
Lakhimpur: गोला तहसील के ब्लॉक कुंभी क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत गोला बाहर का भुसौरिया गांव इन दिनों गहरे उपेक्षा के साये में जी रहा है। करीब 2000 की आबादी वाला यह गांव विकास की धारा से कोसों दूर है। नए बाईपास से सटे होने के कारण इस इलाके को नया गोला कहकर भविष्य का सपना दिखाया जा रहा है, ऐसे में भुसौरिया गांव अपनी बदहाली की कहानी खुद बयां कर रहा है।
मुक्तिधाम की दुर्दशा – शांति की जगह चिंता
गांव की सबसे बड़ी पीड़ा है उसका मुक्तिधाम, जहां लोग अपने प्रियजनों की अंतिम विदाई देने आते हैं। लेकिन इस पावन स्थल की हालत देख हर कोई स्तब्ध रह जाता है। अभिलेखों में पंजीकृत इस मुक्तिधाम में एक सरकारी इंडिया मार्का हैंडपंप जरूर है, लेकिन न चारदीवारी है, न छाया के लिए छत, न बैठने की व्यवस्था। गर्मी हो या बरसात, अंतिम संस्कार में शामिल होने आए परिवारीजन खुले आसमान के नीचे तपते सूरज या झमाझम बारिश का सामना करने को मजबूर हैं। बरसात में कीचड़, जलभराव और फिसलन से परेशानी होती है, वहीं गर्मी में धूप की प्रचंडता बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को बेहाल कर देती है।
राख उड़ती है, फूल बह जाते हैं
क्रिया-कर्म के बाद चिता से निकली राख तेज हवा में उड़कर आसपास खड़े ग्रामीणों की आंखों में जा लगती है। कई बार तो परिजन अपने मृतक की मिट्टी (राख) तक पूरी तरह प्राप्त नहीं कर पाते – क्योंकि वह या तो हवा में उड़कर गायब हो जाती है या बारिश के पानी में बह जाती है। यह स्थिति परिजनों के लिए बेहद पीड़ादायक होती है।
ग्रामीणों ने बताया कि उन्हें अपने स्वजन के अंतिम फूल भी नहीं मिल पाते, जो जल के साथ बह जाते हैं या कीचड़ में मिलकर अपवित्र हो जाते हैं। एक ग्रामीण ने कहा – “जिस मिट्टी को श्रद्धा से गंगा में विसर्जित करना था, वह हमारे हाथों तक भी नहीं पहुंचती। इससे बड़ी पीड़ा क्या हो सकती है?”
“वोट नहीं देते, इसलिए विकास नहीं होता”
ग्रामीणों का कहना है कि गांव के वर्तमान प्रधान की इस इलाके में कोई रुचि नहीं है। उनके अनुसार प्रधान सिर्फ चुनाव के समय ही नजर आते हैं और कहते हैं – “इस गांव में मेरा वोट नहीं है।” इस कथन ने गांव को विकास की सूची से बाहर कर दिया है। नालियों की सफाई नहीं होती, कूड़ा सड़कों पर जमा है, और पूर्व में हुए निर्माण कार्यों की देखरेख तक नहीं होती।
तालाब भी बने कूड़ाघर
भुसौरिया के पुराने तालाब भी उपेक्षा की मार झेल रहे हैं। अब वे जल संरक्षण के स्रोत नहीं, बल्कि कूड़ा फेंकने की जगह बन चुके हैं। इससे न केवल गांव की पारंपरिक जलस्रोत व्यवस्था पर संकट है, बल्कि पर्यावरणीय असंतुलन भी बढ़ रहा है।
ग्राम विकास अधिकारी बोले – “फंड की कमी है”
ग्राम विकास अधिकारी ललित वर्मा ने मुक्तिधाम की दुर्दशा को स्वीकार करते हुए कहा – “फंड की कमी के चलते कार्य रुका हुआ है, लेकिन शीघ्र ही प्रयास कर इसे सुधारा जाएगा।”
ग्रामीणों की पुकार – अब तो सुनिए!
भुसौरिया गांव के लोग अब प्रशासन से एक ही गुहार कर रहे हैं “हमें न सही, लेकिन हमारे मृतकों को तो सम्मान मिलना चाहिए।”
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