
India Relation with Russia and US : लंबे समय से भारत और रूस के व्यापारिक रिश्ते काफी अच्छे चल रहे हैं। लेकिन अब मानो अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नजर भारत और रूस की दोस्ती पर पड़ गई है, जिसमें खटास पड़ने की आशंका गहराती जा रही है। पिछले कुछ सालों में भारत ने रूस से सस्ते दामोें में तेल खरीद कर अरबों डॉलर बचाए हैं। लेकिन अब ट्रंप ऐसा नहीं होने देना चाहते हैं, तभी उन्होंने भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाकर रूस से तेल खरीदने पर लगाम लगाने का प्रयास कर रहे हैं। जिससे भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
फिलहाल, लगातार अमेरिका द्वारा दबाव बनाने के चलते भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले महीने सितंबर में यूएस जाएंगे और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात कर सकते हैं। उधर, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रूस जाने का ऐलान किया है। यानी रूस और अमेरिका के बीच सामंजस्य बिठाते हुए भारत दोनों ही देशों के साथ रिश्ते निभाने का प्रयास कर रहा है। एक तरफ भारत यह प्रयास कर रहा है कि रूस के साथ उसके व्यापारिक रिश्ते बिगड़े नहीं और दूसरी तरफ अमेरिका के साथ भी रिश्ते सुधर जाए।
क्या भारत अपने रूसी तेल आयात को बंद कर देगा?
अमेरिका ने रूस से तेल खरीदने पर 50% टैक्स लगाकर भारत पर सबसे बड़ा टैरिफ लगाया है। इससे भारत का तेल आयात महंगा हो जाएगा और देश का ईंधन बिल काफ़ी बढ़ सकता है। भारत ने रूस से सस्ते तेल का लाभ उठाकर अरबों डॉलर की बचत की है, लेकिन इस नई टैरिफ ने उस बचत को खतरे में डाल दिया है।
वर्तमान में भारत लगभग 35% कच्चे तेल का आयात रूस से करता है। यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत ने रूस से तेल की खरीद बढ़ाई है, जिससे उसकी आयात लागत में कमी आई है। यदि भारत रूस से तेल खरीदना बंद कर देता है, तो उसकी ऊर्जा सुरक्षा पर असर पड़ेगा और ईंधन की कीमतें और भी बढ़ सकती हैं।
अमेरिकी यात्रा से क्या रूस-भारत संबंधों पर पड़ेगा असर?
रूस और भारत के बीच पारंपरिक रूप से मजबूत रणनीतिक और सैन्य संबंध रहे हैं। भारत रूस से हथियार, ऊर्जा और तकनीकी सहयोग प्राप्त करता रहा है। अमेरिका के इस दबाव के चलते कहीं न कहीं इन संबंधों पर असर पड़ने का खतरा है। यदि भारत अपने रूस से तेल खरीदने से हाथ खींचता है, तो रूस की प्रतिक्रिया क्या होगी? यह सवाल भी उठ रहा है।
क्या भारत अमेरिका के दबाव में झुकेगा?
भारत का रूसी तेल पर निर्भरता अधिक है, खासकर यूक्रेन युद्ध के बाद। यदि अमेरिका का दबाव जारी रहता है, तो भारत को अपने ऊर्जा स्रोतों को विविधता बनाना पड़ेगा। इससे उसकी स्वतंत्रता और रणनीतिक स्वायत्तता पर असर पड़ सकता है। वहीं, भारत का वर्तमान मकसद ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों को बनाए रखना है।
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