
India’s stance on russia and america: भारत पाक टेंशन के बीच ये कयास लगाए जा रहे थे, कि कम से कम भारत का पुराना दोस्त रूस इंडिया के साथ खड़ा होगा। रूस लम्बे समय से भारत का साथ देता रहा है पर 2025 आते आते, रूस और भारत के बीच के रिस्तों में वो गर्मजोशी नहीं नजर आयी है। हालाँकि भारत पाक टेंशन पर रूस ने टिप्पणी की थी कि इस मुद्दे पर दोनों देशों को साथ बैठकर बात करनी चाहिए और मुद्दे को हल करना चाहिये लेकिन पहले की तरह खुल कर इंडिया के साथ खड़ा नहीं हुआ। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है अमेरिका के साथ भारत की करीबी…रूस यूक्रेन वार के बीच भारत का सीधा स्टैंड किसी एक पक्ष में नहीं था, जबकि पुतिन को इस तनाव के पीछे अमेरिका की चाल लगती है, और भारत की अमेरिका से करीबी के कारण ही रूस भारत से खंफा है।
अमेरिका द्वारा एशिया पैसिफिक को इंडो पैसिफिक बुलाने पर पिछले सप्ताह रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने कहा था कि पश्चिम के देश भारत और चीन को एक दूसरे के ख़िलाफ़ कर तनाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। लावरोव के अनुसार पश्चिम के देश अपना प्रभुत्व ज़माने के लिए भारत और उसके पड़ोसी चीन के बीच टकराव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। लावरोव ने कहा था कि, ”पश्चिम के देशों ने एशिया-पैसिफिक को इंडो-पैसिफिक कहना शुरू कर दिया है, स्पष्ट है कि पश्चिम चीन विरोधी नीति को हवा दे रहा है। रूसी विदेश मंत्री इससे पहले भी भारत और चीन के संबंधों में पश्चिम की भूमिका की आलोचना कर चुके है।
दिसंबर 2020 में लावरोव ने कहा था, “पश्चिम एकध्रुवीय विश्व बहाल करना चाहता है. मगर रूस और चीन उसके मातहत नहीं होंगे, भारत अभी एशिया-पैसिफ़िक में क्वॉड जैसे पश्चिमी देशों के संगठन के कारण चीन-विरोधी नीति का एक मोहरा बना हुआ है। पश्चिम के देश रूस और भारत के संबंधों को भी कमज़ोर करना चाहते हैं। क्वॉड में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत हैं। रूस इसे चीन विरोधी गुट मानता है।
गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से चीन और रूस के रिश्ते काफी मजबूत हुए है, और इंडिया को लगता है कि चीन और भारत सीमा विवाद में अमेरिका भारत के साथ खड़ा है, और कहीं न कहीं इसमें थोड़ी सच्चाई भी है, 1962 इंडो चाइना वार के समय अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी खुल कर भारत के समर्थन में नजर आय थे, प्रभुत्व की लड़ाई में लम्बे समय से चीन और अमेरिका एक दूसरे के धुर विरोधी बने हुए और अमेरिका को लगता है कि चीन को पछाड़ने के लिए भारत से अच्छा कोई और नहीं हो सकता, मायने अमेरिका का भारत को सपोर्ट अपना काम निकलवाने से कम नहीं है।
अब सवाल ये उठता है कि भारत किसी एक धड़े को पकड़ कर उसके साथ होगा या रूस और अमेरिका दोनों के साथ दोस्ती चलाने में कामयाब होगा ?
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