Lakhimpur: दुधवा में 115 साल बाद खिला आर्किड का दुर्लभ फूल

  • कपाट बंद होते होते दुधवा के सठियाना और सोनारीपुर रेंज में मिला प्रकृति का उपहार

Lakhimpur: प्राकृतिक धरोहरों से भरपूर दुधवा नेशनल पार्क ने आज एक ऐतिहासिक दृश्य पेश किया। 115 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद आर्किड का दुर्लभ फूल सठियाना रेंज और दक्षिण सोनारीपुर में देखा गया, जिसने वनस्पति वैज्ञानिकों, प्रकृति प्रेमियों और वन विभाग के अधिकारियों को चौंका दिया। खास बात यह रही कि इसी दिन दुधवा नेशनल पार्क के कपाट पर्यटकों के लिए बंद कर दिए गए, जो हर साल मानसून के आगमन से पहले का सामान्य प्रक्रिया होती है।

वन विभाग के अनुसार, यह फूल आर्किड की एक दुर्लभ प्रजाति है, जो अंतिम बार 1909 में दुधवा क्षेत्र में दर्ज की गई थी। अचानक इसकी उपस्थिति ने न केवल वैज्ञानिकों की रुचि जगाई है, बल्कि यह दुधवा की जैव विविधता के लिए भी एक शुभ संकेत माना जा रहा है।

वनस्पति प्रेमियों का कहना है कि पारिस्थितिक संतुलन बना रहे तो प्रकृति खुद को पुनर्जीवित करने में सक्षम है। आर्किड की यह दुर्लभ उपस्थिति हमें संरक्षित वनों के महत्व की याद दिलाती है।”

आर्किड: फूलों की दुनिया का रत्न

विश्व भर में आर्किड की 25,000 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से भारत में लगभग 1300 प्रजातियाँ मौजूद हैं। यह फूल मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं – पेड़ों पर उगने वाले (एपिफाइटिक), जमीन पर उगने वाले (टेरेस्ट्रियल) और चट्टानों पर उगने वाले (लिथोफाइटिक)। आर्किड की उपस्थिति को जैव विविधता की समृद्धि का संकेत माना जाता है।

वन अधिकारियों का कहना है कि आर्किड की यह प्रजाति केवल किसी विशिष्ट कीट द्वारा परागित होती है, जिससे इसका पारिस्थितिक महत्व और बढ़ जाता है।

संरक्षण की ज़रूरत

वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के चलते कई आर्किड प्रजातियाँ लुप्त होने के कगार पर हैं। दुधवा में इसका दोबारा खिलना वन संरक्षण की दिशा में किए गए प्रयासों का सकारात्मक संकेत हो सकता है। वन विभाग अब इस क्षेत्र में आर्किड की विस्तृत खोज और अध्ययन की योजना बना रहा है।

दुधवा के कपाट हुए बंद

गौरतलब है कि आज, 15 जून को, दुधवा नेशनल पार्क के कपाट पर्यटकों के लिए बंद कर दिए गए हैं। मानसून के दौरान हर साल 15 जून से 15 नवंबर तक पार्क आम लोगों के लिए बंद रहता है। ऐसे में यह दुर्लभ आर्किड का सठियाना रेंज और सोनारीपुर रेंज में खिलना वन कर्मियों और अनुसंधानकर्ताओं के लिए एक विशेष उपलब्धि बन गया है।

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