Lucknow : डिलीवरी के बाद पेट में छोड़ा कॉटन , परिजन ने लगाया महिला डॉक्टर पर आरोप

Lucknow : राजधानी के गोसाईगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में प्रसव के दौरान हुई चिकित्सकीय लापरवाही का सनसनीखेज मामला सामने आया है। एक गर्भवती महिला के सिजेरियन ऑपरेशन के बाद डॉक्टर ने गॉज पीस (कपास की पट्टी) पेट के अंदर ही छोड़ दी, जो करीब दो महीने बाद 13 नवंबर को पेशाब के दौरान यूरीनरी ट्रैक्ट से बाहर निकली। पीड़िता सोनिया 25 को लगातार दर्द और इंफेक्शन का सामना करना पड़ा, जबकि अस्पताल प्रशासन ने इलाज से इनकार कर दिया।

परिजनों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से शिकायत कर दोषी महिला चिकित्सक डॉ. कीर्ति पांडेय के खिलाफ सख्त कार्रवाई और उच्चस्तरीय जांच की मांग की है। स्वास्थ्य विभाग ने मामले की जांच शुरू कर दी है, और सीएचसी अधीक्षक को स्पष्टीकरण जारी किया गया है।
मामला गोसाईगंज थाना क्षेत्र के बेगरियामऊ गांव का है। पीड़िता के पति रत्नेश कुमार (28), जो एक दिहाड़ी मजदूर हैं, ने बताया कि उनकी पत्नी सोनिया 22 सितंबर 2025 को प्रसव पीड़ा के चलते गोसाईगंज सीएचसी पहुंचीं। वहां तैनात महिला चिकित्सक डॉ. कीर्ति पांडेय ने इमरजेंसी सिजेरियन ऑपरेशन किया, और सोनिया ने एक स्वस्थ बेटी को जन्म दिया।

ऑपरेशन सफल रहा, लेकिन कुछ घंटों बाद सोनिया को तेज दर्द, उल्टी और बुखार होने लगा। डॉक्टरों ने इसे सामान्य पोस्ट-ऑपरेटिव रिएक्शन बताकर अहिमामऊ स्थित मातृ एवं शिशु कल्याण अस्पताल रेफर कर दिया।
रत्नेश ने आरोप लगाया, “ऑपरेशन के दौरान डॉ. कीर्ति ने गॉज पीस पेट के अंदर ही छोड़ दिया और टांके लगा दिए। रेफरल के बाद अहिमामऊ अस्पताल में चार-पांच दिन भर्ती रहने के बाद छुट्टी मिली, लेकिन दर्द कम नहीं हुआ। एक हफ्ते बाद फिर सीएचसी ले गया, तो डॉक्टरों ने इलाज से मना कर दिया और कहा – ‘कहीं और दिखाओ, हम नहीं देखेंगे।’” परिवार ने निजी क्लिनिक में अल्ट्रासाउंड कराया, लेकिन कोई स्पष्ट रिपोर्ट नहीं मिली।

दो महीने का दर्दनाक इंतजार: पट्टी यूरीन के रास्ते निकली
13 नवंबर की रात सोनिया को फिर तेज दर्द हुआ। पेशाब करने गईं तो उन्हें यूरीनरी ट्रैक्ट में कुछ फंसा हुआ महसूस हुआ। परिवार की एक महिला सदस्य ने सावधानी से खींचा, तो करीब 15 सेमी लंबी गॉज पट्टी बाहर निकली, जो खून और मवाद से सनी हुई थी। रत्नेश ने बताया, “पट्टी देखकर हमारा दिल बैठ गया। दो महीने से मेरी पत्नी इसी के कारण इंफेक्शन और दर्द झेल रही थी। अगर समय पर निकलती, तो जान को खतरा हो सकता था।” सोनिया अब भी कमजोर हैं और लगातार दर्द की शिकायत कर रही हैं। परिवार ने पट्टी को सबूत के तौर पर सुरक्षित रखा है।

सीएचसी का बचाव: “हमारी गलती नहीं, निजी अस्पताल में भी गई थी”
गोसाईगंज सीएचसी अधीक्षक डॉ. सुरेश चंद्र पांडेय ने मामले से पल्ला झाड़ते हुए कहा, “महिला के पेशाब से जो पैड निकला, वह हमारे अस्पताल में नहीं डाला गया। सिजेरियन के बाद हमने स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल फॉलो किया। रेफरल के बाद वह निजी अस्पताल भी गई थी। हमने जांच समिति गठित कर दी है, रिपोर्ट आने पर कार्रवाई होगी।” हालांकि, परिवार का दावा है कि सोनिया केवल सरकारी अस्पतालों में ही भर्ती हुईं, और निजी क्लिनिक सिर्फ चेकअप के लिए गई थीं।

स्वास्थ्य विभाग का एक्शन: जांच समिति गठित, डॉक्टर पर सस्पेंशन की तलवार
मामले की गंभीरता को देखते हुए लखनऊ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. मनोज अग्रवाल ने तत्काल संज्ञान लिया। उन्होंने कहा, “यह चिकित्सकीय लापरवाही का गंभीर मामला है। तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की गई है, जिसमें अपर सीएमओ, सर्जन और गायनेकोलॉजिस्ट शामिल हैं। 72 घंटे में रिपोर्ट आएगी। अगर डॉ. कीर्ति पांडेय दोषी पाई गईं, तो सस्पेंशन और एफआईआर की कार्रवाई होगी।” स्वास्थ्य मंत्री ब्रजेश पाठक ने भी ट्वीट कर कहा, “महिला की सुरक्षा और चिकित्सा गुणवत्ता हमारी प्राथमिकता है। दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।”

कानूनी पहलू: मेडिकल नेग्लिजेंसी के तहत मुकदमा
परिवार ने मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई है, साथ ही गोसाईगंज थाने में एफआईआर की मांग की है। वकील और मेडिकल नेग्लिजेंसी विशेषज्ञ एडवोकेट राकेश पांडेय ने कहा, “यह आईपीसी की धारा 336 (जीवन को खतरे में डालने वाला कार्य) और 338 (गंभीर चोट पहुंचाने) के तहत अपराध है। सुप्रीम कोर्ट के जेकब मैथ्यू केस (2005) के अनुसार, डॉक्टर को स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल फॉलो करना अनिवार्य है। गॉज छोड़ना ‘क्रिमिनल नेग्लिजेंसी’ की श्रेणी में आता है।” परिवार मुआवजे और मुफ्त इलाज की भी मांग कर रहा है।

व्यापक समस्या: उत्तर प्रदेश में मेडिकल नेग्लिजेंसी के बढ़ते मामले
यह पहला मामला नहीं है। पिछले साल लखनऊ के ही बलरामपुर अस्पताल में एक मरीज के पेट में कैंची छूट गई थी, जबकि कानपुर में गॉज छोड़ने से एक महिला की मौत हो गई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में स्टाफ की कमी, ओवरलोड और सुपरविजन की कमी ऐसी घटनाओं को बढ़ावा दे रही है। उत्तर प्रदेश में 2024-25 में 127 मेडिकल नेग्लिजेंसी केस दर्ज हुए, जिनमें 42 सर्जरी से संबंधित थे।

सोनिया की बेटी अब दो महीने की हो चुकी है, लेकिन मां का दर्द अभी खत्म नहीं हुआ। परिवार को उम्मीद है कि जांच से न्याय मिलेगा, और ऐसी लापरवाही दोबारा न हो। स्वास्थ्य विभाग ने सभी सीएचसी को सर्जरी प्रोटोकॉल की दोबारा ट्रेनिंग देने के आदेश जारी किए हैं। यह मामला सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।

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