
पिछले कुछ वर्षों में म्यूचुअल फंड्स की बढ़ती लोकप्रियता के बीच एक बड़ा रुझान सामने आया है पैसिव इन्वेस्टिंग की ओर निवेशकों का झुकाव। इक्विटी, बॉन्ड और कमोडिटी से जुड़े इंडेक्स को ट्रैक करने वाले म्यूचुअल फंड्स में निवेशक तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।
सितंबर 2021 से सितंबर 2025 के बीच पैसिव फंड्स का प्रबंधनाधीन संपत्ति (AUM) लगभग तीन गुना (2.8 गुना) बढ़कर ₹4 ट्रिलियन से ₹11.2 ट्रिलियन पहुंच गया। एएमएफआई (AMFI) के आंकड़ों के अनुसार, कुल म्यूचुअल फंड उद्योग की संपत्ति में इन फंड्स की हिस्सेदारी 5% से बढ़कर 17% हो गई है।
निवेश के विस्तृत विकल्प
आज इंडेक्स फंड्स केवल प्रमुख सूचकांकों तक सीमित नहीं हैं। वे कई प्रकारों में उपलब्ध हैं:
- मार्केट कैपिटलाइजेशन आधारित फंड्स: पहले केवल निफ्टी 50 या सेंसेक्स को ट्रैक करने वाले फंड्स होते थे, लेकिन अब निफ्टी 100, निफ्टी स्मॉलकैप 250, निफ्टी मिडकैप 150, निफ्टी लार्ज मिडकैप 250 और निफ्टी 500 जैसे कई विकल्प हैं। इससे निवेशक अपने जोखिम स्तर के अनुसार फंड चुन सकते हैं।
- फैक्टर या स्मार्ट-बीटा आधारित फंड्स: जो निवेशक किसी विशेष निवेश शैली जैसे वैल्यू, मोमेंटम, क्वालिटी या डिविडेंड यील्ड में दिलचस्पी रखते हैं, उनके लिए भी पैसिव प्रोडक्ट्स मौजूद हैं।
- सेक्टर आधारित फंड्स: ऐसे निवेशक जो किसी खास सेक्टर में लंबी अवधि की संभावनाएं देखते हैं, उनके लिए बैंकिंग, ऑटोमोबाइल, आईटी, फार्मा आदि क्षेत्रों को ट्रैक करने वाले पैसिव फंड्स उपलब्ध हैं।
- डेट आधारित फंड्स: अब निश्चित आय (Fixed Income) में भी पैसिव फंड्स का विकल्प है। ये फंड्स सरकारी प्रतिभूतियों, राज्य विकास ऋणों या पीएसयू बॉन्ड्स जैसे सूचकांकों को ट्रैक करते हैं। टारगेट मैच्योरिटी फंड्स भी उपलब्ध हैं, जो विशेष वर्षों में परिपक्व होते हैं और निवेशकों के वित्तीय लक्ष्यों से मेल खाते हैं।
- कमोडिटी आधारित फंड्स: सोना या चांदी जैसी धातुओं में निवेश चाहने वालों के लिए ईटीएफ्स मौजूद हैं। जिन निवेशकों के पास डीमैट खाता नहीं है, उनके लिए ऐसे फंड ऑफ फंड्स उपलब्ध हैं जो इन ईटीएफ्स में निवेश करते हैं।
- मल्टी-एसेट फंड्स: ये पैसिव फंड्स इक्विटी, डेट और कमोडिटी में संतुलित निवेश करते हैं, जिससे पोर्टफोलियो में विविधता आती है।
पैसिव इन्वेस्टिंग के लाभ
निवेशकों के लिए पैसिव फंड्स कई फायदे प्रदान करते हैं।
पहला, यह निवेशक की जरूरत और जोखिम सहनशीलता के अनुसार पोर्टफोलियो बनाने की लचीलापन देता है। कोई निवेशक अपने मुख्य निवेश हिस्से को Active Funds में रख सकता है और सहायक हिस्से को पैसिव फंड्स में लगा सकता है।
दूसरा, एसेट एलोकेशन आसान हो जाता है क्योंकि पैसिव फंड्स अब लगभग सभी परिसंपत्ति वर्गों (Asset Classes) में उपलब्ध हैं।
तीसरा, ये फंड्स नियम-आधारित सूचकांकों को ट्रैक करते हैं जिन्हें समय-समय पर (आमतौर पर तिमाही या छमाही में) पुनर्संतुलित किया जाता है।
चौथा, इन फंड्स की लागत बहुत कम होती है क्योंकि इनमें फंड मैनेजर का हस्तक्षेप नहीं होता, जिससे एक्सपेंस रेशियो न्यूनतम रहता है।
पांचवां, इनके लेन-देन की प्रक्रिया सरल और पारदर्शी होती है। ईटीएफ्स एक्सचेंज पर खरीदे-बेचे जा सकते हैं, जबकि इंडेक्स फंड्स सीधे फंड हाउस से लिए जा सकते हैं।
नए निवेशकों के लिए यह सलाह दी जाती है कि निवेश से पहले अपने पंजीकृत वित्तीय सलाहकार से परामर्श अवश्य करें ताकि सही निर्णय लिया जा सके।
- चिंतन हरिया, प्रिंसिपल – इन्वेस्टमेंट स्ट्रेट्जी, आईसीआईसीआई प्रुडेंशियल एएमसी















