Ganga Water : केंद्र ने संसद में पेश की सीपीसीबी की नई रिपोर्ट…कहा महाकुंभ के दौरान गंगा का पानी था नहाने योग्य

गंगा नदी की पानी की गुणवत्ता को लेकर छिड़े विवाद के बीच, केंद्र सरकार ने हाल ही में संसद में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक नई रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट के द्वारा सरकार ने यह दावा किया कि प्रयागराज में हुए महाकुंभ के दौरान त्रिवेणी संगम पर गंगा का पानी नहाने लायक था। इस बीच, सरकार ने यह भी जानकारी दी कि गंगा नदी की सफाई के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत 2022-2025 के दौरान कुल 7,421 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने लोकसभा में समाजवादी पार्टी के सांसद आनंद भदौरिया और कांग्रेस सांसद के सुधाकरन के सवालों के जवाब में यह जानकारी दी कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, गंगा नदी के पानी में सभी मानक तत्व जैसे पीएच, घुलित ऑक्सीजन (डीओ), जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी), और फेकल कोलीफॉर्म (एफसी) के औसत मान स्नान के लिए लायक सीमा के भीतर थे।

भूपेंद्र यादव ने बताया कि सीपीसीबी ने श्रृंगवेरपुर घाट से लेकर दीहाघाट तक और संगम नोज (जहां गंगा और यमुना का संगम होता है) सहित सात स्थानों पर सप्ताह में दो बार जल गुणवत्ता की निगरानी की थी। यह निगरानी 12 जनवरी से शुरू हुई और इसमें महाकुंभ के अमृत स्नान के दिन भी शामिल थे। रिपोर्ट में कहा गया कि इस निगरानी में 12 से 26 जनवरी 2025 तक का जल गुणवत्ता डाटा शामिल था, जिसे सीपीसीबी ने 3 फरवरी को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) को सौंपा।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि प्रयागराज में गंगा नदी की सफाई और पानी की गुणवत्ता में सुधार के लिए कई कदम उठाए गए थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ के लिए 10 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) स्थापित किए थे। इसके साथ ही सात जियोसिंथेटिक डिवाटरिंग ट्यूब (जियो-ट्यूब) का भी निर्माण किया गया था ताकि गंदे पानी को साफ किया जा सके। मेला क्षेत्र में 500 किलोलीटर प्रतिदिन (केएलडी) क्षमता वाले तीन पूर्वनिर्मित अस्थायी एसटीपी और 200 केएलडी की कुल क्षमता वाले तीन मल-गाद उपचार संयंत्र भी लगाए गए थे।

इसके अलावा, उत्तर प्रदेश जल निगम ने अपशिष्ट जल के उपचार के लिए उन्नत ऑक्सीकरण तकनीक का इस्तेमाल किया था। यह सुनिश्चित करने के लिए कि अनुपचारित जल गंगा में न जाए, जल निगम ने गंदे पानी को फिल्टर करने की तकनीकों का प्रयोग किया। श्रद्धालुओं के लिए मेला क्षेत्र में पर्याप्त शौचालय और मूत्रालयों की व्यवस्था की गई थी, साथ ही कूड़े के निपटान के लिए लाइनर बैग के साथ कूड़ेदान भी रखे गए थे।

हालांकि, 3 फरवरी को सीपीसीबी द्वारा एनजीटी को सौंपी गई रिपोर्ट में यह पाया गया था कि महाकुंभ के दौरान गंगा के पानी की गुणवत्ता स्नान के लिए मानक के अनुरूप नहीं थी। रिपोर्ट के अनुसार, फेकल कोलीफॉर्म की मात्रा 230 एमपीएन/100 मिलीग्राम से अधिक थी, जो निर्धारित मानकों के खिलाफ था। इसके बावजूद, सीपीसीबी ने 28 फरवरी को एनजीटी को सौंपी अपनी नई रिपोर्ट में सांख्यिकीय विश्लेषण का हवाला देते हुए कहा कि महाकुंभ के दौरान पानी की गुणवत्ता स्नान के लिए उपयुक्त थी।

सीपीसीबी ने रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया कि अलग-अलग तारीखों और स्थानों पर एकत्र किए गए जल नमूनों के आंकड़ों में भिन्नताएँ थीं, जिनसे गंगा के समग्र जल की गुणवत्ता का सटीक रूप से मूल्यांकन नहीं किया जा सकता था।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने 23 दिसंबर को निर्देश जारी किया था कि महाकुंभ के दौरान गंगा और यमुना की जल गुणवत्ता की निगरानी नियमित अंतराल पर की जाए। इस प्रकार, सीपीसीबी की रिपोर्ट के बावजूद यह सवाल उठता है कि गंगा की जल गुणवत्ता के विभिन्न मानकों को लेकर सरकार और पर्यावरण संरक्षण के बीच मतभेद क्यों बने हुए हैं।

केंद्र सरकार की ओर से इस बात पर जोर दिया गया कि गंगा की सफाई के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के तहत 2022-25 के दौरान कुल 7,421 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

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