
नई दिल्ली। भारतीय सेना जल्द ही पुरानी हो चुकी स्टर्लिंग कार्बाइन की जगह आधुनिक और स्वदेशी सीक्यूबी (क्लोज क्वार्टर बैटल) कार्बाइन का उपयोग करती नजर आएगी। यह महत्वपूर्ण रक्षा अनुबंध रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारत फोर्ज लिमिटेड को दिया गया है, जिसकी अनुमानित लागत 2,000 करोड़ रुपये है।
DRDO और भारत फोर्ज को मिली बड़ी जिम्मेदारी
सेना की प्रमुख खरीद निविदा (RFP) में DRDO और भारत फोर्ज लिमिटेड की साझेदारी को एल1 बोलीदाता चुना गया है। यह निर्णय सभी तकनीकी मानकों को पूरा करने और सबसे प्रतिस्पर्धी मूल्य देने के आधार पर लिया गया।
कार्बाइन का उत्पादन भारत फोर्ज की पुणे स्थित सहायक कंपनी – कल्याणी स्ट्रेटेजिक सिस्टम्स लिमिटेड की यूनिट में किया जाएगा।
INSAS के बाद सबसे बड़ा स्वदेशी हथियार अनुबंध
यह अनुबंध 2000 के दशक में सेना में INSAS राइफल शामिल होने के बाद से अब तक का सबसे बड़ा स्वदेशी हथियार अनुबंध है। इससे भारत में डिजाइन, विकास और उत्पादन पर आधारित आत्मनिर्भर रक्षा क्षेत्र को बड़ी मजबूती मिलेगी।
स्टर्लिंग कार्बाइन होगी रिटायर
भारतीय सेना अभी 1940 के दशक में डिजाइन की गई स्टर्लिंग सब मशीन गन का उपयोग करती है। लेकिन बदलते युद्ध परिदृश्य और तकनीकी जरूरतों को देखते हुए इसे पुराना और अप्रभावी माना जा रहा था। इसके स्थान पर अब नई 5.56×45 मिमी सीक्यूबी कार्बाइन सेना को मिलेगी।
नई कार्बाइन की विशेषताएं
- हल्का वजन, जिससे सैनिकों की गतिशीलता में सुविधा।
- नजदीकी लड़ाई (CQB) के लिए उपयुक्त।
- ऑप्टिक्स, लेजर डिजाइनर और अटैचमेंट्स जैसे आधुनिक फीचर्स से लैस।
- DRDO के आयुध अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (ARDE), पुणे द्वारा डिज़ाइन और भारत फोर्ज द्वारा निर्मित।
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