
शिमला : अमेरिका की ओर से फार्मास्यूटिकल्स पर टैरिफ लगाने की संभावित घोषणा ने भारत के दवा उद्योग को चिंता में डाल दिया है, खासकर हिमाचल प्रदेश में। प्रदेश में सक्रिय करीब 650 फार्मा कंपनियों में से 270 ऐसी हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) प्रमाणित हैं और दवाओं का निर्यात करती हैं। अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाए जाने की स्थिति में इन कंपनियों पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है।
10,000 करोड़ का सालाना निर्यात दांव पर
हिमाचल से हर साल करीब ₹10,000 करोड़ मूल्य की दवाएं अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में निर्यात की जाती हैं, जिनमें अमेरिका एक बड़ा आयातक है। अभी तक भारत से अमेरिका को निर्यात की जाने वाली दवाओं पर कोई टैरिफ नहीं लगता, जबकि भारत अमेरिका से आने वाली दवाओं पर 10% टैरिफ लगाता है।
🇺🇸 अमेरिका का बदलता रुख और संभावित असर
पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा शुरू की गई “रेसिप्रोकल टैरिफ” नीति के तहत फार्मास्यूटिकल्स पर शुरुआती छूट दी गई थी, क्योंकि भारत से आने वाली सस्ती जेनेरिक दवाएं अमेरिकी हेल्थ सिस्टम की लागत कम करने में मदद करती थीं। हालांकि अब ट्रंप के हालिया बयानों से संकेत मिल रहे हैं कि फार्मास्युटिकल सेक्टर पर छूट समाप्त की जा सकती है।
9 जुलाई तक टला फैसला
अमेरिका ने 2 अप्रैल को भारत पर 27% रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की बात कही थी, लेकिन बाद में इसे 90 दिनों के लिए टालते हुए 9 जुलाई तक का समय दिया गया है। यह टालमटोल स्थिति हिमाचल के फार्मा उद्योग के लिए असमंजस भरी बनी हुई है।
हिमाचल फार्मा हब
- भारत के कुल दवा उत्पादन का 35% हिमाचल में होता है।
- बद्दी क्षेत्र में कई बड़ी घरेलू और बहुराष्ट्रीय कंपनियां सक्रिय हैं।
- यहाँ तैयार दवाएं न सिर्फ अमेरिका, बल्कि अफ्रीका, एशिया और यूरोप के बाजारों में भी जाती हैं।
क्या बोले अधिकारी और उद्योग मंत्री
हर्षवर्धन सिंह चौहान, उद्योग मंत्री, हिमाचल प्रदेश:
“अगर अमेरिका द्वारा टैरिफ लगाया जाता है तो हम केंद्र सरकार से इस पर बात उठाएंगे। आने वाले 90 दिन बेहद अहम होंगे।”
सतीश कुमार सिंघल, चेयरमैन, हिमाचल ड्रग मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन:
“हम अमेरिका के रुख पर नजर बनाए हुए हैं। पहले भारत की दवाओं पर कोई टैरिफ नहीं था, लेकिन अब स्थिति बदल सकती है। यह चिंता का विषय है।”