सिसाना गांव के तालाब के भाग्य में पानी के अतिरिक्त दुर्गंध और कूड़ा कचरा

भास्कर समाचार सेवा

बागपत। जल जीवन मिशन के अन्तर्गत शायद ही सिसाना गांव के तालाब के भाग्य में पानी के अतिरिक्त दुर्गंध शील्ट और कूड़ा कचरा ही लिखा हो, तभी तो जिले के आला अधिकारी से दो सौ – ढाई सौ मीटर की दूरी पर यह तालाब समतल से भी ऊंचा हो जाने के बावजूद सभी की निगाहों से ओझल रहता है।इस तालाब का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जनपद के जनप्रिय जिलाधिकारी की लगन, मेहनत और दिशा निर्देशों के चलते जहां चहुंमुखी विकास और नवीन योजनाओं को अमल में लाने की कवायद मूर्त रूप ले रही हैं तथा बेमिसाल बागपत स्लोगन में ही नहीं, यथार्थ में मंत्रियों तक से भी पीठ थपथपाई कर चुके है, लेकिन यह तालाब गहराई के बदले समतल होने के बाद ऊंचाई ले रहा है, किंतु इसकी तरफ निगाहें करम नहीं हो सकीं हैं।दिल्ली सहारनपुर हाईवे यानि 709 बी राष्ट्रीय राजमार्ग पर यह तालाब अपनी जल ग्राह्य क्षमता कई वर्षों से खो चुका है , जिस कारण मुख्य मार्ग पर जल भराव के कारण बने गड्ढों की वर्ष में चार से पांच बार सडक पर मरम्मत तो कराई गई किंतु मुख्य कारण यह तालाब किसी की नजर में नहीं आ सका।गांव के प्रबुद्ध युवा अनिल का कहना है कि, इस तालाब का बहुत पहले सौंदर्यीकरण हुआ था, किंतु बाद में साफ सफाई की ओर किसी का ध्यान नहीं गया जिससे हालत बदतर होती चली गई। अब तीन तरफ बस्ती और एक तरफ राष्ट्रीय राजमार्ग, फिर भी किसी अधिकारी का ध्यान इस ओर न जाना, चिंता का नहीं, तालाब के अथवा गांव के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।गांव के ही नितिन पुत्र धीर सिंह ज्वलंत समस्याओं पर अधिकारियों से यूं तो नित्य प्रति मिलते रहते हैं ,किंतु तालाब का मसला लघु सिंचाई विभाग के समक्ष रखने के बावजूद अभी तक उम्मीद से आगे मूर्त रूप नहीं दिला सके हैं।सुनील पुत्र आनंद के अनुसार तालाब की सफाई बाद चारों तरफ बैंच , गमले और हरियाली एक बार प्रशासन ने कराई थी, उसके 25 वर्ष बाद मुख्य मार्ग पर तथा गाँव में भी जलभराव की समस्या तथा गंदगी से मुक्ति के लिए जोर शोर से प्रचार और अभियान तो चले ,किंतु तालाब की सफाई व खोदाई कराने के लिए न तो किसी अधिकारी ने ध्यान दिया और न ही जनप्रतिनिधि ने,इसीलिए यह तालाब का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि, वर्षाजल के लिए हार्वेस्टिंग सिस्टम का यह मुख्य घटक तालाब, जो कभी नायाब दिखता था, अब अपनी हालत पर बरबादी के आंसू बहाने के लिए भी दो चार बूंदें टपकाने की सामर्थ्य भी खो चुका है।

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