सिर्फ उड़ता नहीं, निशाना भी साधता है, जानिए कैसे करता है काम ये घातक ड्रोन

दुनिया में तकनीक जिस रफ्तार से आगे बढ़ रही है, वह चौंकाने वाली है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने न सिर्फ हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को बदला है, बल्कि युद्ध लड़ने के तरीके को भी पूरी तरह से नया रूप दे दिया है। अब जंग सिर्फ इंसानी ताकत पर नहीं, बल्कि ड्रोन, रोबोट्स और AI टेक्नोलॉजी पर भी निर्भर हो चुकी है।

अब युद्ध के मैदान में इंसान नहीं, मशीनें भी लड़ती हैं

रूस-यूक्रेन युद्ध इसका बड़ा उदाहरण है, जहाँ घातक ड्रोन और AI आधारित तकनीक ने युद्ध को नई दिशा दी है। अब सिर्फ सैनिक ही नहीं, बल्कि तकनीकी हथियार भी दुश्मन पर हमला करते हैं — वो भी बहुत सटीकता के साथ।

युद्ध की सोच से भी तेज़ है तकनीक

ऑस्ट्रेलियाई रक्षा विशेषज्ञ मिक रायन, जो हाल ही में यूक्रेन का दौरा करके लौटे हैं, मानते हैं कि युद्ध तकनीक इतनी तेजी से बदल रही है कि पश्चिमी देशों की सेनाएं भी इसकी रफ्तार को पकड़ नहीं पा रही हैं। अमेरिकी सेना ने हाल ही में एक वीडियो जारी किया जिसमें बताया गया कि कैसे रोबोट और इंसानों की साझेदारी भविष्य के युद्धों को बदल सकती है।

अमेरिका कर रहा है रोबोट्स का परीक्षण

अमेरिका इस समय कम से कम 9 तरह के रोबोट्स पर काम कर रहा है। इनमें कुछ निगरानी के लिए हैं, कुछ दुश्मन की पहचान करने के लिए और कुछ सीधे हमलों के लिए तैयार किए गए हैं। इनका मकसद है — इंसानी सैनिकों की ताकत को कई गुना बढ़ाना।

क्या होते हैं किलर ड्रोन?

किलर ड्रोन आज के आधुनिक युद्धों का सबसे चर्चित और खतरनाक हथियार बन चुके हैं। ये बिना पायलट के उड़ने वाले ऐसे ड्रोन्स होते हैं जो खुद टारगेट की पहचान करके हमला करने में सक्षम होते हैं। इनमें कैमरा, सेंसर, GPS और AI तकनीक लगी होती है जो इन्हें बेहद स्मार्ट बना देती है।

कैसे करते हैं हमला?

किलर ड्रोन दो तरह से काम करते हैं —

  1. इन्हें दूर से इंसान द्वारा कंट्रोल किया जा सकता है
  2. या इन्हें पहले से तय मिशन पर भेजा जाता है जहाँ ये खुद टारगेट ढूंढ़कर हमला कर सकते हैं।

कुछ ड्रोन तो दुश्मन तक पहुंचने के बाद खुद को विस्फोट से उड़ा लेते हैं, जिससे भारी तबाही मचती है।

कहां-कहां हो रहा है इनका इस्तेमाल?

अमेरिका, रूस, चीन, इजराइल और यूक्रेन जैसे देश किलर ड्रोन का सक्रिय रूप से युद्ध में उपयोग कर रहे हैं।

  • रूस-यूक्रेन युद्ध में ये ड्रोन दुश्मन की चौकियों, टैंकों और सैनिकों को तबाह कर चुके हैं।
  • आतंकवाद विरोधी अभियानों, सीमाओं की निगरानी और गुप्त ऑपरेशनों में भी इनका इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है।

जैसे-जैसे तकनीक और तेज़ होती जा रही है, युद्ध का चेहरा भी बदलता जा रहा है। अब ये सिर्फ ताकत की लड़ाई नहीं, बल्कि दिमाग और तकनीक की जंग बन चुकी है।

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