पर्वतीय प्रदेशों के लिए मिसाल है हिमाचल का विकास मॉडल

संजय शर्मा

पहाड़ी राज्यों के लिए है रोल मॉडल है विकास की चोटियां फतह करता हिमाचल

इस साल 25 जनवरी को अपने गठन के 50 वर्ष पूरे करने वाले हिमाचल ने अपने पांच दशक की यात्रा में असंख्य चुनौतियों को पार करते हुए विकास के सूचकांकों की कई चोटियां फ़तह की हैं। वैश्विक कोरोना महामारी के बावजूद इस पहाड़ी राज्य ने विभिन्न क्षेत्रों में विकास के नए आयाम स्थापित किए और सीमित संसाधनों के बावजूद यह राज्य तेज़ी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। पावर सरप्लस राज्य हिमाचल के हर गांव में बहुत पहले ही बिजली पहुंच चुकी थी। अब मौजूदा सरकार हर घर तक नल से जल पहुंचाने का बड़ा लक्ष्य भी हासिल करने जा रही है। आंकड़ों के लिहाज से हिमाचल के अब तक के सफ़र को देखें तो यह साफ़ है कि यह पहाड़ी राज्य देश के अन्य पहाड़ी राज्यों के लिए विकास का मॉडल बनकर उभरा है। 1971 में हिमाचल में प्रति व्यक्ति आय 651 रुपये थी जो आज बढ़कर 2 लाख 1 हज़ार 854 रुपये है। यह राष्ट्रीय स्तर पर अनुमानित प्रति व्यक्ति आय से 51 हज़ार 528 रुपये अधिक है। हिमाचल प्रदेश को 25 जनवरी 1971 को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हुआ था। उस समय हिमाचल में केवल 10 जिले हुआ करते थे जिनकी संख्या आज 12 है। जिला मुख्यालयों के बाद उपमडंल महत्वपूर्ण प्रशासनिक इकाई मानी जाती है। इनकी संख्या भी बीते 50 वर्षों में 34 से 78 हो गई है। वर्तमान सरकार में ही करीब 10 नए उपमंडल बनाए गए हैं ताकि पहाड़ी इलाकों के लोगों को विभिन्न कार्यों के लिए लंबा सफर न तय करना पड़े। इससे सरकार को विभिन्न योजनाओं को लागू करने और उनकी मॉनीटरिंग करने में भी सुविधा हो रही है।

सड़कों का जाल
हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में सड़कों को भाग्य रेखा कहा जाता है। यहां सड़क निर्माण एक उपलब्धि भी है और चुनौती भी। ऐसा इसलिए, क्योंकि मैदानी इलाकों में जितना समय, पैसा और श्रम एक किलोमीटर सड़क के निर्माण में लगता है, पहाड़ी राज्य होने के कारण उसकी लागत हिमाचल में दोगुनी से तिगुनी तक हो जाती है। पूर्ण राज्य बनने से पहले हिमाचल में सड़कों की लंबाई 10 हज़ार 617 किलोमीटर थी जो आज 37 हज़ार 808 किलोमीटर पहुंच गई है। इसमें भी मौजूदा सरकार के सवा चार साल के कार्यकाल में, वैश्विक कोविड महामारी के बावजूद 3 हज़ार 795 किलोमीटर सड़कों का निर्माण हुआ है जो पिछली सभी सरकारों के पांच साल के कार्यकाल से में बनी सड़कों से कहीं अधिक है। कोविड महामारी के इतने बड़े वैश्विक संकट के बावजूद हिमाचल ने कई क्षेत्रों बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है, जिसका दूसरे पहाड़ी राज्य भी अनुसरण कर सकते हैं। हिमाचल में स्वास्थ्य सुविधाओं के ढांचे पर बेहतरीन काम हुआ है। इसका अंदाजा कोई राज्य इसी तरह लगा सकता कि पात्र आबादी को कोविड टीकाकरण की पहली और दूसरी डोज़ देने में हिमाचल प्रदेश देशभर में पहले स्थान पर रहा था जबकि हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियां इतनी आसान नहीं थी। एक और उदाहरण के तौर पर देखें तो हिमाचल प्रदेश के इतिहास में 7.63 लाख नल कनेक्शन लगे थे। उधर, जल जीवन मिशन के तहत बीते ढाई साल में ही हिमाचल प्रदेश में 8.35 लाख नए घरेलू नल कनेक्शन लगाए गए हैं।

सामाजिक सुरक्षा

इसी तरह कई क्षेत्र हैं जहां मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में बीजेपी शासित इस राज्य ने कई नए आयाम स्थापित किए हैं। विशेष तौर पर सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में किए गए काम और जरूरतमंदों वर्गों के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं को तो पहाड़ी ही नहीं, देश के अन्य राज्यों में भी अपनाया जा सकता है। जैसे कि केंद्र सरकार की आयुष्मान योजना के अतिरिक्त प्रदेश सरकार की ओर से चलाई गई हिमकेयर योजना के तहत सरकारी और निजी अस्पतालों में लोगों के लिए पांच लाख तक के निशुल्क इलाज की व्यवस्था की गई है। इसी तरह मुख्यमंत्री सहारा योजना के तहत जयराम सरकार ऐसे जरूरतमंद लोगों को हर महीने तीन हजार रुपये की आर्थिक सहायता दे रही है, जो किसी गंभीर बीमारी या हादसे के कारण जीवनयापन के लिए दूसरों पर निर्भर हो गए हैं। यह देशभर में अपनी तरह की इकलौती योजना है। यही नहीं केंद्र की बहुचर्चित उज्ज्वला योजना के अतिरिक्त प्रदेश सरकार की ओर से गृहणियों की सुविधा के लिए शुरू की गयी गृहणी सुविधा योजना के तहत निशुल्क गैस कनेक्शन दिए गए हैं। इसके अलावा बुजुर्गों का ख्याल रखते हुए मौजूदा सरकार ने वृद्धावस्था पेंशन की उम्र 80 से घटाकर 60 वर्ष  कर दी और पात्रता के लिए आय सीमा की शर्त भी समाप्त कर दी। हिमाचल की यह पहल विकसित देशों की उस व्यवस्था की ओर बढ़ा कदम है जहां किसी को भी बीमारी, वृद्धावस्था या अन्य कारणों से दूसरों पर निर्भर नहीं होना पड़ता।

आर्थिकी को बल

बागवानी और पर्यटन हिमाचल प्रदेश की जीडीपी में एक बड़ा योगदान देते हैं। शिमला, मनाली और धर्मशाला जैसे शहरों में विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा तेजी से विकसित हुआ है। यही कारण है हिमाचल प्रदेश में विदेशी और देशी पर्यटकों की आमद लगातार बढ़ रही है। इसके अलावा हिमाचल के उन अनछुए क्षेत्रों को भी पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया गया है। प्रदेश में पिछले चार सालों में हुए विकास के लिए हिमाचल को कई प्रतिष्ठित और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिले हैं। नीति आयोग के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में हिमाचल पहाड़ी राज्यों में पहले पायदान और देशभर में दूसरे स्थान पर रहा है। इसी तरह देश के 56 शहरों में हिमाचल की राजधानी शिमला भी अव्वल रह चुकी है।

गुड गवर्नेंस और खुशहाली

कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां पहाड़ी राज्यों में या तो हिमाचल प्रदेश प्रथम है या देश के अन्य राज्यों के मुकाबले पहली पंक्ति पर खड़ा है। गुड गवर्नेंस इंडेक्स में भी हिमाचल ने उत्तर-पूर्वी और पहाड़ी राज्यों में पहला स्थान हासिल किया। इसी इंडेक्स की पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड यूटिलिटीज कैटिगरी में भी हिमाचल ने उत्तर-पूर्वी और पहाड़ी राज्यों में पहला स्थान हासिल किया। 
इसी तरह, स्वास्थ्य, शिक्षा, बागवानी, कृषि आदि क्षेत्रों में भी प्रदेश के बेहतर प्रदर्शन के लिए हिमाचल को विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं एवं प्रतिष्ठानों द्वारा सम्मानित किया गया है। पारदर्शी शासन और बेहतर कानून व्यवस्था से लोगों के जीवन स्तर और खुशहाली में ही इजाफा नहीं हुआ है बल्कि  ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नस रैंकिंग में सुधार हुआ है। इन्वेस्टर्स मीट की दो ग्राउंड ब्रेकिंग सेरिमनी हो चुकी हैं जिससे हिमाचल में सैकड़ों उद्योगों के माध्यम से हजारों करोड़ का निवेश धरातल पर उतर रहा है। इससे आर्थिकी को तो बल मिलेगा ही, भविष्य में बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
पहाड़ी इलाकों की अपनी समस्याएं होती हैं लेकिन इनकी अपनी क्षमताएं भी होती हैं। जिस तरह से हिमाचल ने बागवानी, पर्यटन और ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी क्षमताओं की पहचान करके इन क्षेत्रों पर फोकस मेंकिया, इसी तरह अन्य पहाड़ी राज्य भी अपनी क्षमताओं को पहचानकर सीमित संसाधनों के बावजूद तेज़ी से प्रगति कर सकते हैं।

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