लोकसभा चर्चा : मनीष तिवारी बोले…ईवीएम का सोर्स कोड किसके पास है, चुनाव आयोग या कंपनियां जो मशीनें बनाती हैं?

  • चुनाव आयोग के पास कानूनी तौर पर एसआईआर करने का कोई अधिकार नहीं
  • 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को मतदान का अधिकार देकर देश में सबसे बड़ा चुनाव सुधार राजीव गांधी की सरकार ने किया

नई दिल्ली। लोकसभा में चुनाव सुधार पर चर्चा शुरू हुई। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा कि इलेक्शन कमीशन के पास एसआईआर कराने का कानूनी अधिकार नहीं है।


उन्होंने कहा कि चुनाव से पहले सरकार जो पैसे भेजती है, इसे बंद किए जाना चाहिए, ये लोकतंत्र के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि EC अगर SIR सही से कर रहा है तो मशीन रिडेबल लिस्ट क्यों नहीं दी जा रही है। मनीष तिवारी ने कहा कि मैं एक और चीज कहता हूं, अगर आप एसआईआर कर रहे हैं तो आप मशीन की लिस्ट क्यों नहीं दे रहे हैं, ये कैसा खेला हो रहा है।


कांग्रेस सांसद ने कहा कि खेद के साथ कह रहा हूं, देश के कई राज्यों में एसआईआर हो रहा है। लेकिन चुनाव आयोग के पास कानूनी तौर पर एसआईआर करने का कोई अधिकार नहीं है। चुनाव आयोग कहता है कि उन्हें एसआईआर कराने का अधिकार सेक्शन 21 से मिलता है। मनीष तिवारी ने पूरा सेक्शन पढ़ा और कहा कि ना संविधान में, ना कानून में एसआईआर का प्रावधान है। ये बस एक हथियार चुनाव आयोग को दिया गया था, कि अगर किसी क्षेत्र में वोटर लिस्ट में कोई गड़बड़ी है, तो उसे ठीक करने के लिए लिखित में कारण बताकर ही एसआईआर कर सकते हैं। एसआईआर करना चाहते हैं, तो आपको जो खामियां लग रही हैं, उनको ठीक करके ही आप उस क्षेत्र के लिए एसआईआर कर सकते हैं। सरकार को यह सदन पटल पर रखना चाहिए कि कौन-कौन से निर्वाचन क्षेत्र में कौन-कौन सी खामियां उनको मिलीं और क्यों एसआईआर की जरूरत पड़ी। हर क्षेत्र में एसआईआर का कारण सदन पटल पर रखना चाहिए।

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने लोकसभा में ईवीएम की विश्वसनीयता और चुनावी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जनता के मन में यह शंका बनी हुई है कि क्या ईवीएम में छेड़छाड़ संभव है। इस अविश्वास को दूर करने के दो ही रास्ते हैं या तो 100% वीवीपैट लागू किए जाएं, या फिर चुनाव पूरी तरह से पेपर बैलट पर लौटे।


उन्होंने सरकार से यह भी स्पष्ट करने की मांग की कि ईवीएम का सोर्स कोड किसके पास है, चुनाव आयोग या वे कंपनियां जो मशीनें बनाती हैं? तिवारी के मुताबिक, यह जानकारी लोकतंत्र की पारदर्शिता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। मनीष तिवारी ने चुनाव के दौरान लोगों के खातों में पैसे भेजने की प्रथा पर भी सवाल खड़ा किया। उनका कहना था कि यह केवल लोकतंत्र ही नहीं, बल्कि भारत सरकार के राजस्व के साथ खिलवाड़ है। उन्होंने केंद्र और राज्यों की बढ़ती देनदारियों का हवाला देते हुए कहा कि संसद को इस पर एक सीमा तय करनी चाहिए।


तिवारी ने सुझाव दिया कि संविधान में एक प्रावधान जोड़ा जाए, जिस भी सरकार का कर्ज जीडीपी के 20% से ऊपर हो, वह किसी भी तरह का कैश ट्रांसफर नहीं कर सके। उनके अनुसार, यदि यह नहीं हुआ तो राज्य सरकारें कभी भी वित्तीय अनुशासन नहीं अपनाएंगी और लगातार कर्ज में डूबती जाएंगी। अपनी बात खत्म करते हुए उन्होंने कहा, सरकारें आती-जाती रहती हैं, हम सब भी अस्थायी हैं। सवाल यह है कि हम देश को किस दिशा में ले जा रहे हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए कैसा भारत छोड़कर जाना चाहते हैं उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की कमेटी में दो लोग सरकार से, दो लोग विपक्ष से रहने चाहिए और एक सीजेआई को रखना चाहिए। ऐसा होगा तो ठीक से खेला होबे।
मनीष तिवारी ने चुनाव सुधार पर डिबेट की शुरुआत करते हुए कहा कि लोकतंत्र में दो सबसे बड़े भागीदार हैं। 98 करोड़ मतदाता और राजनीतिक दल। एक न्यूट्रल अंपायर की जरूरत महसूस हुई और चुनाव आयोग का गठन हुआ। उन्होंने कहा कि इस देश में सबसे बड़ा चुनाव सुधार राजीव गांधी की सरकार ने किया पिछले 78 साल में, जब उन्होंने 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को मतदान का अधिकार दिया। मनीष तिवारी ने कहा कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर आज सवाल उठ रहे हैं। चुनाव सुधार की जो सबसे पहली जरूरत है, वह 2023 में बने कानून में सुधार की है।

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