चलो फिर से अयोध्या नगरिया” भजन की कल्पना कैसे हुई? क्या इसके पीछे कोई विशेष प्रेरणा या अनुभव जुड़ा है?

Ayodhya : जब अयोध्या में प्रभु श्री राम के मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई थी तब मेरे मन में जो भाव उठे थे उस पर मैने एक भजन लिखा था और उसे गाया भी था पधारे फिर से मेरे राम । वो भजन लोगो ने पसंद किया । अभी जब श्रीराम मंदिर में राम दरबार की प्राण प्रतिष्ठा हुई तो वो भाव फिर जागृत हो गया जिसका परिणाम इस भजन के रूप में आप के सामने है ।

2. आप भजनों के चयन के लिए कौन से मानक अपनाते हैं संगीत, भाव या संदेश?

भजन एक भक्त के अंतरात्मा की आवाज होती है । जिसमें सबसे महत्वपूर्ण भाव होता है । तुलसीदासजी कहते है कि जैसी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी । संगीत सृष्टि की हर रचना में समाया हुआ है जल , वायु , जीव , नदियां, पर्वत। जब संगीत आध्यात्मिकता से जुड़ता है तो वह एक मौन दिव्य शक्ति में परिवर्तित हो जाता है। जो मन के भाव के रूप में दिखाई या महसूस होती है। तो मेरे लिए भाव सबसे महत्वपूर्ण है ।

3. टी-सीरीज़ जैसे बड़े लेबल के साथ काम करना आपके लिए कितना प्रेरणादायक अनुभव रहा?

    निश्चित रूप से टी सीरीज भक्ति का सबसे बड़ा चैनल है जिससे जुड़ना अत्यंत रोमांचक है । टी सीरीज के माध्यम से भक्ति भाव श्रोताओं तक आसानी पहुंच सकते है । जो किसी भी कलाकार के लिए प्रेरणादायक है । मेरे इस वर्ष 10 भजन टी सीरीज पर रिलीज हुए हैं ।मेरे लिए भी टी सीरीज के साथ जुडकर कार्य करना आनंददायक है ।

    4. क्या आप मानते हैं कि सोशल मीडिया ने भक्ति संगीत को नई पीढ़ी तक पहुँचाने में बड़ा योगदान दिया है?

    हां , आज सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां पर आपकी बात , भाव , संगीत लोगो तक आसानी से पहुंच जाते है । पहले भक्ति संगीत केवल उम्रदराज लोगों तक सीमित था । आज इसे युवा पीढ़ी न केवल पसंद कर रही है साथ ही उसकी भागीदारी भी बढ़ रही है । सनातन धर्म के प्रति आस्था , विश्वास और जागरूकता भी तेजी से बढ़ी है । इसमें भक्ति संगीत उत्प्रेरक का कार्य करते है । और लोगो तक विशेषकर युवा पीढ़ी में भक्ति संगीत के प्रति लगाव में सोशल मीडिया का योगदान सबसे ज्यादा है ।

    5. भक्ति संगीत में भावनाओं और सुरों का संतुलन बनाए रखना कितना चुनौतीपूर्ण होता है?

      मेरा मानना है कोई भी संगीत बिना भाव और सुर के संतुलन के बिना आकार नहीं ले सकता । यदि भाव स्पष्ट है , हृदय की गहराइयों तक है , सुर अपने आप ही ढल जाते है । हे मेरे राम भजन में एक अंतरा मैने रिकार्डिंग के समय ही लिखा और गाया जो सबसे ज्यादा पसंद भी किया गया ।

      6.भविष्य में क्या आप फिल्मी संगीत में भी कदम रखने का विचार रखते हैं, या भक्ति संगीत ही आपका केंद्र रहेगा?

        संगीत एक माध्यम है अपने भावों को लोगो तक पहुंचाने का । बॉलीवुड में भी भक्ति का संगीत होता है । ऐसे में एक सिरे से खारिज करना तो मुश्किल है पर मेरा सर्वप्रथम ध्यान भक्ति संगीत की तरफ ही रहेगा ।

        7. आपकी राय में आने वाले वर्षों में भक्ति संगीत का स्वरूप किस दिशा में बढ़ रहा है?

          हमारे सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति ॐ या नाद से हुई है जिसे नाद ब्रह्म भी कहते हैं । संगीत ब्रह्माण्ड के कण कण में विद्यमान है और सभी पंच तत्वों में व्याप्त है ।जब इन पांच तत्वों की ध्वनियां एक लय, ताल में मिलती है, तो मानव शरीर का सृजन होता है । इसलिए कोई भी संगीत से अछूता नहीं रह सकता।
          इधर कुछ वर्षों में लोगो की आस्था ने एक नया स्वरूप लिया है और भक्ति संगीत उस आस्था और विश्वास को प्रदर्शित करने का माध्यम बन गया है । आज लगभग परिवार की सुबह भक्ति संगीत से ही होनी लगी है । तो निश्चित रूप से ये एक नई दिशा का आगाज है ।

          8. युवा गायकों के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे जो भजन संगीत में करियर बनाना चाहते हैं?

            मैं उन्हें कहना चाहूंगा कि जो भी करे पूरे मनोयोग से करे , रम जाए उसी में । अच्छे कर्म का फल हमेशा ही अच्छा मिलता है ।

            9 .आगामी दिनों में आपकी क्या कार्य योजना है ?

              अभी वर्तमान में ही टी सीरीज पर ही मेरा नया गीत धर्म ध्वजा मेरे साथ थाम लो रिलीज होने वाला है । इसके साथ ही रामचरितमानस के प्रसंगों पर कुछ कार्य कर रहा हूं जो जल्दी ही श्रोताओं को प्रस्तुत करूंगा । इसके साथ ही मैं एक लेखक भी हूं तो कुछ नई पुस्तकों पर भी कार्य कर रहा हूं ।

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