कैसे एक अखबार की खबर ने बदल दी ईरान की तक़दीर? जानिए इस्लामिक क्रांति की शुरुआत

ईरान और इजरायल के बीच जारी युद्ध के बीच दुनिया एक बार फिर उस ऐतिहासिक मोड़ को याद कर रही है, जब ईरान एक आधुनिक, महिला-समर्थक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र से एक इस्लामिक गणराज्य में तब्दील हो गया था। यह बदलाव अचानक नहीं हुआ, बल्कि एक ऐसी क्रांति का नतीजा था, जिसने एक पूरे देश की पहचान, विचारधारा और भविष्य को बदल दिया।

एक अखबार की खबर और भड़की चिंगारी

6 जनवरी 1978 को ईरान के अखबार ‘इत्तलात’ में छपी एक खबर ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। खबर में अयातुल्लाह रुल्लाह खुमैनी को ब्रिटिश एजेंट बताया गया, जिस पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। प्रदर्शन हुए, पुलिस ने फायरिंग की, और 20 लोग मारे गए। यही बनी इस्लामिक क्रांति की पहली चिंगारी।

जब ईरान था एक मॉडर्न देश

रेजा शाह पहलवी और उनके बेटे मोहम्मद रेजा पहलवी के नेतृत्व में ईरान एक प्रगतिशील देश बन रहा था:

  • महिलाओं को पढ़ाई, नौकरी और वोटिंग का अधिकार मिला था।
  • हिजाब पर पाबंदी और वेस्टर्न ड्रेस की अनुमति थी।
  • 1963 में महिलाओं को चुनाव लड़ने का अधिकार मिला।
  • शिक्षा, स्वास्थ्य, और औद्योगीकरण पर ज़ोर दिया गया।

फिर आया असंतोष और क्रांति

मगर विकास के साथ-साथ गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई भी बढ़ने लगी। अमीर-गरीब की खाई चौड़ी हो गई। इसी बीच खुमैनी एक नए नायक के रूप में उभरे। उन्होंने अमेरिका-ईरान की दोस्ती और सैनिकों को मिली छूट पर सवाल उठाए, जिससे जनता और धर्मगुरुओं का साथ मिला।

खुमैनी की वापसी और इस्लामी गणराज्य का जन्म

14 साल तक भूमिगत रहने के बाद 1979 में खुमैनी ईरान लौटे। मोहम्मद रेजा शाह देश छोड़ चुके थे।
जनता और सेना का समर्थन मिलते ही खुमैनी ने जनमत संग्रह कराया, जिसमें 98% लोगों ने इस्लामी गणराज्य को समर्थन दिया।
दिसंबर 1979 में नया संविधान बना, और खुमैनी को सुप्रीम लीडर घोषित किया गया।

महिलाओं पर सबसे बड़ा असर

इस्लामी गणराज्य बनने के बाद सबसे अधिक असर महिलाओं पर पड़ा:

  • हिजाब अनिवार्य कर दिया गया।
  • शादी की उम्र घटा दी गई
  • पढ़ाई और प्रोफेशनल करियर में रोक लगी।
  • महिलाएं केवल घरेलू भूमिकाओं तक सीमित कर दी गईं।

अमेरिकी दूतावास पर कब्जा और वैश्विक टकराव

इसी साल ईरानी प्रदर्शनकारियों ने तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास पर कब्जा कर लिया और 52 अमेरिकी राजनयिकों को बंधक बना लिया। यहीं से अमेरिका और ईरान के रिश्तों में गहरी खटास आ गई, और ईरान-इजरायल दुश्मनी की नींव मजबूत हो गई — जो आज भी जारी है।

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