
लखनऊ। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी लेनिनवादी) ने कुंभ मेला क्षेत्र में हुई विचलित करने वाली घटना के लिए प्रदेश सरकार को जिम्मेदार मानते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग की है। वामदलों ने मांग की है कि मृतकों तथा घायलों की वास्तविक संख्या का खुलासा किया सरकार करे।
पार्टी का कहना है कि 28/29 जनवरी की रात कुंभ मेले में अनियंत्रित भीड़ से कुचलकर काफी लोगों की मौत हो गई। सोशल मीडिया पर कहा गया कि 58 लोंगों की मौत तथा सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। जबकि सरकार व उसकी पिछलग्गू एजेंसियां तथा चाटुकार मीडिया घटना की वास्तविकता को दबा गया है। हकीकत अभी भी सामने नहीं आ पा रही है। उस दिन भगदड़ सेक्टर 18, सेक्टर 21 तथा संगम नोज क्षेत्र में हुई है। आधी अधूरी खबर जो आ रही है वह संगम नोज की है। झूंसी में मरने वालों का कोई आंकड़ा ही नहीं जारी किया गया है। सरकार के मौतों के आंकड़े 30 से अधिक 58 लोंगों की मौत सोशल मीडिया में है। 31 जनवरी को फाफामऊ में पीपे का पुल टूटने से उसपर चलने वाले लोग भी चपेट में आये हैं। उसमें क्या कोई मौत हुई है? इसका जवाब देने के बजाय उधर किसी को जाने ही नहीं दिया गया। इस तरह सच सामने नहीं आ पा रहा है। वामदलों ने मांग की है कि मृतकों तथा घायलों की वास्तविक संख्या का खुलासा किया जाय।
भव्य कुंभ, दिव्य कुंभ का नारा लगाने वाली उ.प्र. सरकार मौनी अमावस्या से मौन है। उसने प्रदेश के खजाने के 2500 करोड़ रुपये तथा केंद्र से प्राप्त 2100 करोड़ रुपये पानी की तरह बहाया है। 2700 कैमरों और ड्रोन केमरों से मेले की निगरानी तथा डिजिटल शिकायतों की व्यवस्था कहाँ चली गयी, यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है। प्रदेश सरकार ने जनता से मेले को लेकर किया अपना वादा पूरा नहीं किया है। यह प्रदेश और देश की जनता के साथ धोखा है।
तमाम शिकायतों के बाद भी समय से उनका निस्तारण नहीं हुआ। निरंजनी अखाड़े के महात्मा प्रेमानंद पुरी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि मेले की सुरक्षा व्यवस्था पुलिस प्रशासन के भरोसे छोड़ना ठीक नहीं है, इसे आर्मी के हवाले किया जाना चाहिए। पर सरकार जानबूझकर टालमटोल करती रही। यह हादसा पूरी तरह से सरकार की लापरवाही का नतीजा है। उ.प्र के मुख्यमंत्री इसके लिए प्रदेश की जनता से माफी मांगते हुए इस्तीफा दें।