हिमाचल हाईकोर्ट ने रद्द की याचिका, कहा – दुष्कर्म – यौन शोषण मामलों में समझौता मान्य नहीं

शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दुष्कर्म और यौन शोषण से जुड़े मामले में आरोपी द्वारा दायर एफआईआर रद्द करने की याचिका खारिज कर दी। आरोपी ने यह याचिका शिकायतकर्ता के साथ कथित “सौहार्दपूर्ण समझौते” के आधार पर दायर की थी। न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की अदालत ने मामले की गंभीरता और समझौते की अस्पष्ट शर्तों को देखते हुए इसे कानून के शासन के खिलाफ माना। अदालत ने कहा कि ऐसे अस्पष्ट समझौते स्वीकार किए जाने पर आरोपी को उसके कथित अपराध के लिए लाभ मिल जाएगा, जो कानून के सिद्धांतों के विपरीत है।

शिकायतकर्ता ने 24 जुलाई 2023 को पुलिस थाना शाहपुर में आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 377, 354-सी, 506 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67, 67-ए तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1)(डब्ल्यू)(1)(2) के तहत मामला दर्ज कराया था।

याचिकाकर्ता ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 528 (पूर्व सीआरपीसी धारा 482) के तहत एफआईआर और उससे हुई कार्रवाई को रद्द करने की मांग की थी। याचिका में दावा किया गया कि शिकायतकर्ता (पीड़िता) ने आरोपी के साथ समझौता कर लिया है।

राज्य सरकार की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, पीड़िता ने आरोप लगाया कि आरोपी ने शादी का झांसा देकर उसका यौन शोषण किया, खुद को अविवाहित बताया, गलत नाम और पता दिया, और उसकी तस्वीरें व वीडियो बनाकर ब्लैकमेल किया। आरोपी ने पीड़िता को दो साल तक यौन शोषण किया और तस्वीरें व वीडियो वायरल करने की धमकी दी।

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 2014 और 2019 के फैसलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि हत्या, दुष्कर्म और डकैती जैसे जघन्य अपराधों में अभियोजन केवल पक्षों के बीच समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि दुष्कर्म जघन्य अपराधों की श्रेणी में आता है और ऐसे मामलों में धारा 528 के तहत शक्ति का प्रयोग सतही ढंग से नहीं किया जाना चाहिए।

अदालत ने समझौते की प्रामाणिकता पर संदेह जताया और इस बात पर संतुष्ट नहीं हुई कि शिकायतकर्ता ने पहले गंभीर आरोप लगाए थे और अब केवल “सौहार्दपूर्ण समाधान” का हवाला देकर मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहती। इन तथ्यों को देखते हुए अदालत ने याचिका खारिज कर दी।

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