कैसे पहुंचा भारत आपातकाल तक: इंदिरा गांधी की सत्ता से कांग्रेस की हार तक की पूरी कहानी

नई दिल्ली। 25 जून 1975 की आधी रात, भारत के लोकतंत्र के इतिहास में वह घड़ी आई, जिसे आज भी ‘सबसे काले अध्याय’ के रूप में याद किया जाता है। इसी रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल (Emergency) की घोषणा कर दी। इसके साथ ही नागरिक अधिकारों पर अंकुश लग गया, विपक्षी नेता जेलों में डाल दिए गए और मीडिया पर सेंसरशिप थोप दी गई।

लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसी स्थिति आई क्यों? आइए घटनाओं की श्रृंखला में समझते हैं कि 1966 से लेकर 1977 तक कैसे भारत को आपातकाल के दौर से गुजरना पड़ा।

1966: इंदिरा गांधी बनीं प्रधानमंत्री

प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को देश का तीसरा प्रधानमंत्री चुना। शुरू में उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ कहा गया, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी राजनीतिक दृढ़ता से सबको चौंका दिया।

1969: कांग्रेस का विभाजन

इंदिरा गांधी ने पार्टी नेतृत्व से टकराव के बाद अपनी स्वतंत्र छवि बनानी शुरू की। जब उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ काम किया, तो पार्टी ने उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में निष्कासित कर दिया। इसके बाद कांग्रेस दो धड़ों में बंट गई — कांग्रेस (ओ) (संगठन) और कांग्रेस (आर) (इंदिरा समर्थक)।

1971: चुनाव जीत, फिर कानूनी चुनौती

इंदिरा गांधी ने “गरीबी हटाओ” के नारे के साथ चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से सरकार बनाई। लेकिन उनके खिलाफ रायबरेली से चुनाव लड़े राजनारायण ने चुनावी अनियमितताओं का आरोप लगाया और मामला अदालत पहुंचा।

1973-75: महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन

1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद देश आर्थिक संकट में घिर गया। महंगाई, बेरोजगारी और आवश्यक वस्तुओं की किल्लत ने आमजन का जीवन कठिन कर दिया। गुजरात और बिहार से छात्रों और नागरिकों ने सरकार विरोधी आंदोलनों की शुरुआत की, जिनका नेतृत्व जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने किया। उन्होंने ‘सम्पूर्ण क्रांति’ का आह्वान किया और इंदिरा सरकार से इस्तीफे की मांग की।

1975: इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनाव प्रचार में सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग का दोषी पाया। अदालत ने उनका चुनाव रद्द कर दिया और छह साल तक चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया।

इस फैसले से देश में राजनीतिक भूचाल आ गया। इंदिरा गांधी की वैधता पर सवाल उठे। जेपी आंदोलन और विपक्ष ने सरकार के खिलाफ आंदोलनों को तेज कर दिया।

25-26 जून 1975: आपातकाल की घोषणा

24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा को प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति दी, लेकिन सांसद के रूप में कार्य करने पर रोक लगा दी। इसी के बाद 25 जून की रात इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने का निर्णय लिया। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने उनकी सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा कर दी।

26 जून की सुबह इंदिरा गांधी ने रेडियो पर राष्ट्र को संबोधित किया और कहा कि देश की “आंतरिक सुरक्षा” खतरे में है, इसलिए आपातकाल जरूरी है।

1976: जबरन नसबंदी और जनता का आक्रोश

आपातकाल के दौरान संजय गांधी को उभरती सत्ता शक्ति के रूप में देखा गया। उन्होंने जबर्दस्ती नसबंदी का अभियान चलाया, जिसमें लाखों पुरुषों की मर्जी के खिलाफ नसबंदी की गई। इससे देशभर में जनाक्रोश और असंतोष फैल गया।

1977: आपातकाल की समाप्ति और कांग्रेस की हार

लगातार बढ़ते जन दबाव और अंतरराष्ट्रीय आलोचना के बीच इंदिरा गांधी ने 18 जनवरी 1977 को लोकसभा चुनाव कराने की घोषणा की। इस चुनाव में जनता पार्टी की ऐतिहासिक जीत हुई और इंदिरा गांधी को सत्ता गंवानी पड़ी।

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