
Jhansi : रानी लक्ष्मीबाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झाँसी के वानिकी वैज्ञानिकों ने किसानों को सितम्बर माह में वानिकी नर्सरी प्रबंधन के लिए उपयोगी सलाह दी है।
डॉ. गरिमा गुप्ता और डॉ. स्वाति शेडगे ने बताया कि वर्षा ऋतु में नर्सरी प्रबंधन एक बड़ी चुनौती बन जाती है। लगातार बारिश से नर्सरी में जलभराव, जड़ों का सड़ना, रोगों का फैलना और पौधों के मरने जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है और लाभ कम हो जाता है।
वैज्ञानिकों ने कहा कि इस स्थिति से बचने के लिए नालियाँ बनाकर पानी की निकासी करना आवश्यक है। 15 जून से अगस्त माह तक लगातार वर्षा होने के कारण नर्सरी प्रबंधन कठिन रहा। इसलिए किसानों को सलाह दी गई है कि सितम्बर के प्रथम पक्ष में नीम, शीशम, बबूल, कदम्ब आदि वानिकी पौधों की नर्सरी डालकर पौधे तैयार करें।
उन्होंने सुझाव दिया कि क्यारियाँ 15-20 सेंटीमीटर ऊँची रखें और पॉलीबैग गमलों के नीचे रेत या कंकड़ की परत बिछाने से 20-25% तक नुकसान कम किया जा सकता है। रोग प्रबंधन हेतु ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाज़िम (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें तथा रोगग्रस्त पौधों को तुरंत हटा दें। संरक्षण के लिए शेड नेट या पॉलीहाउस का उपयोग करने से पौधों की जीवित रहने की दर 90% तक बढ़ सकती है। साथ ही पौधों को उचित दूरी पर लगाकर वायु-संचार बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। वायु संचार बढ़ाने हेतु क्यारियों के बीच पर्याप्त जगह, कतारबद्ध पौधारोपण, पॉलीहाउस में साइड वेंट्स तथा समय-समय पर पौधों की छंटाई और स्थानांतरण जरूरी है।
विशेषज्ञों ने बताया कि वर्षा ऋतु में समय पर जल निकासी और रोग प्रबंधन अपनाने से पौधों की 30-40% हानि कम हो सकती है। इससे छोटे स्तर की (10,000 पौधे क्षमता वाली) नर्सरी में भी लगभग 8 से 10 हजार रुपये तक की अतिरिक्त आय संभव है। किसान भाइयों को सलाह दी गई है कि वर्षा ऋतु में नर्सरी का सही प्रबंधन कर अतिरिक्त आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
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