
- काशी और तमिलनाडु के बीच आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक संबंध सदियों से स्थापित हैं: कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी
वाराणसी । काशी तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत गुरुवार को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में कुशल पेशेवरों एवं शिल्पकारों के लिए आयोजित पांचवां शैक्षणिक सत्र सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। तमिलनाडु से आए उद्योग जगत के प्रतिनिधियों, उद्यमियों और पारंपरिक शिल्पकारों ने इस विशेष सत्र में उत्साहपूर्वक भाग लिया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जयंत चौधरी, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), कौशल विकास एवं उद्यमशीलता मंत्रालय तथा राज्य मंत्री, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, ने अपने प्रेरक उद्बोधन में काशी तमिल संगमम् की सराहना करते हुए कहा कि यह आयोजन देश की दो प्राचीन और समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं को अद्भुत रूप से जोड़ने वाला महत्त्वपूर्ण मंच है। उन्होंने कहा कि भले ही हमारी भाषाएँ और विचार भिन्न हों, किंतु हमारा साझा मूल्य-तंत्र और संविधान हमें एक सूत्र में बांधता है। भाषा कोई बाधा नहीं, बल्कि वह सेतु है जो तमिलनाडु और काशी को एक परिवार की तरह जोड़ता है।
जयंत चौधरी ने बनारस की आध्यात्मिकता और आकर्षण का उल्लेख करते हुए कहा कि “कौन बनारस आना नहीं चाहता? यह शहर स्वयं लोगों को अपनी ओर खींच लेता है।” उन्होंने बीएचयू को मात्र एक शिक्षण स्थल न बताते हुए उसे एक सशक्त सामाजिक संस्थान के रूप में वर्णित किया। मार्क ट्वेन के प्रसिद्ध उद्धरण का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि बनारस इतिहास, परंपराओं और किंवदंतियों से भी अधिक प्राचीन है। बदलते वैश्विक परिवेश का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि आज परिवर्तन की गति वर्षों में नहीं, बल्कि क्षणों में मापी जाती है। ऐसे समय में बीएचयू से यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स, नवीन शोध और पेटेंट जैसी उपलब्धियों की अपेक्षा स्वाभाविक है। उन्होंने यह भी कहा कि आज की युवा पीढ़ी बहुभाषी, संवेदनशील और वैश्विक दृष्टिकोण रखने वाली है, और विद्यार्थियों को अंतरराष्ट्रीय भाषाएँ सीखने के लिए प्रेरित किया।
बीएचयू के कुलपति प्रो. अजित कुमार चतुर्वेदी ने तमिलनाडु से आए अतिथियों का हृदय से स्वागत किया। उन्होंने कहा कि काशी और तमिलनाडु के बीच आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ज्ञानपरंपरा पर आधारित संबंध सदियों से स्थापित हैं। शैव-वैष्णव परंपराएँ, मठ-पीठ, संत-विद्वान और तीर्थयात्राएँ इन दोनों प्रदेशों को एक अदृश्य सेतु से जोड़ती हैं। उन्होंने कहा कि काशी तमिल संगमम् कोई नया संबंध नहीं रचता, बल्कि एक प्राचीन बंधन को नई पीढ़ियों के लिए पुनर्जीवित करता है। उन्होंने बताया कि वाराणसी के विभिन्न विद्यालयों में लगभग 50 तमिल भाषा-शिक्षक कार्यरत हैं, जो इस सांस्कृतिक आदान–प्रदान की जीवंत मिसाल हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि तेनकासी से प्रारंभ हुआ अगस्त्य कार अभियान काशी पहुँच चुका है, जो इन ऐतिहासिक संबंधों का प्रतीक है।
प्रबंध शास्त्र संस्थान के निदेशक प्रो. आशीष बाजपेयी ने अपने कहा कि काशी की प्रत्येक गली, घाट और शिखर में सदियों का ज्ञान, प्रेम और भक्ति गुंजित है, और आज यह पावन नगरी तमिलनाडु के प्रतिनिधियों का हृदय से स्वागत कर रही है। उन्होंने कहा कि काशी तमिल संगमम् “एक भारत श्रेष्ठ भारत” की राष्ट्रीय दृष्टि का महत्वपूर्ण अंग है, जिसका उद्देश्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों के बीच सांस्कृतिक समन्वय और एकता को सुदृढ़ करना है।
सत्र के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने काशी विश्वविद्यालय के दो प्रमुख कला एवं विरासत केंद्रों का भी अवलोकन किया। डॉ. निशांत के नेतृत्व में उन्होंने भारत कला भवन संग्रहालय का भ्रमण किया, जहां भारतीय कलाओं, ऐतिहासिक प्रतिमाओं और दुर्लभ शिल्प सामग्री को देखकर वे अत्यंत प्रभावित हुए। इसके अतिरिक्त, प्रो. सुरेश जांगीड़ के नेतृत्व में उन्होंने दृश्य कला संकाय के कला संग्रहालय का भी दौरा किया, जहाँ पारंपरिक एवं समकालीन कला के विविध रूपों की प्रदर्शनी ने प्रतिभागियों को भारतीय कलात्मक अभिव्यक्ति की व्यापकता से परिचित कराया। कार्यक्रम का संचालन विश्वविद्यालय की सिद्धिदात्री भारद्वाज और कॉलेज ऑफ नर्सिंग की प्रो. शिवशंकरी ने किया।










