झांसी : दलित बस्ती में आग से उजड़ी जिंदगियां, मदद के बहाने राजनीतिक फोटोशूट, संवेदनाओं पर सियासत का साया

झांसी। जनपद के शाहजहांपुर थाना क्षेत्र के ग्राम दैगुवां में हाल ही में घटी एक दर्दनाक घटना ने पूरे इलाके को झकझोर कर रख दिया। खेत में जलाई गई पराली की चिंगारी ने देखते ही देखते दलित बस्ती को अपनी चपेट में ले लिया। कई झोपड़ियाँ और कच्चे मकान जलकर राख हो गए। लपटों ने उन मासूम परिवारों की ज़िंदगियों को भस्म कर दिया, जिनकी पूरी पूंजी वही छप्पर था।

राजनैतिक गतिविधियों में गूंज

घटना की जानकारी मिलते ही प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुँचे और पीड़ितों को जल्द मुआवजा देने का आश्वासन दिया। इस त्रासदी के बाद जब ज़ख्म अभी हरे थे, उसी समय राजनीतिक गलियारों में भी इस घटना की गूंज सुनाई देने लगी।

बसपा ने दी मदद

बसपा की ओर से जहाँ पीड़ित परिवारों को एक लाख रुपए की नगद सहायता और 15 दिन का राशन देकर राहत दी गई, वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर एक तस्वीर ने लोगों के दिलों में टीस और गुस्सा दोनों भर दिए।

फिर सहारे के नाम पर जातिवाद…

12 मई की दोपहर, सोशल मीडिया पर एक फोटो तेजी से वायरल हुई। तस्वीर में बृजेंद्र कुमार व्यास, जिनके फेसबुक अकाउंट पर ‘पूर्व विधायक गरौठा’ और ‘ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी पर्यवेक्षक’ लिखा है, कुर्सी पर बैठकर राजा-महाराजा की तरह पाँव पर पाँव रखे दिख रहे हैं। वहीं ज़मीन पर पीड़ित दलित परिवार, जिनके घर कुछ ही दिन पहले जलकर खाक हो गए थे, गम और बेबसी लिए बैठे नजर आ रहे हैं।

सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया

इस तस्वीर ने दलित समाज के ज़ख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया। सोशल मीडिया पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी। किसी ने लिखा— “आज भी समानता हमारे समाज में सिर्फ किताबों में है, हकीकत में नहीं।” तो किसी ने कहा— “दलितों का दुःख भी कुछ लोगों के लिए सियासी फोटोशूट का जरिया है।”

सियासत की आग में झुलसती संवेदनाएँ

गाँव में चर्चा है कि बृजेंद्र कुमार व्यास आगामी विधानसभा चुनाव में गरौठा सीट से दावेदारी की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन इस तस्वीर ने उनकी छवि पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जहां एक ओर लोग मदद के नाम पर दिखावे और जातिवादी सोच की आलोचना कर रहे हैं, वहीं कुछ का कहना है कि ऐसी घटनाएँ बताती हैं कि समाज में बदलाव की कितनी ज़रूरत है।

आख़िर कब बदलेगा हालात का मंजर?

झांसी की इस घटना ने एक बार फिर साबित कर दिया कि आज़ादी के 75 साल बाद भी दलित बस्तियों की स्थिति बद से बदतर है। आग भले ही मकानों को जला गई, लेकिन संवेदनहीनता की चिंगारी कहीं गहरी जल रही है। राजनीति के मंच पर गरीबों का दुःख आज भी सिर्फ तसवीरों और भाषणों का हिस्सा बनकर रह गया है।

सवाल ये नहीं है कि कुर्सी पर कौन बैठा, सवाल ये है कि इन दलित परिवारों की उजड़ी हुई ज़िंदगियों को कब इंसाफ़ और सम्मान मिलेगा?

उक्त प्रकरण में पूर्व विधायक बृजेंद्र कुमार व्यास बताते हैं कि “ग्राम दैगुवां में जाकर पीड़ित परिवारों को नगद एक-एक हजार रुपए की आर्थिक सहायता प्रदान की है। एसडीएम से बात करने पर आश्वासन मिला कि कुछ समय में सहायता राशि पीड़ितों को मिल जाएगी।”

आगे बताते हैं कि “पीड़ितों ने मुझे मेहमान समझ कर कुर्सियां दे दी। गरीबों के पास ज्यादा कुर्सियां वैसे भी नहीं होती हैं। उन्होंने कहा कि इसमें मैंने कोई अपराध नहीं कर दिया।”

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