भारत कोई धर्मशाला नहीं, हर शरणार्थी को नहीं दी जा सकती पनाह…आखिर क्यों कहा सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा

नई दिल्‍ली : सुप्रीम कोर्ट में श्रीलंका के एक तमिल शरणार्थी ने याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि वह बिना निर्वासन प्रक्रिया के लगभग तीन वर्षों से नजरबंद है और अब उसे भारत में रहने की इजाजत दी जाए क्योंकि अपने देश लौटने पर उसकी जान को खतरा है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने सख्त लहजे में कहा –

“भारत कोई धर्मशाला नहीं है। हम 140 करोड़ लोगों के साथ पहले से ही संघर्ष कर रहे हैं, हर देश से आए शरणार्थियों को हम शरण नहीं दे सकते।”

उन्होंने आगे यह भी स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 19 केवल भारतीय नागरिकों को भारत में बसने का अधिकार देता है, न कि विदेशी नागरिकों को।

हाई कोर्ट का आदेश बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश को भी बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्ता को UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत सजा पूरी होते ही भारत छोड़ना होगा और तब तक वह शरणार्थी शिविर में रह सकता है।

UAPA के तहत दोषी

  • याचिकाकर्ता को 2015 में LTTE से जुड़े होने के संदेह में गिरफ्तार किया गया था।
  • 2018 में ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया और 10 साल की सजा सुनाई।
  • 2022 में सजा घटाकर 7 साल कर दी गई, लेकिन साथ ही भारत से निष्कासन का आदेश भी दिया गया।

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सुप्रीम कोर्ट का अंतिम संदेश
“अगर अपने देश में खतरा है, तो किसी और देश चले जाइए। भारत में बसने का कोई कानूनी अधिकार आपको प्राप्त नहीं है।”

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