
रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) आज के समय की सबसे अहम धातुओं में गिनी जाती हैं। स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक गाड़ियां, सोलर पैनल, विंड टर्बाइन, और मिसाइल-सैटेलाइट जैसे अत्याधुनिक उपकरण इन्हीं मेटल्स पर टिके हैं। ये कुल 17 दुर्लभ तत्वों का समूह हैं, जिनके बिना आधुनिक तकनीक अधूरी मानी जाती है।
भारत के पास है बड़ा खजाना
भारत के पास इन धातुओं का विशाल भंडार मौजूद है। ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों के तटीय इलाकों में पाई जाने वाली मोनाजाइट रेत में ये मेटल्स बड़ी मात्रा में मिलते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत दुनिया में रेयर अर्थ मेटल्स के भंडार के मामले में तीसरे नंबर पर है – चीन और ब्राजील के बाद।
फिर भी उत्पादन में क्यों पिछड़ा भारत?
इतना बड़ा भंडार होने के बावजूद भारत आज भी इन मेटल्स के लिए चीन पर निर्भर है। इसके पीछे कई वजहें हैं:
1. तकनीकी और आधारभूत ढांचे की कमी
रेयर अर्थ मेटल्स का खनन और रिफाइनिंग बेहद जटिल और महंगी प्रक्रिया है। इसे जमीन से निकालने के लिए विशेष मशीनें, अत्याधुनिक तकनीक और कुशल विशेषज्ञों की जरूरत होती है – जिनकी भारत में अब भी भारी कमी है।
2. पर्यावरणीय नियम और चुनौतियाँ
खनन के दौरान कई तरह के हानिकारक रसायन और रेडियोधर्मी तत्व निकलते हैं, जो मिट्टी, पानी और हवा को प्रदूषित कर सकते हैं। भारत में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर कड़े नियम लागू हैं, जो जरूरी भी हैं, लेकिन इनसे खनन प्रक्रिया धीमी और खर्चीली हो जाती है।
3. चीन की आक्रामक रणनीति
चीन ने न सिर्फ तकनीकी मोर्चे पर बढ़त ली है, बल्कि भारी निवेश, सस्ती मजदूरी और ढीले पर्यावरण नियमों का फायदा उठाकर पूरी दुनिया की सप्लाई चेन पर पकड़ बना ली है। आज वैश्विक REE उत्पादन का करीब 70% हिस्सा अकेले चीन से आता है
भारत में क्या हो रहा है इस दिशा में?
भारत में इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) जैसी कुछ सरकारी कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं, लेकिन संसाधनों और तकनीक की कमी के कारण इनकी क्षमता सीमित है। सरकार ने हाल के वर्षों में इस सेक्टर में निजी निवेश को बढ़ावा देने की दिशा में कदम जरूर उठाए हैं, लेकिन काम अभी शुरुआती चरण में ही है।
आगे क्या किया जा सकता है?
तकनीकी साझेदारी और निवेश बढ़ाना
भारत को चाहिए कि वह विदेशी कंपनियों और तकनीकी विशेषज्ञों के साथ साझेदारी करे ताकि उन्नत माइनिंग और रिफाइनिंग तकनीकों को अपनाया जा सके।
सतत और पर्यावरण-सुरक्षित खनन पर ज़ोर
नई टेक्नोलॉजी के सहारे ऐसे खनन तरीके विकसित करने होंगे, जो पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाएं।
रीसाइक्लिंग को बढ़ावा देना
पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से रेयर अर्थ मेटल्स निकालने की तकनीकों में निवेश बढ़ाना होगा।
स्किल डेवलपमेंट और रिसर्च
देश में इस क्षेत्र के लिए विशेषज्ञ तैयार करने होंगे – यानी युवाओं को इस क्षेत्र से जोड़ने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और रिसर्च संस्थान खोलने होंगे।
क्यों अहम हैं रेयर अर्थ मेटल्स?
रेयर अर्थ मेटल्स आने वाले समय की ग्रीन और डिजिटल इकॉनमी का मूल आधार बनने वाले हैं। बैटरियों से लेकर रक्षा तकनीक और सोलर एनर्जी तक – हर क्षेत्र में इनकी जरूरत बढ़ रही है।
अगर भारत अपने संसाधनों का सही तरीके से दोहन कर पाए, तो न सिर्फ आत्मनिर्भर बन सकता है, बल्कि वैश्विक बाजार में एक बड़ी ताकत भी बन सकता है।