
लखनऊ डेस्क: दक्षिण भारत में भाषा को लेकर विवाद लगातार जारी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) में तीन भाषाओं को पढ़ाने का प्रावधान आने के बाद, दक्षिण में केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार के बीच हिंदी-तमिल विवाद ने और जोर पकड़ा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने हिंदी को मातृभाषाओं का ‘हत्यारा’ तक कह डाला। उनका आरोप है कि केंद्र सरकार हिंदी थोपकर भाषाई अस्मिता को कमजोर कर रही है। डीएमके नेता कनिमोझी ने भी इस मुद्दे पर कहा कि उनकी आपत्ति हिंदी को थोपे जाने से है, न कि भाषा को लेकर।
इसके बाद तमिलनाडु में स्टेशनों पर हिंदी में लिखे गए नामों पर कालिख पोतने की घटनाएं भी सामने आईं। सीएम स्टालिन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कई भाषाओं की रक्षा की वकालत की है और यह भी कहा कि हिंदी को थोपने से तमाम भारतीय भाषाओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
तमिल भाषा की ऐतिहासिक महत्वता तमिल भाषा को न केवल भारत, बल्कि दुनिया की प्राचीन भाषाओं में से एक माना जाता है। तमिल के उत्पत्ति को लेकर अलग-अलग मत हैं, लेकिन यह माना जाता है कि तमिल भाषा लगभग 5000 साल पुरानी है। कई विद्वान इसे 2300 साल पुरानी मानते हैं, और इसे द्रविड़ भाषाओं में शुमार किया जाता है। तमिल भाषा के लिखित प्रमाण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से मिलते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, तमिल दुनिया की सबसे पुरानी लिखित भाषा है।
संस्कृत और हिंदी का इतिहास संस्कृत एक इंडो-आर्यन भाषा है, जिसे भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीनतम भाषाओं में से एक माना जाता है। इसका इतिहास लगभग 3500 साल पुराना है। संस्कृत ने हिंदी, बांग्ला, मराठी जैसी भारतीय भाषाओं को प्रभावित किया है और इसे भारतीय भाषाओं की जननी माना जाता है। वहीं, हिंदी का विकास भी संस्कृत से हुआ है, और इसे एक आधुनिक भारतीय भाषा के रूप में देखा जाता है।
हिंदी का विकास और विरोध भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। हिंदी आज दुनिया की चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है, और इसके बोलने वालों की संख्या 500 मिलियन से ज्यादा है। हालांकि, दक्षिण भारतीय राज्यों, खासकर तमिलनाडु में, हिंदी के खिलाफ विरोध की लहर हमेशा रही है। तमिलनाडु में पिछले कई दशकों से हिंदी के खिलाफ आंदोलनों का सिलसिला चलता आ रहा है।
भाषा का विवाद नया नहीं है। आज़ादी के समय से ही हिंदी को लेकर विवाद होते रहे हैं। संविधान बनाने के समय भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने को लेकर चर्चाएँ हुई थीं, और दक्षिण भारतीय राज्यों ने इसका विरोध किया था।
भारत में हिंदी का स्थान हिंदी आज भारत की आधिकारिक भाषा के तौर पर इस्तेमाल होती है, और यह दुनिया के विभिन्न देशों में भी बोली जाती है। त्रिनिदाद और टोबैगो, फिजी, नेपाल, गुयाना जैसे देशों में भी हिंदी का इस्तेमाल होता है। दुनिया भर में हिंदी बोलने वालों की संख्या काफी बड़ी है, और यह एक महत्वपूर्ण भाषा बन चुकी है।
इस विवाद ने एक बार फिर से तमिलनाडु में भाषाई अस्मिता को लेकर चर्चा को जन्म दिया है, जहां लोग हिंदी को थोपे जाने के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।