
- बिलख-बिलख के रोये स्वतंत्रता सेनानी के पुत्र, कहा-भण्डारे में खाते हैं खाना
- नेताओं ने किए थे कई वादे, आज तक पूरे नहीं हुए
- अपने पिता की प्रतिमा के पास ही सोने को हैं मजबूर
झाँसी : आजादी को अमृतकाल का नाम भले ही दिया गया है पर देश के लिए मर मिटने वालों के परिवार की स्थिति बहुत ख़राब है। इसे जनप्रतिनिधियों की संवेदनहीनता ही कहिये कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानीयों के परिवार भुखमरी की कगार पर हैं। झाँसी के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्वर्गीय सीताराम आजाद के पुत्र राजगुरु आजाद की कहानी जानेंगे, तो दंग रह जाएंगे।

66 वर्ष के राजगुरु उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पुत्र हैं, जिनकी प्रतिमा कोतवाली के पास पत्रकार भवन में स्थापित है। जिन नेताओं ने उनकी प्रतिमा स्थापित कराने में योगदान दिया होगा, उनके नाम भी शिलापट पर मौजूद हैं। बावजूद इसके इन नेताओं ने राजगुरु की कोई मदद नहीं की। राजगुरु कहते हैं कि उनके पिता ने उनका नाम शहीद राजगुरु के नाम पर रखा था। वह बताते हैं कि उनके पास कोई मकान नहीं है। सपा सरकार में एक बड़े नेता ने वादा किया था कि एक हफ्ते के अंदर मकान मिलेगा, पर आठ साल भी कुछ नहीं मिला।
कांग्रेस के एक जनप्रतिनिधि ने डेढ़ हजार की मदद की। उनकी वृद्धावस्था पेंशन एक हजार रूपए एक साल के अंदर ही शुरू हुई है। राजगुरु कहते हैं कि उनके पास रहने की जगह नहीं है, इसलिए अपने पिता की प्रतिमा के पास ही रहते हैं। उनके पास सिर्फ गरीबी रेखा वाला कार्ड है। यह भी कहा कि भण्डारे में खाना मिलता है। कभी कहीं से मांग लेते हैं। बात करते हुए वह रोते हैं कि उनकी सुनने वाला कोई नहीं। ऐसे में गंभीर सवाल खड़े होते हैं कि आजादी के अमृतकाल में आजादी की लड़ाई लड़ने वालों के परिवार की ऐसे अनदेखी क्यों?