
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति पद के विपक्षी उम्मीदवार जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी के खिलाफ माओवादी हिंसा के पीड़ितों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया है। बस्तर के कई पीड़ितों ने सांसदों को पत्र लिखकर सवाल उठाया है कि “क्या एक नक्सल समर्थक को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पदों में से एक पर बैठाना उचित है?”
पीड़ितों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सलवा जुडूम आंदोलन पर प्रतिबंध लगने से माओवादियों का आतंक और बढ़ गया। बस्तर में सैकड़ों निर्दोष आदिवासियों की हत्या हुई और हजारों लोग स्थायी रूप से घायल या अपंग हो गए।
चारगांव (कांकेर) के पूर्व उपसरपंच सियाराम रामटेके ने अपने पत्र में लिखा कि सलवा जुडूम बस्तर के आदिवासियों का अपना आंदोलन था, जो माओवादियों के खिलाफ खड़ा हुआ था। लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद माओवादियों ने इसमें शामिल ग्रामीणों को चुन-चुनकर मारना शुरू किया। रामटेके ने बताया कि खेत में काम करते समय उन्हें भी माओवादियों ने गोली मारी थी। वे किसी तरह बचे, लेकिन हजारों लोग इस फैसले की कीमत अपनी जान देकर चुकाए। उन्होंने सांसदों से अपील की कि “बस्तर की जनता को मरने के लिए छोड़ देने वाले जस्टिस रेड्डी” का समर्थन न करें।
इसी तरह सुकुमा के भीमापुरम निवासी अशोक गन्दामी ने भी सांसदों को पत्र लिखकर अपनी भतीजी मड़कम सुक्की की दर्दनाक कहानी साझा की। उन्होंने लिखा कि सलवा जुडूम बंद होने के बाद माओवादियों ने सुक्की के पिता की हत्या कर दी। बाद में माओवादियों द्वारा लगाए गए आईईडी की चपेट में आकर सुक्की का एक पैर उड़ गया।
गन्दामी ने कांग्रेस पर सवाल उठाते हुए कहा कि “आखिर पार्टी ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाकर क्या संदेश देना चाहती है, जिसके फैसले ने माओवादियों को मजबूत किया और निर्दोष आदिवासी परिवारों को बर्बाद कर दिया।”