नेपाल से बांग्लादेश तक जेन-ज़ी सड़कों पर उतरकर दे रहे सरकारों को चुनौती…क्या आने वाला है कोई बड़ा तूफान

-एशिया के युवा असमानता और अन्याय के खिलाफ सड़कों पर उतरे

जकार्ता एशिया के अलग-अलग कोनों में, चाहे वह हिमालय की गोद में बसा नेपाल हो या फिर इंडोनेशिया हो यहां नई पीढ़ी अपनी आवाज बुलंद कर रही है। इस पीढ़ी को जेनरेशन-जेड यानी जेन-जी के नाम से जाना जाता है। 1995 से 2010 के बीच जन्मी पीढ़ी अब खुलकर सरकारों को चुनौती दे रही है। नेपाल से इंडोनेशिया, श्रीलंका से बांग्लादेश तक, एशिया के युवा असमानता और अन्याय के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। वे अन्याय को अपनी नियति के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नेपाल में भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन हो या इंडोनेशिया में भ्रष्टाचार और नीतिगत असंतोष के खिलाफ प्रदर्शन, जेन-जी का गुस्सा अब केवल चिंगारी नहीं, बल्कि एक ऐसी आग बन चुका है जो सरकारों को सोचने पर मजबूर कर रहा है। आखिर क्या है इस गुस्से की वजह? क्यों एशिया के युवा सत्ता के खिलाफ खड़े हो रहे हैं?
बता दें मंगलवार को नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली को दो दिनों के हिंसक प्रदर्शनों के बाद इस्तीफा देना पड़ा। यह प्रदर्शन सरकारी भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुआ था, जिसमें कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए थे। जेन-जी प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हुई झड़पों के बाद सरकार ने सोशल मीडिया बैन हटा लिया, लेकिन युवाओं का असंतोष कम नहीं हुआ। सेना ने हस्तक्षेप कर लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है।

जानकारी के मुताबिक नेपाल के युवा अपनी सरकार से नाराज हैं, जो उनकी समस्याओं से कटी हुई प्रतीत होती है। सोशल मीडिया उनके लिए अहम है, खासकर उस देश में जहां हर चार में से एक व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे है। ये प्लेटफॉर्म प्रवासियों से धन प्राप्त करने और अपनों से जुड़े रहने का जरिया है। फिलहाल नेपाल के युवाओं ने सरकार को उखाड़ फेंका है। अब वहां एक नए सवेरे की उम्मीद है। सूत्रों के मुताबिक अंतरिम सरकार के नेतृत्व के लिए समूह जिन नामों पर विचार कर रहा है, उनमें पूर्व प्रधान न्यायाधीश सुशीला कार्की, काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह और बिजली बोर्ड के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) कुलमन घीसिंग के नाम सामने आ रहे हैं। कार्की नेपाल के उच्चतम न्यायालय की प्रधान न्यायाधीश के रूप में सेवाएं देने वाली एकमात्र महिला हैं।

वहीं इंडोनेशिया में भी हालात इससे अलग नहीं हैं। अगस्त के अंत में, सांसदों को मिलने वाले भारी-भरकम आवास भत्तों के खिलाफ जनता सड़कों पर उतर आई है। ये भत्ते न्यूनतम मासिक वेतन से करीब 10 गुना ज्यादा थे। बढ़ती जीवन लागत से जूझ रही जनता के लिए यह भत्ते अस्वीकार्य थे। एक बाइक चालक की पुलिस वाहन से कुचलकर हुई मौत ने आग में घी डालने का काम किया। प्रदर्शनकारियों ने शीर्ष सांसदों के घरों में लूटपाट की, कारों को आग लगाई और सरकारी इमारतों को नुकसान पहुंचाया। यह दशकों में सबसे हिंसक प्रदर्शनों में से एक था। बढ़ते दबाव के बीच राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो ने भत्तों को वापस लिया और जवाबदेही का वादा किया। इस सप्ताह, देश के जाने माने वित्त मंत्री मुल्यानी इंद्रावती को हटा दिया गया, जिसे जनता के गुस्से को शांत करने की कोशिश माना जा रहा है।

ये प्रदर्शन देशों में हुए लेकिन इनके पीछे साझा शिकायतें हैं। इंडोनेशिया की आधी आबादी 30 साल से कम उम्र की है, जबकि नेपाल में यह आंकड़ा 56 फीसदी है। दोनों देशों में बेरोजगारी और बढ़ती आय असमानता युवाओं के लिए बड़ी समस्या है। ये प्रदर्शन दर्शाते हैं कि युवाओं की एकजुट कार्रवाई सरकारों को पीछे हटने पर मजबूर कर सकती है।

नेपाल और इंडोनेशिया के प्रदर्शन दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में एक बड़े पैटर्न का हिस्सा हैं। म्यांमार में भी युवाओं ने सत्ता के खिलाफ बगावत की है। पाकिस्तान तो दशकों से युवाओं के गुस्से की आग में जल रहा है लेकिन वहां के अनौपचारिक सैन्य शासन ने दमन के जरिए युवाओं के आक्रोश को कुचलने का काम किया है। कुल मिलाकर इन सभी आंदोलनों में एक बात समान है जेन-जी का नेतृत्व। ये युवा न केवल स्थानीय मुद्दों पर बोल रहे हैं, बल्कि वैश्विक मंचों पर भी अपनी बात रख रहे हैं। सोशल मीडिया ने उन्हें एक-दूसरे से जोड़ रखा है, जिससे वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने में पहले से कहीं ज्यादा सक्षम हैं।

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