
कॉमेडियन कुणाल कामरा की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि मुंबई पुलिस ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के बाद अब खार पुलिस ने उन्हें पूछताछ के लिए तलब किया है. यह मामला महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे पर की गई टिप्पणी से जुड़ा है. इस विवाद के बीच एकनाथ शिंदे का भी बयान सामने आया है. उन्होंने कहा, “कॉमेडी और व्यंग्य की एक सीमा होती है, लेकिन कामरा ने जो किया वह किसी के खिलाफ ‘सुपारी’ लेकर बोलने जैसा लग रहा है.” शिंदे ने यह भी आरोप लगाया कि कामरा इससे पहले सुप्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और उद्योगपतियों को लेकर भी आपत्तिजनक टिप्पणियां कर चुके हैं.
अब इस बात को लेकर बहस तेज हो गई है आखिर कब, कहां और कितना मजाक करना चाहिए जो किसी को बुरा न लगे. जब मजाक किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने लगे, तो यह नैतिक और कानूनी रूप से गलत हो सकता है. आइए जानते हैं कि कि मजाक की क्या सीमाएं हैं और भारत का कानून क्या कहता है.
कब मजाक बन जाता है अपराध?
हर मजाक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाता है. जब मजाक अपमानजनक, अश्लील, मानहानिकारक या मानसिक उत्पीड़न की श्रेणी में आता है, तब यह कानूनी रूप से गलत हो सकता है. खासकर, अगर किसी व्यक्ति की जाति, धर्म, लिंग, शारीरिक बनावट या विकलांगता का मजाक उड़ाया जाए, तो यह मानहानि (Defamation) या साइबर क्राइम (Cyber Crime) के तहत अपराध माना जा सकता है.
भारतीय कानून में क्या है प्रावधान?
भारतीय न्याय संहिता (BNS) जो 2023 में भारतीय दंड संहिता (IPC) की जगह लागू की गई, उसमें भी मज़ाक, व्यंग्य और हास्य से जुड़े प्रावधान हैं. हालांकि, यह पूरी तरह से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक नहीं लगाता, लेकिन कुछ सीमाओं को निर्धारित करता है, ताकि कोई मज़ाक या टिप्पणी मानहानि, नफरत भड़काने या सार्वजनिक शांति भंग करने का कारण न बने.
- मानहानि की धारा 354: अगर कोई व्यक्ति किसी और की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से सार्वजनिक रूप से अपमानजनक बयान देता है, तो यह अपराध माना जाएगा. यह धारा किसी भी सार्वजनिक हस्ती, राजनेता, सेलिब्रिटी या आम नागरिक पर लागू हो सकती है.
- सार्वजनिक शांति भंग की धारा 198 और 199: अगर किसी मज़ाक, कॉमेडी या व्यंग्य से समाज में अशांति फैलती है या सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है, तो इसके तहत सख्त कार्रवाई की जा सकती है. खासतौर पर, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने (धारा 199) पर सज़ा का प्रावधान है.
- साइबर अपराध और सोशल मीडिया: अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर किसी के खिलाफ आपत्तिजनक मज़ाक या मीम्स शेयर करता है और यह मानहानि या नफरत फैलाने के तहत आता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है. आईटी अधिनियम 2000 के तहत भी ऐसे मामलों पर कार्रवाई की जा सकती है.
- सार्वजनिक अधिकारी पर आपत्तिजनक टिप्पणी-धारा 153: अगर कोई व्यक्ति सरकारी अधिकारी, मंत्री या प्रधानमंत्री पर ऐसा मज़ाक करता है, जो उनके कार्यों को गलत तरीके से पेश करता है, तो यह अपराध माना जा सकता है. हाल ही में कुणाल कामरा बनाम एकनाथ शिंदे मामले में भी इसी तर्क के आधार पर मामला दर्ज किया गया है.
क्या मज़ाक की पूरी आज़ादी नहीं है?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, लेकिन इसमें संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत सीमाएं भी हैं, जो राष्ट्र की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और मानहानि से जुड़ी पाबंदियां लगाती हैं. कॉमेडी या व्यंग्य की अनुमति है, लेकिन यह निजी हमले, समाज में घृणा या हिंसा फैलाने वाले बयान तक नहीं जाना चाहिए.