गांधी जयंती 2025: दक्षिण अफ्रीका से लौटे बापू ने बीएचयू में दिया था पहला क्रांतिकारी भाषण

New Delhi : 2 अक्टूबर 2025 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 156वीं जयंती पूरे देश में धूमधाम से मनाई जाएगी। गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को जन्मे मोहनदास करमचंद गांधी ने सत्य, अहिंसा और सादगी के सिद्धांतों को अपनाकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। इस दिन स्कूलों, कॉलेजों, कार्यालयों और समुदायों में भाषण, पोस्टर मेकिंग, स्वच्छता अभियान और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के जरिए बापू को श्रद्धांजलि दी जाएगी। गांधी जयंती न केवल उनके योगदान को याद करने का अवसर है, बल्कि उनके मूल्यों को आज के भारत में जीवित रखने का भी संकल्प है।

दक्षिण अफ्रीका से भारत की यात्रा: एक नई शुरुआत

1893 में 24 साल की उम्र में मोहनदास गांधी एक युवा वकील के रूप में दक्षिण अफ्रीका गए थे। वहां उन्होंने नस्लीय भेदभाव के खिलाफ सत्याग्रह का पहला प्रयोग किया और 22 साल बाद, 9 जनवरी 1915 को, एक अनुभवी और आत्मविश्वास से भरे नेता के रूप में भारत लौटे। उस समय भारत का सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका था। ब्रिटिश शासन के तहत देश की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित हो चुकी थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने देश के प्रमुख शहरों और कस्बों में अपनी शाखाएं स्थापित कर ली थीं। 1905-07 के स्वदेशी आंदोलन ने मध्यम वर्ग को एकजुट किया और बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे नेताओं को ‘लाल-बाल-पाल’ के रूप में लोकप्रियता दिलाई।

गांधीजी उस समय गोपाल कृष्ण गोखले और मोहम्मद अली जिन्ना को बेहद सम्मान देते थे। दोनों ही गुजराती मूल के थे और लंदन में प्रशिक्षित वकील थे। गोखले, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदारवादी नेता थे, गांधीजी के राजनीतिक गुरु बने। एनसीईआरटी की 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब ‘महात्मा गांधी और राष्ट्रीय आंदोलन’ के अध्याय 11 के अनुसार, गोखले ने गांधीजी को सलाह दी कि वे भारत लौटने के बाद एक साल तक देश का भ्रमण करें, ताकि वे भारतीय समाज, उसकी समस्याओं और लोगों की आकांक्षाओं को गहराई से समझ सकें। गांधीजी ने इस सलाह को माना और 1915 में भारत के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया, जिसने उनके भविष्य के आंदोलनों की नींव रखी।

बीएचयू में पहला भाषण: आजादी का उद्घोष

1916 में गांधीजी ने पहली बार सार्वजनिक मंच पर अपनी आवाज बुलंद की। यह अवसर था बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के उद्घाटन समारोह का, जो 6 फरवरी 1916 को आयोजित हुआ। इस समारोह में देश के बड़े राजा-महाराजा, दानदाता और कांग्रेस की दिग्गज हस्तियां जैसे एनी बेसेंट मौजूद थीं। बीएचयू की स्थापना में इन राजाओं और दानदाताओं का बड़ा योगदान था। गांधीजी ने इस मंच पर अपने पहले भाषण में भारतीय समाज के अभिजात वर्ग को आड़े हाथों लिया और गरीबों, विशेषकर किसानों की दुर्दशा पर जोर दिया।

उनका यह भाषण क्रांतिकारी था। उन्होंने कहा, भारत की मुक्ति तब तक संभव नहीं है जब तक आप अपने को इन दिखावटी अलंकरणों से मुक्त नहीं करते और इन्हें अपने देशवासियों की भलाई के लिए उपयोग नहीं करते। उन्होंने आगे जोड़ा, हमारे लिए स्वशासन का कोई अर्थ नहीं है जब तक हम किसानों से उनके श्रम का लगभग पूरा लाभ छीनते रहेंगे। हमारी मुक्ति केवल किसानों के माध्यम से ही संभव है। न वकील, न डॉक्टर, न ही जमींदार इसे सुरक्षित कर सकते हैं। यह भाषण न केवल उनकी विचारधारा का परिचय था, बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम में आम जनता, खासकर किसानों को केंद्र में लाने का पहला कदम था।

गांधी जयंती 2025: प्रेरणा और संदेश

2025 की गांधी जयंती पर देशभर में बापू के सिद्धांतों को याद किया जाएगा। स्कूलों में बच्चे उनके जीवन पर निबंध लिखेंगे, स्वच्छ भारत अभियान को बढ़ावा देने के लिए सफाई कार्यक्रम आयोजित होंगे, और उनके अहिंसा और स्वदेशी के विचारों पर चर्चाएं होंगी। गांधीजी का यह संदेश आज भी प्रासंगिक है कि सच्ची आजादी तभी संभव है जब समाज का हर वर्ग, विशेषकर सबसे कमजोर तबका, सशक्त और आत्मनिर्भर बने।

इस गांधी जयंती पर आइए संकल्प लें कि हम उनके सत्य, अहिंसा और स्वावलंबन के मार्ग पर चलकर एक समृद्ध और समावेशी भारत का निर्माण करेंगे। बापू के पहले भाषण की तरह, जो किसानों को केंद्र में रखता था, आज भी हमें समाज के सबसे निचले तबके की आवाज को सुनना और उसे मजबूत करना होगा।

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