
केजीएमयू ने फेफड़ों की दुर्लभ बीमारी के जटिल इलाज में रचा इतिहास
लखनऊ। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर राजीव गर्ग व उनकी टीम ने एक कठिन चिकित्सा प्रक्रिया होल लंग लेवेज अर्थात फेफड़ों की पूर्ण धुलाई करके बस्ती जिला निवासी अनिरुद्ध को पलमोनरी एल्वियोलर प्रोटीयेनोसिस यानी पीएपी नामक दुर्लभ बीमारी से बचाकर जीवन दान दिया। यूनिवर्सिटी में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में मेडिकल सुपरीटेंडेंट व जनरल सर्जरी के प्रोफेसर सुरेश कुमार ने बताया कि केजीएमयू के इतिहास में एक कीर्तिमान बना, जब मुंबई में घरों में पत्थर व टाइल्स लगाने का काम करने वाले अनिरुद्ध (उम्र 40 वर्ष) को इस बड़ी गंभीर बीमारी से निजात दिलाने में हमारे विशेषज्ञों की टीम सफल हुई। उन्होंने कहा कि 15 साल से अपने उक्त पेशे में मुंबई में रहने वाले बस्ती के मूल निवासी अनिरुद्ध को गत फरवरी में मुंह व नाक से खून का रिसाव हुआ और फिर सांस लेने में गंभीर समस्या होने लगी। रिश्ते में एक शादी में बस्ती आए अनिरुद्ध ने जब जिला अस्पताल में दिखाया तो वहां के डॉक्टर ने जांच के बाद रोग तो पहचान लिया लेकिन यह भी कहा कि किसी बड़े शहर में जाकर किसी बहुत अच्छे हॉस्पिटल में दिखाना होगा।
अंततः अनिरुद्ध ने लखनऊ आकर केजीएमयू के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग में खुद को दिखाया, जहां प्रो. राजीव गर्ग ने सारी जांच कराकर इस बड़ी चुनौती को स्वीकार लिया और अनिरुद्ध को भरती कर लिया, जहां यूनिट 2 में उन्हें डॉ एस के वर्मा व डॉ आनंद श्रीवास्तव की सहायता मिली। इसके बाद इस मरीज को लेकर शोध, अध्ययन व परीक्षणों आदि का गहन दौर शुरू हुआ। सांस की तकलीफ, सूखी खांसी के बीच लगभग 15 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन की आवश्यकता भी थी। पहले तो मरीज को हाई फ्लो नेजल ऑक्सीजन व सहायक उपचार दिया गया और वृहद डायग्नोस्टिक जांच शुरू की गई । जांच में दोनों फेफड़ों में यह रोग पूरी तरह फैला हुआ दिखाई दिया। इसके लिए मरीज को ब्रोंको एल्वियोलर लवेज की प्रक्रिया की गई तो पीएपी रोग की पुष्टि हुई। इस गंभीर बीमारी के निदान की प्रक्रिया भी बहुत गंभीर व संवेदनशील थी और बड़ी बात यह थी कि इसे कभी भी विश्वविद्यालय के इतिहास में कभी किसी ने किया ही नहीं था। लेकिन प्रोफेसर राजीव गर्ग ने इस चुनौती को स्वीकारा और इसके लिए अन्य सभी संबंधित कुशल विशेषज्ञों से वार्ता करके टीम बनाकर इसकी चिकित्सा करने का निर्णय लिया। हालांकि इसमें जटिलताएं बहुत सी थीं और एक बड़ी चुनौती थी कि रोगी के दोनों फेफड़ों में वेंटीलेशन बनाए रखा जाए, जिसे एनेस्थीसिया की डॉ शेफाली गौतम ने स्वीकारा।
इसके बाद 13 जून को दाएं फेफड़े की धुलाई और 7 जुलाई को बाएं फेफड़े की धुलाई की गई। इस पूरी प्रक्रिया को रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के डॉ राजीव गर्ग, डॉ आनंद श्रीवास्तव व उनके रेजिडेंट डॉक्टर्स की टीम तथा एनेस्थीसिया की डॉ शेफाली गौतम, डॉ विनीता सिंह, डॉ कृतिका यादव, डॉ राहुल, डॉ मोनिका कोहली व उनके रेजिडेंट डॉक्टर की टीम तथा जनरल सर्जरी के प्रो सुरेश कुमार, जो कि मेडिकल सुपरिंटेंडेंट भी हैं, ने मिलकर सफलतापूर्वक संपन्न किया।
केजीएमयू के लिए गौरव की बात यह रही कि स्वस्थ हो रहे मरीज अनिरुद्ध को गुरुवार को पत्रकारों से मिलवाया गया, जिसे आयुष्मान योजना का लाभ मिला और शत-प्रतिशत इलाज निशुल्क हुआ। प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस दुर्लभ बीमारी के बारे में बताया गया कि इसके होने का कारण आज भी अज्ञात है लेकिन धूल व रसायनों के लंबे समय तक संपर्क में आने से इस रोग के हो जाने की संभावना होती है, जिससे फेफड़ों की वायु कोशिकाओं में चिपचिपा प्रोटीन और फैट जमा हो जाता है और मरीज को सांस लेने में कठिनाई महसूस होने लगती है। यह तेजी से फेफड़ों को ब्लॉक करता चला जाता है लेकिन केजीएमयू ने जिस तरह इस रोग की चिकित्सा की है, उससे इस रोग के उपचार का मार्ग प्रशस्त और सुगम हुआ है।