मैनपुरी। जिला में मां शीतलादेवी मंदिर का विशेष महत्व है। यहां पर प्रतिवर्ष चैत्र और अश्विन मास के नवरात्र पर तो मां शीतला देवी के दर्शनों के लिए सुबह से लेकर देर रात्रि तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। चैत्र मास के नवरात्र पर यहां श्री देवी मेला एवं ग्राम सुधार प्रदर्शनी का भी आयोजन होता है।
मां शीतला मंदिर के दर्शन करने दूर दराज से आते है श्रद्धालु
लेकिन कोरोनाकाल की बजह से देवी मेला प्रदर्शनी का मामला दो साल से अटका हुआ है। इसके अलावा पूरे वर्ष मां शीतलादेवी मंदिर पर जनपद ही नहीं दूरदराज से श्रद्धालु आकर मां शीतलादेवी की पूजा करते हैं। मान्यता है कि यहां पूजन करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है।
शहर के कुरावली रोड स्थित शहर से करीब तीन किमी दूर स्थित मां शीतला देवी का मंदिर सिद्धपीठ माना जाता है। मैनपुरी राज्य का वंश वृक्ष वर्ष 1173 में महाराजा देवब्रह्म से प्रारंभ हुआ। इसी क्रम में 11वें महाराज जगतमन देवजू मैनपुरी के सिंहासन पर वर्ष 1478 में बैठे थे। वह कड़ादेवी स्थित शक्तिपीठ के अनन्य उपासक थे। एक बार महाराज चैत्र मास नवरात्र में जब कड़ा मानिकपुर मां के दर्शन को गए तो मां ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया कि तेरी सेवा और भक्ति से वह प्रसन्न हैं। इसलिए उनकी स्थापना वे मैनपुरी राज्य में कराएं।
महाराजा देवब्रह्म ने कराई थी प्राण प्रतिष्ठा
मैनपुरी आकर महाराज ने मां की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए संकल्प लिया। उन्होंने मैनपुरी-कुरावली रोड पर मां आद्या शक्ति की मूर्ति को प्रतिष्ठापित करने के लिए भव्य मंदिर का निर्माण कराया। इसमें कड़ा स्थित आद्या शक्ति की ऐसी कलात्मक प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठित कराई जो तत्कालीन मूर्तिकला, शिल्पकला, वास्तुकला और पुरातात्विक दृष्टिकोण से मूल्यवती कृति रही है।
पुराने लोग बताते हैं कि सोलहवीं शताब्दी में जनपद एवं आसपास के स्थलों में बड़ी चेचक और खसरे का गंभीर प्रकोप हुआ तो मां आद्या शक्ति की ख्याति के कारण जनसमुदाय ने देवी मां का जप और आराधना की। यह रोग उनकी भस्म और असीम कृपा से दूर हो गया। चूंकि इस रोग में गर्मी की अधिकता रहती है अतः उससे शीतलता प्रदान करने वाली शक्ति का नाम शीतला देवी के रूप में ख्याति प्राप्त हो गया। यहां नेजा चढ़ाने की भी पुरानी परंपरा है।
चोर नहीं रख सके थे मां का विग्रह
लगभग 80 वर्ष पूर्व शीतला मां की प्रतिमा अत्यधित मूल्यवान होने के कारण चुरा ली गई थी। मान्यता है कि उनके प्रभाव और तेज के कारण ही चोर उसे रखने में समर्थ नहीं हो सके। परिणाम स्वरूप चोरों ने मां शीतला के विग्रह को देवी गेट स्थित वट वृक्ष के नीचे रख दिया। जिसे भक्तों ने पुनः मंदिर में स्थापित कराया।