
New Delhi : त्योहारों की धूम में एक ऐसी खुशखबरी जो देशभर के जेलों में बंद हजारों गरीब विचाराधीन कैदियों के चेहरों पर मुस्कान ला सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 19 अक्टूबर को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के माध्यम से राज्य सरकारों द्वारा गरीब कैदियों की जमानत राशि भुगतान के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) में महत्वपूर्ण संशोधन किया है। यह कदम ‘गरीब कैदियों को सहायता योजना’ को और प्रभावी बनाने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है, जिससे जेलों में भीड़भाड़ कम करने और न्याय की गति तेज करने में मदद मिलेगी। न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी तथा न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा के सुझावों को स्वीकार करते हुए यह आदेश जारी किया।
यह संशोधन पिछले साल 13 फरवरी को जारी मूल SOP पर आधारित है, जो सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों जैसे ‘सतेन्द्र कुमार अंतिल बनाम सीबीआई’ (2022) से प्रेरित है। उस फैसले में कोर्ट ने ‘जमानत जेल से बेहतर’ के सिद्धांत को मजबूत करते हुए अनावश्यक गिरफ्तारी और रिमांड रोकने के निर्देश दिए थे। अब, इस नई SOP से देशभर के जिलों में गठित होने वाली जिला स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति (DLEC) के माध्यम से प्रक्रिया को और पारदर्शी व त्वरित बनाया गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, भारत की जेलों में 70% से अधिक कैदी विचाराधीन हैं, जिनमें से अधिकांश गरीबी के कारण जमानत न भर पाने से कैद में सड़ रहे हैं। यह संशोधन ऐसे कैदियों को तत्काल राहत प्रदान करेगा।
नई SOP के प्रमुख संशोधन: प्रक्रिया को तेज और सरल बनाया
शीर्ष अदालत ने SOP में कई व्यावहारिक बदलाव किए हैं, ताकि कागजी कार्रवाई में देरी न हो और कैदी जल्द रिहा हो सकें। मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- अधिकार प्राप्त समिति का गठन: प्रत्येक जिले में जिलाधिकारी (या उनके नामित प्रतिनिधि), DLSA के सचिव, पुलिस अधीक्षक, संबंधित जेल के अधीक्षक/उपाधीक्षक तथा जेल प्रभारी न्यायाधीश की एक समिति बनेगी। DLSA सचिव इस समिति के संयोजक होंगे, जो बैठकें आयोजित करेंगे।
- समिति की बैठकें: समिति DLSA द्वारा सुझाए गए मामलों पर हर महीने के पहले और तीसरे सोमवार को बैठक करेगी (अगर अवकाश हो तो अगले कार्यदिवस पर)। यह सुनिश्चित करेगा कि मामलों की समीक्षा नियमित हो।
- रिहाई में देरी पर तत्काल कार्रवाई: अगर जमानत आदेश के 7 दिनों के भीतर कैदी जेल से रिहा न हो, तो जेल अधिकारी DLSA सचिव को तुरंत सूचित करेंगे। सचिव कैदी के बचत खाते की जांच करेंगे और यदि धनराशि न हो तो 5 दिनों के भीतर DLSA को अनुरोध भेजेंगे।
- धनराशि जारी करने की समयसीमा: ‘इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ (ICJS) में एकीकरण लंबित रहने तक, DLEC की रिपोर्ट मिलने के 5 दिनों के भीतर DLSA की सिफारिश पर जमानत राशि जारी की जाएगी। 8 अक्टूबर के आदेश के अनुसार, यह सूचना ईमेल से प्राधिकरण और जेल अधिकारियों को एक साथ दी जाएगी। यदि 5 दिनों में राशि जमा न हो, तो 6वें दिन जेल अधिकारी DLSA को सूचित करेंगे।
ये बदलाव ICJS सिस्टम के पूर्ण कार्यान्वयन तक की अस्थायी व्यवस्था हैं, जो डिजिटल एकीकरण से प्रक्रिया को और तेज बनाएंगे।
‘गरीब कैदियों को सहायता योजना’: अधिकतम 50,000 रुपये तक की मदद
सुप्रीम कोर्ट ने ‘गरीब कैदियों को सहायता योजना’ (Support to Poor Prisoners Scheme) के तहत वित्तीय सहायता को सरल बनाया है। यदि DLEC सिफारिश करती है कि कैदी इस योजना के पात्र हैं, तो प्रति कैदी अधिकतम 50,000 रुपये तक की सहायता प्रदान की जा सकती है। यह राशि अदालत में सावधि जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) या अन्य निर्धारित माध्यम से 5 दिनों के भीतर उपलब्ध कराई जाएगी।
यदि जमानत राशि 50,000 रुपये से अधिक हो, तो समिति अपने विवेक से 1 लाख रुपये तक की उच्च राशि जारी कर सकती है। यदि समिति इनकार करती है, तो वह 2 दिनों के भीतर ईमेल से DLSA सचिव को कारण बताएगी, ताकि सचिव अदालत या हाईकोर्ट में जमानत राशि कम करने का आवेदन कर सकें। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कैदी बाद में बरी हो जाता है या दोषी ठहराया जाता है, तो अधीनस्थ अदालत उचित आदेश देकर राशि सरकार के खाते में वापस करवा सकती है, क्योंकि यह केवल जमानत उद्देश्य के लिए है।
यह योजना केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्रालय द्वारा संचालित है, जो गरीब कैदियों को वित्तीय बाधा से मुक्ति दिलाने के लिए 2015 से चल रही है। अब तक, इस योजना से लाखों कैदियों को लाभ मिल चुका है, लेकिन देरी की शिकायतें आम थीं। नई SOP से प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी।
विशेषज्ञों की राय: जेल सुधार की दिशा में मील का पत्थर
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह आदेश जेलों में भीड़भाड़ को कम करने और ‘बेल इज रूल’ सिद्धांत को मजबूत करने की दिशा में एक मील का पत्थर है। वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा, यह संशोधन न केवल गरीब कैदियों को न्याय दिलाएगा, बल्कि राज्य सरकारों को सामाजिक न्याय के प्रति उनकी जिम्मेदारी याद दिलाएगा। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने भी इसे व्यावहारिक और कैदी-केंद्रित बताया।
NCRB के आंकड़ों से पता चलता है कि 2024 में जेलों में 5.5 लाख से अधिक विचाराधीन कैदी थे, जिनमें से 80% निम्न आय वर्ग से हैं। यह SOP विशेष रूप से छोटे अपराधों (जैसे चोरी, मारपीट) के मामलों में फंसे कैदियों को फायदा पहुंचाएगी।
भविष्य की उम्मीदें: न्याय की गति तेज करने का संकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे इस SOP को तत्काल लागू करें और अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करें। यह कदम भारतीय न्याय व्यवस्था को अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक सकारात्मक पहल है। दिवाली के इस त्योहार पर, जब घर-घर रोशनी का संदेश फैल रहा है, सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला उन कैदियों के लिए ‘उम्मीद की किरण’ साबित होगा, जो वर्षों से जेल की सलाखों के पीछे न्याय का इंतजार कर रहे हैं।















