिंह के मुताबिक मामले की जानकारी लेकर जांच की जा रही है।

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