
- पुलिस कमिश्नर ने 11 अगस्त के बजाय 19 अगस्त की तारीख का प्रस्ताव भेजा
- 8 दिन बाद कॉलेज मिलने की स्थिति अभी स्पष्ट नहीं, बातचीत जारी
- अधिकांश उम्मीदवार भी सावन के बाद संगठन का चुनाव कराने के पक्ष में लामबंद
- अभी सावन के कारण देर शाम की पर्टियां करने से कतरा रहे हैं प्रत्याशी
कानपुर: चहरी में चुनावी शोर कुछ दिन और गूंजेगा। लॉयर्स एसोसिएशन का चुनाव अब 11 अगस्त के बजाय 19 अगस्त को होने की संभावना है। किसी कारणवश 19 अगस्त को मतदान के लिए डीएवी कॉलेज नहीं मिला तो मतदान की तारीख आगे भी बढ़ सकती है। दरअसल त्योहार और स्वतंत्रता दिवस की सुरक्षा व्यवस्था के कारण पुलिस कमिश्नर ने 11 अगस्त से 16 अगस्त तक पुलिस फोर्स उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया है।
पुलिस ने 19 अगस्त को मतदान स्थल उपलब्ध कराने के आश्वासन के साथ मतदान के लिए तारीख बढ़ाने का एल्डर्स कमेटी से आग्रह भी किया है। एल्डर्स कमेटी ने पुलिस कमिश्नर के आश्वासन को टिप्पणी के साथ अंकित करते हुए पत्र मौजूदा कार्यकारिणी के पास भेज दिया है, जिसे कार्यकारिणी स्वीकृत भी कर लिया है। ऐसे में यह तो तय हो गया है कि कानपुर कचहरी में लायर्स एसोसिएशन का चुनाव अब 11 अगस्त के बजाय 19 अगस्त को होगा।
सावन में चुनाव नहीं चाहते तमाम उम्मीदवार
पुराना दस्तूर है कि वकीलों के चुनाव में दोपहर का भोज और देर शाम की पार्टी अनिवार्य हिस्सा बन चुकी हैं। फिलवक्त सावन महीने में अधिकांश लोग पूजा-पाठ में व्यस्त रहते हैं तथा व्रत भी रखते हैं, ऐसे में भोज और शाम वाली पार्टियों पर पूर्ण विराम लगा हुआ है। उम्मीदवारों के समर्थकों को भोज और पार्टियों का इंतजार है, लेकिन तमाम शिवभक्त चेहरों की गैरमौजूदगी की आशंका के कारण प्रत्याशियों को सावन महीने में पार्टियों से परहेज है। इसी कारण अधिकांश उम्मीदवार भी कचहरी की चौपाल में चर्चा करते नजर आए कि यदि मतदान की तारीख 10 दिन आगे सर क जाए तो सभी को खुश करना संभव होगा। नेताओं की फरियाद को भोलेनाथ ने सुन लिया और वकीलों के चुनाव की तारीख 11 अगस्त से बढ़कर 19 अगस्त पहुंच गई है।
फिलहाल फल और चाय के भरोसे हैं उम्मीदवार
चुनावी रणक्षेत्र में महारथियों के प्रचार के शस्त्र-शास्त्र लक्ष्य भेदने को मचल रहे हैं। महारथियों के खेमों के मठाधीश रातों-रात समीकरण बदलने-बनाने की जुगत में जुटे हैं। फिलहाल महायोद्धाओं के चेहरों के हिसाब से लायर्स चुनाव को अगड़ा बनाम पिछड़ा के खांचे में फिट करने की मशक्कत है। कोशिश कितना कामयाब होगी, यह तो मतदान के बाद नतीजे बताएंगे। अलबत्ता सावन महीने में तमाम पाबंदियों के कारण कचहरी के उम्मीदवार फल और चाय बताकर समर्थकों को खुश करने में जुटे हुए हैं, लेकिन समर्थकों को किसी खास पार्टी का इंतजार है। एक अनुमान के मुताबिक वकीलों के चुनाव में किसी विधायक के चुनाव से कम खर्च नहीं होता है। झंडा, पोस्टर्स, बैनर के साथ-साथ घर-घर जनसंपर्क और समर्थकों की ख्वाहिश के हिसाब से क्षेत्रवार भोज करने में अध्यक्ष और महामंत्री पद की उम्मीदवारों को बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है।
मैदान में ब्राह्मण उम्मीदवार सबसे ज्यादा
यूं तो तमाम पदों के लिए चुनावी संघर्ष होगा, लेकिन कचहरी का रोमांच अध्यक्ष और महामंत्री के चुनाव के इर्द-गिर्द मंडरा रहा है। दोनों पदों के लिए तेरह उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन गणित के हिसाब से ब्राह्मण उम्मीदवारों की तादात सबसे ज्यादा यानी आठ है। पीडीए वर्ग से सिर्फ तीन, जबकि मुस्लिम बिरादरी से सिकंदर आलम अकेले अध्यक्षी के लिए मोर्चा संभाले हैं। क्षत्रिय कुनबे से महामंत्री पद के लिए धर्मेंद्र भदौरिया भी इकलौते प्रत्याशी हैं। इसी समीकरण में कचहरी का चुनाव उलझा है। ब्राह्मण वोटों में बिखराव की उम्मीद में पीडीए उम्मीदवार अपनी जीत के जुगनू खोज रहे हैं, जबकि ब्राह्मण प्रत्याशी जाति के बजाय चेहरे और छवि के ब्रह्मास्त्र के भरोसे हैं।
अध्यक्ष में किंतु-परंतु में उलझा मुकाबला
अध्यक्ष पद के लिए बीते चुनाव के रनर अरविंद दीक्षित, अनूप दुबे, सुरेंद्र पाण्डेय के अलावा राकेश सचान, सिकंदर आलम और दिनेश वर्मा किस्मत आजमाने उतरे हैं। राकेश और दिनेश पीडीए समीकरण के अलावा व्यक्तिगत रिश्तों के बूते नतीजों को लेकर आश्वस्त हैं, जबकि सिकंदर की नैया मौजूदा अध्यक्ष श्याम नारायण सिंह के हाथों में सुरक्षित है। ब्राह्मण प्रत्याशियों में आगे निकलने की होड़ है, लेकिन दांव-पेच की गच्चेबाजी किसी खेमे का नुकसान करने के लिए खास रात का इंतजार कर रही है।
जनेऊ धारियों के बीच अकेला ठाकुर-यादव
महामंत्री पद का मुकाबला खासा दिलचस्प है। आठ उम्मीदवारों में पांच जनेऊधारी हैं, जबकि बीते चुनाव के रनर राजीव यादव अकेले पीडीए प्रत्याशी हैं। इन्हीं हुंकारों के बीच एक आवाज ठाकुर बिरादरी के धर्मेंद्र सिंह भदौरिया की गूंज रही है। महामंत्री पद के लिए सुनील पाण्डेय, नवनीत पाण्डेय, ज्योतेंद्र दीक्षित, देशबंधु तिवारी, अभय शर्मा भी दल-बल के साथ किला फतेह करने उतरे हैँ। सुनील पाण्डेय को मौजूदा बॉर महामंत्री अमित सिंह के साथ-साथ पूर्व महामंत्री राकेश तिवारी और राघवेंद्र प्रताप सिंह का जबरदस्त समर्थन हासिल है, जबकि राजीव यादव बीते चुनाव की कसर पूरी करने की जुगत में जुटे हैं। धर्मेंद्र भदौरिया भी मजबूत स्थिति में हैं, उन्हें कचहरी के मठाधीश छुपा रुस्तम बता रहे हैं।
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