
लखनऊ। दुनिया में आतंक की फैक्ट्री के नाम से विख्यात जैश-ए-मोहम्मद (جيش محمد) के ठिकानों पर हमले के बाद भारतीय सेना को एक बड़ी कामयाबी मिली है। जैश अपने जन्म के समय से ही इस्लाम को नकारात्मक छवि की ओर धकेलता रहा है। भारत और पाक के युवाओं को बरगला कर ब्रेन वाश करना और कश्मीर में दहशतगर्दी के लिए इस्तेमाल करना उसका अहम मकसद रहा है।
- दिसम्बर 1999 में अपहृत भारतीय विमान आईसी 814 के यात्रियों को बचाने के लिए मसूद अज़हर को कांधार ले जाकर छोड़ा गया था
- 2002 में जैश-ए-मुहम्मद ने अपना नाम बदलकर ‘ख़ुद्दाम उल-इस्लाम’ कर दिया
मसूद अजहर मूल रूप से पाकिस्तान में रहकर अपना संगठन संचालित करता रहा है और दूसरे देश के मुस्लिम युवाओं को लालच देकर भर्ती करता रहा। पाक के इस जिहादी इस्लामी उग्रवादी संगठन का एक ध्येय भारत से कश्मीर को अलग करना रहा है। यह अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के विरुद्ध आतंकवादी गतिविधियों में भी शामिल रहा । इस संगठन की स्थापना मसूद अज़हर ने मार्च 2000 में की थी। इसे भारत में हुए कई आतंकवादी हमलों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया है और जनवरी 2002 में इसे पाकिस्तान की सरकार ने भी प्रतिबंधित कर दिया। इसके बाद जैश-ए-मुहम्मद ने अपना नाम बदलकर ‘ख़ुद्दाम उल-इस्लाम’ कर दिया। सुरक्षा विषयों के समीक्षक के अनुसार यह एक ‘मुख्य आतंकवादी संगठन’ है और यह भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा जारी आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल है।

जब पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा तो जनवरी 2002 में जैश पर प्रतिबंध लगा दिया। यह प्रतिबंध महज एक दिखावा था। जैश के आकाओं ने इसे नाम बदलकर अपना काम जारी रखने दिया। इसने नया नाम रख लिया खुद्दाम-उल-इस्लाम। उस पर भी पाकिस्तान सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया। चूंकि 2002 में इसे गैरकानूनी संगठन करार दे दिया गया था तो जैश ने अल-रहमत ट्रास्ट नाम के चैरिटेबल ट्रस्ट की आड़ में अपना काम शुरू कर दिया। उसी समय जैश की अंदरुनी कलह की वजह से एक नया संगठन अस्तित्व में आया और उसका नाम था जमात-उल-फुरकान। अब्दुल जब्बार, उमर फारूक और अब्दुल्ला शाह मजहर ने इसकी नींव रखी। मसूद खुद्दाम-उल-इस्लाम की आड़ में जैश का संचालन करता रहा।

9/11(11 सितम्बर 2001 के हमले) के बाद आतंक के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान के राष्ट्रपति मुशर्रफ के शामिल होने के फैसले से जैश बौखला गया। अजहर ने मुशर्रफ के इस्तीफे की मांग की। इसके अलावा इस्लामाबाद, मरी, तक्षशिला और बहावलपुर में हमले कराए। नवंबर 2003 में पाकिस्तान ने हमलों के बाद खुद्दाम-उल-इस्लाम पर रोक लगा दी। इससे मसूद अजहर बौखला गया और मुशर्रफ के काफिले पर दो बार 14 दिसंबर और 25 दिसंबर, 2003 को हमला कराया। इसके बाद पाकिस्तान ने जैश पर सख्ती शुरू कर दी। हमले के आरोपियों को मुशर्रफ के दौर में ही फांसी दे दी गई। मसूद अजहर पर सख्ती की गई और उसे नजरबंद कर दिया।
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जैश-ए-मुहम्मद की करतूतें
दिसम्बर 1999 में अपहृत भारतीय विमान आईसी 814 के यात्रियों को बचाने के लिए मसूद अज़हर को कांधार ले जाकर छोड़ दिया गया।
मार्च 2000 में मसूद अज़हर ने हरकत-उल-मुजाहिदीन को बंटवाकर जैश-ए-मुहम्मद की स्थापना की। हरकत-उल-मुजाहिदीन के अधिकतर सदस्य जैश में शामिल हो गए।
आरोप है कि दिसम्बर 2001 में जैश ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ मिलकर नई दिल्ली में भारतीय संसद पर आत्मघाती हमला किया।
आरोप है कि फ़रवरी 2002 में जैश ने अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल को गर्दन काटकर मार दिया
मई 2001 में जैश सदस्य होने का ढोंग कर रहे एक अमेरिकी पुलिसवाले ने चार लोगों को न्यूयार्क में यहूदी मंदिर उड़ाने और अमेरिकी सैनिक विमानों पर मिसाइल चलाने का षड्यंत्र रचने के आरोप में गिरफ़्तार किया। जैश ए मुहम्मद ने 14 फरवरी को कश्मीर के पुलवामा में आत्मघाती हमला कराया,जिसमे 42 जवानों की मौके पर ही मौत हो गई।