
बेंगलुरु। देश के वैज्ञानिकों ने ऐसी नई तकनीक विकसित की है, जिससे जिंक-आयन बैटरियां अब ज्यादा ऊर्जा स्टोर कर सकेंगी, ज्यादा समय तक चलेंगी और पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुंचायेंगी। यह तकनीक भविष्य में लिथियम बैटरियों का बेहतर और सुरक्षित विकल्प बन सकती है।
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार,यह उपलब्धि सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत हासिल की। शोध टीम का नेतृत्व डॉ. अशुतोष कुमार सिंह ने किया।
वैज्ञानिकों ने बताया कि उन्होंने पारंपरिक वैनाडियम ऑक्साइड नामक पदार्थ को एक विशेष ऊष्मीय–विद्युत रासायनिक प्रक्रिया से इस तरह बदला कि उसकी संरचना ज्यादा ऊर्जा संचित करने योग्य हो गई। इस प्रक्रिया के बाद बनने वाला नया पदार्थ जिंक–वैनाडियम ऑक्साइड बैटरी में जिंक आयन की आवाजाही को आसान बनाता है, जिससे बैटरी तेजी से चार्ज होती है, ज्यादा ऊर्जा स्टोर करती है और लंबे समय तक खराब नहीं होती।
अब तक वैज्ञानिक कई तरह के ऑक्साइड पदार्थों को जिंक-आयन बैटरियों में इस्तेमाल करने की कोशिश कर चुके थे, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। ऐसे में भारतीय वैज्ञानिकों की यह खोज जिंक-आयन बैटरी तकनीक में बड़ी प्रगति मानी जा रही है। यह शोध एडवांस्ड एनर्जी मैटेरियल्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
शोध के सह-लेखक राहुल देब रॉय ने कहा कि टीम ने कैथोड पदार्थ को स्थिर और अधिक सक्षम बनाने के लिए एक बहुत ही सरल लेकिन बेहद प्रभावी तरीका अपनाया है। यह तकनीक भविष्य में अन्य बैटरी पदार्थों को बेहतर बनाने में भी उपयोगी हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह खोज आने वाले समय में हरित ऊर्जा और टिकाऊ बैटरी तकनीक को नया दिशा देगी।














