वर्तमान में हमारा देश, शिक्षा व शिक्षण साधनों के अभाव में चल रहा है। कोरोना की वैश्विक महामारी ने करोड़ों बच्चों को लैपटॉप, टैब, मोबाइल के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा लेने, पढ़ने और परीक्षाओं को देने के लिए मजबूर किया है। हालांकि, महामारी के शुरुआती दौर में शिक्षा के इन विकल्पों का स्वागत होते हुए भी देखा गया, और एक साल के इस समय में ऑनलाइन शिक्षा का प्रचलन भी बढ़ते देखा जा रहा है। जिस दौर की कल्पना में हम रोबोट के माध्यम के पढ़ने की कहानियां पढ़ते थे, वह दौर हमारे सामने है और हम उसका हिस्सा हो चुके हैं।
इस संबंध में पीयूष सिंह चौहान का मानना है, “शिक्षा के संसाधनों में जो बढ़ोतरी दिखी है उसका कारण, टेक्नोलॉजी का बढ़ना, और तमाम कलाकारों का विज्ञापन के माध्यम से उस तरीके को लोगों के सामने रखना है। ऐसे अनेकों उदाहरण आप आये दिन देख ही रहे हैं। जिनके माध्यम से आप कभी भी, कहीं भी कुछ भी अध्ययन कर सकते हैं। साथ ही हमें यह भी समझना होगा कि देश की अधिकांश आबादी इससे कोसो दूर है। डिजिटल माध्यमों की पहुंच जिन क्षेत्रों तक अभी नहीं पहुंच पाई है, वहां डिजिटल माध्यमों से पढ़ना सीमित हो जाता है। यही कारण है कि इस एक साल के महामारी काल में बच्चों ने बिल्कुल भी पढ़ाई नहीं की है, क्योंकि संसाधन सीमित हैं और हर व्यक्ति की पहुंच अभी उतनी नहीं बन पाई है कि वह अपने बच्चों को इस स्तर की शिक्षा दें पाएं, क्योंकि इसके लिए पूंजी के साथ-साथ व्यक्तिगत समय देने की भी जरूरत है और यह दौर आजीविका से जूझ रहा है और शिक्षा के लिए तभी सोच पायेगा जब आजीविका का सवाल न हो! यही कारण है कि अब सीखना-पढ़ना तो समाप्त ही हो गया है।
स्कूल में जो माहौल बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए तैयार किया गया था, इस एक साल में उस माहौल या वातावरण की कमी के चलते बच्चों की मानसिक स्थिति पर गहरा प्रभाव पड़ा है। स्कूल में बच्चा सिर्फ पढ़ना – लिखना ही नहीं सीखता, बल्कि अपने जैसे तमाम साथियों में वह अपना सम्पूर्ण विकास कर पाता है, अनेकों नई चीजें सीखने, आगे बढ़ने, जिज्ञासु बनने और अपने अनुसार क्षेत्र विशेष में बेहतर बनने के काबिल बन पाता है। लेकिन बीते एक साल में जो हुआ है वह सब स्कूली वातावरण के विपरीत है। पढ़ाई का अभी तक कोई निश्चित पैटर्न नहीं बन पाया है, पाठ्यक्रम ही बच्चों को ठीक से मालूम नहीं है, क्लास टेस्ट और असाइनमेंट लगभग समाप्त हो चुके हैं, परीक्षाएं आये दिन रद्द या स्थगित की जा रही है। सोचिए, इन दो सालों में हर कक्षा के बैच की वर्तमान स्थिति क्या होगी, और उनका भविष्य कितना भयावह हो सकता है। यह स्थिति डरावनी तो है कि, साथ ही यह भी सोचने को मजबूर करती है कि अगर महामारी की स्थिति बढ़ती है तो बच्चों के भविष्य का क्या होगा?
यह डर बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों को भी है, और इसी डर के चलते लोगों में मानसिक तनाव जैसी स्थिति पनप रही हैं। हम शिक्षक के रूप में छात्रों को प्रेरित और व्यस्त रखने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मुझे वास्तव में लगता है कि यह वह समय है जिसमें सरकार को हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है। यह वास्तव में एक ऐसा मुद्दा है जिसे समय रहते निपटाया जाना चाहिए।”
पीयूष सिंह चौहान एसआर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के वाइस चेयरमैन हैं और एस. आर. कॉलेज और स्कूल दोनों को संचालित करते हैं। पीयूष राउंड ओ’ क्लॉक रिटेल प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ भी हैं, जो थोक उत्पाद निर्माता व आउटलेट कम्पनी है, जिसका कारोबार 100 करोड़ का हो चुका है। इनकी कंपनियों की सुविधाएं साल के हर दिन उपलब्ध रहती हैं।
पीयूष ने इस बात पर भी जोर दिया कि, इस वैश्विक महामारी ने हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था की वास्तविकता को उजागर किया है। अभी तक जिस शिक्षा पद्धति पर हम आगे बढ़ रहे थे, वह पद्धति इस स्थिति में उपयोगी साबित न हो सकी। इसीलिए अब वक़्त आ गया है कि शिक्षा और शिक्षा के साधनों पर पुनः विमर्श हो, शोध हो, शिक्षा और शिक्षण रूप और तरीकों का विकास किया जाए! ताकि हर परिस्थिति में, समाज के हर वर्ग की स्थिति के अनुसार सभी को शिक्षा प्राप्त हो सके। और जैसा कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी के अनुरूप यदि वैश्विक महामारी के दौर को देखें तो यह तमाम अवसर भी लेकर आया है, चीजों को नए रूप और नई दृष्टि से देखने के लिए अवसर देता है। यही वह समय है जब हम अपने-अपने स्तर पर आत्मचिंतन, शोध, प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं। नए विषयों को सीखने और अपनी रुचि के अनुसार कार्य करने का इससे बेहतर अवसर और क्या ही होगा! यदि इस दौर में आप स्वयं की तलाश करते हुए कुछ बेहतर कर जाते हैं, और बेहतर रूप से अपने आप को स्थापित करते हैं तो इससे अच्छा क्या होगा? सोचिए, यह एक अवसर है, एक बेहतर इंसान बनने और बेहतरीन व्यक्तिगत को धारण करने का।
पीयूष आगे बढ़ते हुए और विस्तार से बताते हैं कि बीते एक साल में किस तरह पलायन से लेकर आजीविका तक के लिए जूझने के चलते लोगों के जीवन, आर्थिक स्थिति, और बच्चों की शिक्षा पर गहरा असर पड़ा है। जिन क्षेत्रों में एक वक़्त की रोटी लोगों को नसीब नहीं हो पाई, वहाँ आप बच्चों के लैपटॉप और टैबलेट से पढ़ने की कल्पना भी नहीं की जा सकती, और यह भयावह स्थिति तो हम सभी ने अपने आसपास या फिर TV के माध्यम से देखी है। आंकड़े बताते हैं कि स्कूल लंबे समय तक नहीं खुलने के चलते बच्चों के नामांकन में कमी देखी गयी, छात्र-छात्राओं की एक बड़ी संख्या प्राइवेट स्कूलों से निकल सरकारी स्कूलों में नामांकन करवाने लगे हैं। जिसका कारण है प्राइवेट स्कूलों की महंगी फीस, जिसे वर्तमान समय के आर्थिक संकट में अभिभावकों के द्वारा निर्वहन कर पाना बहुत मुश्किल है। इन्हीं आंकड़ों में यह भी शामिल है कि अधिकांश छात्राएं जो स्कूली शिक्षा पूरी करने वाली थी, उन्होंने अब स्कूल छोड़ दिये हैं और उनके अब स्कूल आने की कोई संभावना नहीं लगती।
पीयूष जी की यह बात उन सभी लोगों को समझनी चाहिए जो शिक्षण संस्थानों को चला रहे हैं। जिसमें वे कहते हैं कि ” यह हमारा कर्तव्य और दायित्व बनता है कि बच्चों के भविष्य को अंधकार में जाने से रोकें और इस डिजिटल दुनिया उनका वर्तमान और भविष्य खोने से बचाया जाए। बदलता दौर कुछ नए बदलावों और मांगों के साथ हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे चुका है, इसमें नया कौशल और नया दृष्टिकोण महत्व रखेगा। महामारी के खत्म होते ही हम उस संकट की दहलीज पर होंगे जहां देश रोज़गार के अभाव में आर्थिक तंगी का शिकार होगा और पुराने कौशल नई संभावनाओं के सामने धराशायी होते दिखेंगे।
हम इस महामारी की स्थिति को तो पार कर जाएंगे, लेकिन उस स्थिति में हमारी वर्तमान पीढ़ी लड़खड़ा सकती है। हमारे बच्चे उस स्थिति में संभल पाएं, इसके लिए हमें अभी से तैयार होना होगा, और सीखने समझने की नई संभावनाएं तलाशनी होंगी ताकि अपने बच्चों के बेहतर भविष्य की रूपरेखा तैयार कर पाएं।
हमें सरकार से अपील करनी होगी कि एक देश के प्रत्येक स्कूल के साथ संवाद स्थापित हो, और वह भी बेहतर नेतृत्व के साथ, जिससे स्कूलों, वहां की शिक्षा व्यवस्था और बच्चों के वर्तमान और भविष्य को बेहतर बनाने के लिए प्रभावी कदम कदम उठाए जा सकें।
डिजिटल माध्यम के द्वारा सिर्फ अध्ययन ही हो सकता है, लेकिन हमें जरूरत है बच्चों के भावनात्मक कौशल, सामाजिक समझ और बौद्धिक विकास को उत्कृष्ट करने की, जो कि डिजिटल पर संभव नहीं है। और यही कौशल बच्चों को उनके जीवन मे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं साथ ही जीवन की हर छोटी बड़ी बाधा में उनका मार्ग प्रशस्त करते हैं।
वर्तमान स्थिति भयावह है यह सब देख रहे हैं, समझ रहे हैं और झेल भी रहे हैं। आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक और यहां तक कि राजनीतिक स्तर पर चीजें अपने सबसे बुरे दौर में हैं। बच्चों की मानसिक स्थिति भला कैसे अछूती रह सकती है, जिसके चलते पढ़ने लिखने में दिलचस्पी का खत्म होना स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। ऑनलाइन कक्षाओं को खाना पूर्ति के लिए किया जा रहा है, उझसे कोई बेहतर परिणाम सामने नहीं आएंगे। जिसके कारण भविष्य स्पष्ट रूप से खतरे में जाता हुआ दिखाई दे रहा है।
इस स्थिति को रोका जा सकता है, अपने बच्चों के भविष्य को बेहतर किया सकता है, इसके लिए हम सभी को मिलकर प्रभावी कदम उठाने होंगे।”
पीयूष सिंह चौहान शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के तीन तरीके सुझाव के रूप में सामने रखते हैं :-
प्राथमिकता के साथ, आर्थिक रूप से कमज़ोर बच्चों हर युवाओं को शिक्षित करने लिए उचित और गुणवत्तापूर्ण डिजिटल शिक्षा प्रणाली से जोड़ा जाए।
सरकार को हस्तक्षेप कर प्रभावी कदम उठाने होंगे, जो बच्चों की शिक्षा को बेहतर रूप दे सकें, जिससे बच्चों का बौद्धिक, सामाजिक और मानसिक विकास हो! क्योंकि शिक्षा के अधिक व्यक्ति का व्यक्तित्व और आचरण महत्वपूर्ण है।
शैक्षणिक संस्थानों को आगे आकर प्रभावी कदम उठाने होंगे, ताकि बच्चों के भविष्य को बेहतर रूप दिया जा सके। जिसके लिए शैक्षणिक क्रियाकलापों, गतिविधियों को विषय के आधार पर बच्चों को देकर उनके रचनात्मक कार्यों और अध्ययन में व्यस्त रखने की कोशिश करनी होंगी।
पीयूष ने अंत में कहा, “भारत के प्रत्येक व्यक्ति के लिए वर्तमान स्थिति के अनुसार बेहतर शिक्षा की व्यवस्था करके ही देश, देश की जनता और सम्पूर्ण दुनिया के वर्तमान और भविष्य को बेहतर रूप दिया जा सकता है। अगले दशक में हमारे देश की युवा आबादी सबसे अधिक होने जा रही है, हमारी शिक्षा व्यवस्था और बेहतर शिक्षा दे पाने की क्षमता ही देश का फैसला करेगी। इसके लिए मेरे जैसे, आपके जैसे, उन सभी लोगों के जैसे लोगों को सामने आना होगा जो इस क्षेत्र में अपनी भूमिका के ज़रिए सकारात्मक और प्रभावी कदम उठा पाने में सक्षम हैं।”