संघर्ष से प्रेरणा तक: मथुरा के आशुतोष दीक्षित की डिजिटल क्रांति की कहानी

हर इंसान के जीवन में एक ऐसा मोड़ आता है जब उसे तय करना पड़ता है —
“अब मैं रुक जाऊँ या आगे बढ़ूँ।”
मथुरा के युवा आशुतोष दीक्षित ने उस मोड़ पर रुकने के बजाय एक नई राह बनाई।
जहाँ दूसरे लोग असफलता देखते थे, उन्होंने वहीं से सफलता की कहानी लिखी।
आज वे एक IT कंपनी चला रहे हैं, AI Tools बना रहे हैं, और भारतीय व्यवसायों को डिजिटल रूप से सशक्त करने के मिशन पर हैं।

एक अधूरी पढ़ाई, लेकिन अधूरा नहीं सपना

बचपन से ही आशुतोष को कंप्यूटर की दुनिया से गहरा लगाव था।
वे अक्सर कहते हैं —

“स्कूल में किताबों से ज़्यादा मैं कंप्यूटर स्क्रीन के साथ वक्त बिताता था।”

लेकिन जीवन हमेशा योजना के अनुसार नहीं चलता।
11वीं कक्षा में कुछ पारिवारिक परिस्थितियों के चलते उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
यह एक ऐसा समय था जब हर कोई उनसे पूछता था, “अब क्या करोगे?”
कई लोगों ने ताना मारा कि पढ़ाई के बिना कुछ नहीं हो सकता।

पर आशुतोष ने ठान लिया —
“डिग्री नहीं, ज्ञान ही असली ताकत है।”

उन्होंने खुद को रोकने के बजाय, इंटरनेट को अपना शिक्षक बना लिया।
फ्री ऑनलाइन कोर्स, यूट्यूब ट्यूटोरियल्स और endless कोशिशों से उन्होंने कोडिंग, वेबसाइट डेवलपमेंट और डिजिटल मार्केटिंग सीखी।

संघर्ष के दिन: ठोकरों ने सिखाया रास्ता बनाना

हर शुरुआत कठिन होती है —
आशुतोष के लिए भी थी।
कम उम्र के कारण लोग उन्हें गंभीरता से नहीं लेते थे।
कई क्लाइंट्स ने काम कराया लेकिन पेमेंट नहीं किया, कुछ ने कहा “बच्चा है, इसे क्या पता बिज़नेस क्या होता है।”

वो रातें जब वे कंप्यूटर के सामने बैठकर सोचते थे,
“क्या वाकई मैं सही दिशा में जा रहा हूँ?”
लेकिन हर सुबह एक नई ऊर्जा लेकर आती।
वो खुद से कहते —

“अगर मैं खुद पर विश्वास नहीं रखूँगा, तो दुनिया मुझ पर क्यों रखेगी?”

धीरे-धीरे उन्होंने छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स पर काम करना शुरू किया।
हर असफलता से कुछ नया सीखा और खुद को बेहतर बनाया।
उनका ये सफर बताता है कि कठिनाईयाँ रुकावट नहीं, तैयारी होती हैं।

खुद की IT कंपनी की नींव

कुछ सालों के अनुभव के बाद, उन्होंने अपनी खुद की IT Company की नींव रखी।
शुरुआत छोटे प्रोजेक्ट्स से हुई — वेबसाइट बनाना, सॉफ्टवेयर तैयार करना, और छोटे व्यापारियों को डिजिटल करना।
लेकिन उनके अंदर की सोच बड़ी थी।
वे सिर्फ कमाई नहीं, किसी बदलाव का हिस्सा बनना चाहते थे।

उन्हें एहसास हुआ कि भारत में लाखों छोटे व्यवसाय हैं जिनके पास मेहनत तो है, पर डिजिटल ज्ञान नहीं।
उन्होंने सोचा —
“अगर मैं अपने जैसे युवाओं और छोटे दुकानदारों को टेक्नोलॉजी से जोड़ दूँ,
तो भारत की अर्थव्यवस्था को एक नई उड़ान मिल सकती है।”

WaTrend: WhatsApp E-Commerce की भारतीय क्रांति

इस सोच से जन्म हुआ — WaTrend का।
एक ऐसा WhatsApp E-Commerce प्लेटफॉर्म जो व्यापारियों को सिर्फ एक ऐप के ज़रिए स्टोर बनाने, बेचने, पेमेंट लेने और ग्राहकों से बात करने की सुविधा देता है।

अब किसी छोटे व्यापारी को वेबसाइट या ऐप की जरूरत नहीं।
सिर्फ WhatsApp नंबर से ही वो “डिजिटल व्यापारी” बन सकता है।

आशुतोष मुस्कुराते हुए कहते हैं —

“हम नहीं चाहते कि टेक्नोलॉजी सिर्फ बड़े ब्रांड्स तक सीमित रहे।
मेरा सपना है कि हर छोटा दुकानदार भी कहे — ‘हाँ, मेरा भी ऑनलाइन स्टोर है।’”

WaTrend आज सिर्फ एक प्लेटफ़ॉर्म नहीं,
बल्कि “Digital Bharat” के उस आंदोलन का हिस्सा है जहाँ टेक्नोलॉजी सबकी पहुँच में है।

कम उम्र, बड़ा विज़न

कम उम्र में कंपनी चलाना आसान नहीं था।
कई बार टीम नहीं मिली, कई बार फंडिंग नहीं, और कई बार आत्मविश्वास डगमगाया।
लेकिन उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उन्होंने खुद सीखा कि कैसे टीम बनानी है, क्लाइंट्स से बात करनी है, और बिज़नेस को स्केल करना है।

वे मानते हैं —

“अगर आपके अंदर कुछ बदलने की आग है, तो दुनिया की कोई ताकत आपको रोक नहीं सकती।”

आज उनकी कंपनी न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों तक सेवा दे रही है।
उनके AI Tools सैकड़ों छोटे व्यवसायों के लिए Automation और Customer Engagement आसान बना रहे हैं।

विज़न: भारत के युवाओं में उद्यमिता की भावना जगाना

आशुतोष का मानना है कि भारत में शिक्षा प्रणाली को अब नई दिशा देने की ज़रूरत है।
स्कूलों में सिर्फ डिग्री पर नहीं, स्किल्स और बिज़नेस माइंडसेट पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

वे कहते हैं —

“हर बच्चा कुछ बन सकता है, अगर उसे सही समय पर सही दिशा मिले।
मेरा सपना है कि भारत के बच्चे कम उम्र में ही बिज़नेस और क्रिएटिविटी की सीख लें, ताकि वे भीड़ का हिस्सा नहीं, बदलाव का कारण बनें।”

उनका विज़न है — “हर भारतीय युवा को ‘नौकरी खोजने’ के बजाय ‘रोज़गार बनाने’ के लिए तैयार करना।”

खुद पर भरोसा ही सबसे बड़ा मौका है

आशुतोष का मानना है कि जीवन में सबसे बड़ा अवसर “मौका” नहीं, “खुद पर भरोसा” होता है।
वे कहते हैं —

“मौके की तलाश मत करो, खुद को मौका दो।
जिस दिन तुम खड़े हो गए और कहा ‘मैं कर सकता हूँ’, उसी दिन दुनिया बदलने लगती है।”

उनका यह संदेश उन सभी युवाओं के लिए है जो परिस्थितियों के कारण हार मान चुके हैं या डरते हैं कि बिना डिग्री के कुछ नहीं होगा।
उनका सफर इस मिथक को तोड़ता है कि “सफलता के लिए कॉलेज जरूरी है।”
वो बताते हैं — “डिग्री नहीं, दिशा मायने रखती है।”

आगे की राह: भारत को डिजिटल शक्ति बनाना

आज आशुतोष और उनकी टीम लगातार ऐसे AI Tools बना रहे हैं जो भारतीय व्यवसायों की असली ज़रूरतों को पूरा करते हैं —
चाहे वो कस्टमर मैनेजमेंट हो, पेमेंट ऑटोमेशन हो या WhatsApp से व्यापार बढ़ाना।

उनका लक्ष्य है — “हर भारतीय दुकान, हर छोटा व्यवसाय डिजिटल रूप से आत्मनिर्भर बने।”
वे मानते हैं कि भारत की असली ताकत गाँवों और कस्बों में है,
और अगर वही डिजिटल हो जाएँ, तो भारत तकनीकी रूप से किसी भी देश से पीछे नहीं रहेगा।

निष्कर्ष: प्रेरणा का दूसरा नाम — आशुतोष दीक्षित

आशुतोष दीक्षित की कहानी सिर्फ एक उद्यमी की सफलता नहीं,
बल्कि एक युवा की जिद्द, हिम्मत और भरोसे की कहानी है।
उन्होंने दिखा दिया कि जब सोच बड़ी हो,
तो पढ़ाई अधूरी नहीं — ज़िंदगी पूरी बन जाती है।

उनकी कहानी हर उस इंसान के लिए है जो किसी कारणवश रुक गया है।
उनका सफर कहता है —

“आपका अतीत आपकी पहचान नहीं, आपका हौसला है।”
“अगर रास्ता नहीं दिखे, तो खुद एक रास्ता बनाओ।”

मथुरा से शुरू होकर डिजिटल इंडिया तक पहुँची ये यात्रा इस बात की गवाह है कि
सपने सिर्फ देखे नहीं जाते — जीए जाते हैं।
और अगर आप में विश्वास है, तो एक दिन पूरा देश आपके कदमों की गूंज सुनेगा।

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