
लखनऊ। राजधानी लखनऊ में स्वास्थ्य सुविधाओं की ज़मीनी हकीकत डराने वाली है। फैजुल्लागंज के पुराने दाउदनगर स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) की हालत देखकर कोई भी कह सकता है कि यहां स्वास्थ्य व्यवस्था ‘आईसीयू’ में है। यह केंद्र सिर्फ नाम का अस्पताल है, जहां न डॉक्टर हैं, न स्टाफ, और न ही बुनियादी सुविधाएं।
डॉक्टर नहीं, इलाज नहीं – मरीज कहां जाएं?

प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक वार्डबॉय, एक फार्मासिस्ट और एक एएमओ (सहायक चिकित्सा अधिकारी) तैनात हैं, जबकि केंद्र पर डॉक्टरों की भारी कमी है। नतीजा ये कि लोग इलाज के लिए यहां नहीं आते। सरकारी अस्पताल में डॉक्टर न हो तो लोग मजबूरी में महंगे प्राइवेट क्लीनिकों की ओर रुख करते हैं।
खंडहर में तब्दील आवास – कौन करेगा यहां ड्यूटी?
इस स्वास्थ्य केंद्र में मेडिकल स्टाफ के लिए जो आवास बने थे, वो अब खंडहर बन चुके हैं। न पानी की व्यवस्था है, न साफ-सफाई, न ही कोई सुरक्षा। ऐसे में कोई डॉक्टर यहां टिकना भी नहीं चाहता।
4 बेड का अस्पताल – सिर्फ दिखावे के लिए
पुराना दाउदनगर PHC में कुल चार बेड हैं, लेकिन ये भी सिर्फ दिखावे के लिए हैं। न मरीज हैं, न व्यवस्था। अस्पताल का नाम पोर्टल पर तक दर्ज नहीं है, जिससे यह स्पष्ट है कि शासन-प्रशासन की निगरानी में यह अस्पताल कहीं नहीं आता।
क्या जानबूझकर नहीं दी जा रही सुविधाएं?
स्थानीय लोग सवाल उठाते हैं – “क्या अधिकारी नहीं चाहते कि जनता को सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ मिले?” लगातार स्टाफ की कमी और खराब व्यवस्थाएं यही इशारा करती हैं कि स्वास्थ्य विभाग सिर्फ खानापूर्ति कर रहा है।
जरूरत है ईमानदार समीक्षा और कार्रवाई की
अगर शासन सच में चाहता है कि आम लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिलें, तो लखनऊ जैसे शहर में इन उपेक्षित स्वास्थ्य केंद्रों की गहन समीक्षा कर ठोस कार्रवाई की जाए। नहीं तो ये केंद्र बीमारियों से लड़ने के बजाय खुद बीमारियों का अड्डा बन जाएंगे।
सरकारी अस्पतालों की तस्वीर बदलनी है, तो असली इलाज ‘व्यवस्था’ का होना ज़रूरी है।
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