
आज के समय में घर को ठंडा और आरामदायक बनाए रखने के लिए एयर कंडीशनर (AC) एक ज़रूरी उपकरण बन चुका है। गर्मियों में लोग अपने घरों में एसी लगवाना पसंद करते हैं, लेकिन अक्सर इन्वर्टर और नॉन-इन्वर्टर एसी को लेकर भ्रम की स्थिति बन जाती है। आइए आसान भाषा में समझते हैं कि इन दोनों में क्या फर्क है।
कंप्रेसर में अंतर
इन्वर्टर एसी में ऐसा कंप्रेसर होता है जिसकी स्पीड कमरे के तापमान के हिसाब से घटाई-बढ़ाई जा सकती है। मतलब, अगर कमरे का तापमान कम है तो कंप्रेसर धीमा चलेगा, और अगर ज़्यादा है तो तेज़। वहीं, नॉन-इन्वर्टर एसी में कंप्रेसर या तो पूरी तरह चालू रहता है या पूरी तरह बंद। इस कारण नॉन-इन्वर्टर एसी में बिजली की खपत ज़्यादा होती है और शोर भी ज़्यादा होता है।
बिजली की बचत
इन्वर्टर एसी में स्मार्ट तकनीक होती है जो कमरे की ज़रूरत के अनुसार काम करती है। इससे न सिर्फ बिजली की बचत होती है बल्कि तापमान भी स्थिर बना रहता है। यह तकनीक बाहरी तापमान और कमरे में मौजूद लोगों की संख्या को ध्यान में रखते हुए एसी की परफॉर्मेंस को एडजस्ट करती है।
PWM टेक्नोलॉजी का उपयोग
इन्वर्टर एसी में ‘पल्स विड्थ मॉडुलेशन’ (PWM) तकनीक का इस्तेमाल होता है, जिससे कंप्रेसर लगातार एक स्थिर स्पीड से चलता है। इसका फायदा यह होता है कि मशीन पर कम दबाव पड़ता है, कूलिंग तेज़ होती है और एसी की उम्र भी बढ़ती है।
पर्यावरण के अनुकूल रेफ्रिजरेंट
इन्वर्टर एसी में आमतौर पर R32 जैसे इको-फ्रेंडली रेफ्रिजरेंट का उपयोग किया जाता है जो पर्यावरण के लिए सुरक्षित होते हैं और अच्छी कूलिंग भी देते हैं। जबकि नॉन-इन्वर्टर एसी अब भी पुराने प्रकार के रेफ्रिजरेंट पर निर्भर होते हैं जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
नमी हटाने में सक्षम
इन्वर्टर एसी की एक बड़ी खासियत यह है कि यह हवा से नमी को बेहतर तरीके से निकाल सकता है। खासकर उन जगहों पर जहां ज्यादा उमस होती है, वहां इन्वर्टर एसी ज़्यादा असरदार साबित होता है।
कीमत और चलाने की लागत
हालांकि इन्वर्टर एसी की शुरुआती कीमत थोड़ी ज़्यादा होती है, लेकिन यह लंबे समय में बिजली की बचत और कम रख-रखाव के कारण ज़्यादा किफायती साबित होता है। दूसरी ओर, नॉन-इन्वर्टर एसी सस्ते मिलते हैं लेकिन उनकी ऑपरेटिंग कॉस्ट ज़्यादा होती है और लाइफ भी कम होती है।