कानपुर : नौकरी छोड़ी, लेकिन जिद नहीं, फेल और हताश हुए, अब बनेंगे आईपीएस अफसर

  • बिट्स पिलानी से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री
  • चार साल नौकरी के बाद अफसर बनने की ठानी
  • पहले प्रयास में प्रारंभिक परीक्षा में अटक गए थे
  • फिर 274वीं रैंक, आयकर अधिकारी बन सकते थे
  • जिद कायम रही, अब जल्द बनेंगे काबिल आईपीएस

कानपुर। चार्टर्ड अकाउंटेंट अजय भार्गव के आंगन में अरसा पहले किलकारियां गूंजी तो उन्होंने नवजात को नाम दिया – काबिल…। उम्मीद थी कि मेरा लाल नाम करेगा रोशन। काबिल को माता-पिता ने कामयाबी का मंत्र दिया कि नाम को सार्थक करने के लिए काबिल बनो, फिर देखना कामयाबी झक मारकर पीछे आएगी। नामचीन संस्थान से सिविल इंजीनियरिंग में बी.टेक करने के बाद काबिल की झोली में सरकारी नौकरियों की बहार थी, लेकिन आईपीएस अफसर बनने की जिद और जुनून था। शुरुआत में हौंसला डगमगाया, रैंक बहुत बेहतर नहीं थी। मम्मी-पापा और बहन ने हिम्मत दिलाई और थ्री-इडियट टाइप दोस्तों ने हारने नहीं दिया। नतीजा सामने है। अब शहर का छोरा काबिल भार्गव जल्द खाकी वर्दी में आईपीएस अफसर के रूप में नजर आएगा। उसे यूपीएससी में 122वीं रैंक मिली है।

डीपीएस से यूपीएससी तक सफर आसान नहीं

काबिल भार्गव के पिता अजय भार्गव कानपुर के प्रतिष्ठित चार्टर्ड अकाउंटेट है। उन्होंने बेहतर शिक्षा के लिए बेटे का डीपीएस-आजाद नगर में दाखिला कराया तो इंटरमीडियट तक पढ़ाई के दरमियान काबिल की काबिलियत नजर आने लगी थी। अब वर्ष 2014 में काबिल का नया ठिकाना था- बिट्स पिलानी, जहां सिविल इंजीनियरिंग करने के बाद नई दिल्ली में सेंट्रल इंजीनियरिंग सर्विस में छठवीं रैंक के साथ चयन हुआ। केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) में बतौर असिस्टेंट एक्जीक्यूटिव इंजीनियर चार बरस नौकरी करने के दरमियान काबिल संतुष्ट थे, लेकिन खुश नहीं। वजह था सपनों की दुनिया से दूर होना। काबिल शुरुआत से सिविल सर्विस ज्वाइन करना चाहते थे। ऐसे में एक दिन काबिल ने मम्मी-पापा को मन की बात बताई और नौकरी को अलविदा कह दिया। अब नई मंजिल के लिए कदम आगे बढ़ाना था, लेकिन सफर आसान नहीं था।

हताश भी हुए, लेकिन थ्री इडियट ने संभाला

कवि दुष्यंत कुमार की पंक्तियां हैं- कौन कहता है आसमां में सुराग नहीं होता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों…..। इन्हीं लाइनों ने काबिल की जिंदगी को बदल दिया। वर्ष 2022 में पहले प्रयास में प्रारंभिक परीक्षा की बाधा में काबिल अटक गए। उम्मीदें चकनाचूर हो चुकी थीं। ऐसा लगने लगा कि, यह बहुत मुश्किल है। इस दौर में काबिल के दोस्तों ने हारने नहीं दिया। मम्मी रचन, पिता अजय और बहन शगुन हौंसला बढ़ाने के लिए मौजूद थे। दूसरे प्रयास में काबिल की रैंक थी 274… अब आयकर भवन के दरवाजे खुले थे। मंजिल मिले बगैर काबिल हार मानने वाले नहीं हैं। एक बार फिर यूपीएससी की परीक्षा देने की ठानी। नतीजा सामने है। अब उन्हें यूपीएससी परीक्षा में 122वीं रैंक मिली है।

जिस्म पर खाकी और दिल में हिंदुस्तान

शहर के स्वरूप नगर निवासी काबिल भार्गव कहते हैं कि, नौकरियां सभी अच्छी हैं, लेकिन सिविल सर्विस के जरिए समाज में तेजी से बदलाव करना मुमकिन है। उन्होंने कहाकि, खाकी वर्दी ने सदैव प्रभावित किया है। कोशिश करूंगा कि, तकनीकी और इंटेलीजेंस के जरिए क्राइम कंट्रोल किया जाए। इसके साथ ही अव्यवस्थित शहरीकरण को दुरुस्त करने की चाहत भी है। क्रिकेट और बैडमिंटन के मुरीद काबिल की फाइनेंशियल मार्केट के क्षेत्र में भी खासी रुचि है। नौकरी के साथ-साथ यूपीएससी के तैयारी कैसे… इस सवाल पर काबिल ने बताया कि जल्दी सोता था और सुबह जल्दी उठकर आफिस जाने से पहले पांच घंटे दिल लगाकर पढ़ाई करता था। आफिस में एक घंटे का लंच 15 मिनट में निबटाकर शेष 45 मिनट किताबों के साथ गुजारता था। उन्होंने दमकते करियर का सपना देखने वालों के लिए कहा कि, कोई शार्टकट नहीं है, लेकिन ईमानदारी से पांच-छह घंटे भी रोजाना पढ़ाई करेंगे तो कामयाबी जरूर मिलेगी।

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