
कोयंबटूर, तमिलनाडु : बहुचर्चित पोलाची यौन शोषण मामले में आखिरकार 6 साल बाद न्याय की गूंज सुनाई दी। कोयंबटूर की विशेष महिला अदालत ने मंगलवार को इस मामले में सभी 9 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। यह मामला 2019 में सामने आया था और अब 2025 में न्याय की एक अहम मिसाल बन गया है।
क्या है पोलाची यौन शोषण कांड?
वर्ष 2019 में कोयंबटूर की एक युवती ने चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन जांच में जो सामने आया, उसने पूरे राज्य को हिला कर रख दिया। पता चला कि यह एक संगठित यौन अपराध गिरोह था, जो महिलाओं से दोस्ती कर उन्हें अपने जाल में फंसाता, उनका यौन शोषण करता और फिर वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करता था।
किसे मिली कितनी सजा?
कोर्ट ने इन 9 आरोपियों को दोषी करार दिया:
- सबरीराजन उर्फ रिश्वंत (32)
- थिरुनावुकरसु (34)
- वसंत कुमार (30)
- सतीश (33)
- मणिवन्नन
- पी. बाबू (33)
- हारून पॉल (32)
- अरुलानन्थम (39)
- अरुण कुमार (33)
इन सभी को बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, यौन उत्पीड़न, आपराधिक साजिश और जबरन वसूली जैसे गंभीर अपराधों में दोषी पाया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
CBI जांच का क्या रहा रोल?
मामले की शुरुआती जांच कोयंबटूर पुलिस कर रही थी, लेकिन जब सोशल मीडिया पर पीड़ित महिलाओं के वीडियो वायरल हुए, तो मामला राजनीतिक और सामाजिक रूप से बड़ा मुद्दा बन गया। जनता के भारी दबाव के बाद, इसे CBI को सौंप दिया गया।
CBI ने:
- 50 गवाहों को कोर्ट में पेश किया
- 400 से अधिक डिजिटल सबूत जुटाए
- पीड़ित महिलाओं के बनाए गए वीडियो, चैट्स और कॉल रिकॉर्डिंग को सबूत के रूप में प्रस्तुत किया
CBI के विशेष लोक अभियोजक सुरेंद्र मोहन ने अदालत से अधिकतम सजा की मांग करते हुए कहा, “यह न केवल महिलाओं की गरिमा का हनन है, बल्कि समाज की आत्मा पर हमला है।”
गवाहों की बहादुरी
मामले की खास बात यह रही कि 48 गवाहों ने अदालत में अपने बयान पर अडिग रहते हुए दोषियों के खिलाफ गवाही दी। यह CBI की केस को मजबूत करने वाली सबसे बड़ी ताकत बनी।
कोर्ट का फैसला और टिप्पणी
कोर्ट ने यह माना कि अपराध पूर्व नियोजित और संगठित थे। न्यायाधीश आर. नंदिनी देवी ने कहा, “यह मामला महिला सुरक्षा के लिए एक गहरा सवाल है। दोषियों को सख्त सजा देना ज़रूरी है, ताकि यह समाज में एक संदेश दे सके।”
हालांकि, कोर्ट ने आरोपियों की कम उम्र को देखते हुए फांसी की सजा नहीं दी लेकिन आजीवन कारावास सुनाया।
यह फैसला क्यों है अहम?
- यह निर्णय भारत की न्यायिक प्रणाली की संवेदनशीलता और सख्ती को दर्शाता है।
- यह संदेश देता है कि यौन शोषण के संगठित अपराधों को अब नज़रअंदाज़ नहीं किया जाएगा।
- पीड़िताओं के साहस और गवाहों की दृढ़ता को न्यायालय ने विशेष रूप से सराहा।