
जबलपुर, मध्य प्रदेश : दिव्यांग बच्चों (चिल्ड्रन विद स्पेशल नीड्स) को शिक्षा और बुनियादी सुविधाएं देने के लिए देश में कई कानून बनाए गए हैं, लेकिन इनका क्रियान्वयन ज़मीनी स्तर पर कमजोर है। इसी मुद्दे को लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार समेत अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
क्या है मामला?
जबलपुर के तिलहरी निवासी सौरभ सुब्बइया की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि दिव्यांग बच्चों के लिए 1995 से लेकर अब तक कई कानून जैसे:
- दिव्यांग व्यक्तियों का अधिकार अधिनियम
- राष्ट्रीय न्यास अधिनियम
- निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम
बनाए गए हैं, लेकिन इनका पालन अधिकांश स्कूलों में नहीं हो रहा है।
सर्व शिक्षा अभियान के प्रावधानों का भी उल्लंघन
याचिका में कहा गया है कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रत्येक स्कूल में दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष शिक्षक व आवश्यक अधोसंरचना होना अनिवार्य है। लेकिन जबलपुर के लगभग सभी प्रमुख स्कूलों में यह सुविधाएं नदारद हैं।
प्रवेश से इनकार, बुनियादी सुविधाओं का अभाव
याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्होंने कुछ विशेष बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाने का प्रयास किया, लेकिन स्कूलों ने आवश्यक बुनियादी ढांचे और प्रशिक्षित स्टाफ की कमी के चलते उन्हें प्रवेश देने से इनकार कर दिया। जबकि कानून इन बच्चों को सामान्य विद्यालयों में प्रवेश देने और समुचित सुविधाएं देने को बाध्य करता है।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप
मामले की सुनवाई करते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजीव सचदेवा और न्यायमूर्ति विनय सराफ की युगलपीठ ने मामले को गंभीरता से लिया और केंद्र, राज्य सरकार सहित सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करते हुए 22 जुलाई तक जवाब प्रस्तुत करने को कहा है।
मांगी गई यह राहत
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता शिवेंद्र पांडे और अभिमन्यु चौहान ने अदालत से मांग की कि:
सभी बच्चों को समान और समावेशी शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित किया जाए
जबलपुर के हर स्कूल में विशेष शिक्षकों की नियुक्ति अनिवार्य की जाए
आवश्यक अधोसंरचना जैसे रैंप, ब्रेल सामग्री, स्पेशल एजुकेशन टूल्स आदि की व्यवस्था हो