
बेंगलुरू। कर्नाटक सरकार की ओर से महिला कर्मचारियों के लिए अनिवार्य मासिक धर्म अवकाश लागू करने के आदेश पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अंतरिम रोक लगा दी है। यह निर्णय बैंगलोर होटल ओनर्स एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया।
याचिकाकर्ता संगठन ने दलील दी थी कि अवकाश नीति तय करना संस्थानों का आंतरिक प्रशासनिक निर्णय है और राज्य सरकार को श्रम कानूनों के तहत ऐसा आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है।
राज्य सरकार ने 12 नवंबर को आदेश जारी कर कारखाना अधिनियम, कर्नाटक दुकान एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, बागान श्रम अधिनियम, बीड़ी एवं सिगार श्रमिक अधिनियम और मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम के तहत आने वाले सभी प्रतिष्ठानों में हर माह एक दिन के सवेतन मासिक धर्म अवकाश को अनिवार्य किया था।
सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर 1948 के कारखाना अधिनियम, 1961 के कर्नाटक दुकान और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 1951 के बागान श्रम अधिनियम, 1966 के बीड़ी और सिगार श्रमिक अधिनियम और 1961 के मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम के तहत संचालित सभी संस्थानों को उपर्युक्त नीति का पालन करने का निर्देश दिया है। लेकिन होटल ओनर्स एसोसिएशन ने एक याचिका दायर की थी कि अवकाश नीतियां व्यक्तिगत संस्थानों का आंतरिक प्रशासनिक मामला बनी रहनी चाहिए।
होटल ओनर्स एसोसिएशन की ओर से वकील प्रशांत बी.के. ने दलील दी कि यह आदेश उद्योग जगत से बिना परामर्श लिए जारी किया गया है और इससे संचालन में कठिनाइयां उत्पन्न होंगी। अदालत ने इस तर्क पर ध्यान देते हुए पूछा कि क्या आदेश जारी करने से पहले संस्थाओं से राय ली गई थी। इस पर एसोसिएशन ने ‘नहीं’ कहा।
दलीलें सुनने के बाद न्यायमूर्ति ज्योति मूलमणि की एकल पीठ ने सरकार के आदेश पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी। अदालत ने यह भी कहा कि सरकार चाहे तो अंतरिम स्थगन हटाने के लिए आवेदन दायर कर सकती है।













