नैनीताल । ‘हजारों जवाबों से अच्छी मेरी खामोशी’ कहने वाले देश के दो बार के प्रधानमंत्री पद्मभूषण पुरस्कार प्राप्त डॉ. मनमोहन सिंह का आज रात्रि 9 बजकर 51 मिनट पर 92 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। कम ही लोग जानते हैं कि डॉ. सिंह का नैनीताल जनपद व खासकर यहां हल्द्वानी से बहुत गहरा संबंध था। देश के विभाजन के दौरान उनका परिवार यहां रहा था। इस दुःखद अवसर पर डॉ. सिंह के हल्द्वानी से जुड़ाव की पूरी कहानी…
वर्ष 1947 में सिर्फ देश आजाद ही नहीं हुआ था बल्कि नक्शे पर भारत और पाकिस्तान नाम के दो देश भी बने। आजादी की लड़ाई की खूब चर्चा होती है लेकिन विभाजन का दंश जिसने झेला उसके दर्द को समझना उतना आसान नहीं। बंटवारे के बाद जो इधर आए या उधर गए, उन्हें बस एक नाम मिला ‘रिफ्यूजी’। इतिहास गवाह है, आजाद भारत में रिफ्यूजी कहे जाने वालों ने विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी के जो झंडे गाड़े वह अतुलनीय है। उन्हीं में से एक नाम है डॉ. मनमोहन सिंह।
इस बात पर कोई शक नहीं कि इस देश के सबसे काबिल अर्थशास्त्रियों में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का नाम शुमार है। देश की आम जनता हो या भारतीय राजनेता। पार्टी लाइन से हटकर भी डॉ. मनमोहन सिंह की खुले दिल से सभी प्रशंसा करते हैं। संघर्षों से भरे डॉ. सिंह के जीवन की कई रोचक बातें हैं, जिनसे आज भी बहुत लोग अनजान हैं।
‘फादर किल्ड, मदर सेफ’
भारत विभाजन से पहले डॉ. मनमोहन सिंह का परिवार पेशावर में रहता था। विभाजन के वक्त डॉ. मनमोहन सिंह की उम्र महज 14 साल थी। पेशावर में उनके पिता एक निजी कंपनी में साधारण से क्लर्क थे। विभाजन के दंगों में डॉ. मनमोहन सिंह के दादाजी की भी हत्या हुई थी। उस घटना को याद करते हुए डॉ. सिंह ने एक बार कहा था कि हमारे पिताजी को चाचा ने तब चार शब्दों का एक टेलीग्राम किया था। जिसमें लिखा था- “फादर किल्ड, मदर सेफ।”
विभाजन के वक्त मनमोहन हल्द्वानी में थे
आजादी के बाद उन दिनों भारत के विभाजन पर राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत चल रही थी। डॉ. मनमोहन सिंह के पिता ने देश विभाजन से दो-तीन महीने पहले ही उत्तर प्रदेश के हल्द्वानी शहर (अब उत्तराखंड) में बसने के विषय में सोच लिया था। हल्द्वानी में उनके पिता के व्यापार के चलते कुछ लोगों से संबंध थे। उन्हें उम्मीद थी कि वे लोग उन्हें यहां अस्थाई तौर पर बसने में मदद करेंगे। मई-जून के मध्य का महीना था। डॉ. मनमोहन सिंह का परिवार हल्द्वानी के लिए निकल पड़ा। अपनी इस यात्रा के बारे में डॉ. सिंह ने कहा था, “हम ट्रेन से लाहौर, अमृतसर, सहारनपुर, बरेली जैसे कई बड़े शहरों से होते हुए हल्द्वानी पहुंचे थे।”
विभाजन से पहले चले आए थे भारत
डॉ. मनमोहन सिंह की यह यात्रा भारत विभाजन की तारीख से कुछ महीनों पहले की थी। यही वजह थी कि मनमोहन और उनका परिवार बिना किसी ज्यादा परेशानी के हल्द्वानी पहुंच गए। उनके पिता ने अपने परिवार के लिए हल्द्वानी में रहने की अस्थाई व्यवस्था की और खुद फिर से नौकरी के लिए पेशावर लौट गए।
पिता के इंतजार में काठगोदाम स्टेशन पर बैठे रहते
दिसंबर 1947 तक का समय डॉ. मनमोहन सिंह के लिए काफी कठिन रहा। उन्होंने उस समय को याद करते हुए कहा है कि उन्हें नहीं पता था कि उनके पिता कहां और कैसे हैं। देश में हो रहे भयानक दंगों के बीच वह हर सुबह काठगोदाम रेलवे स्टेशन इस उम्मीद से जाकर बैठ जाते कि शायद आज आने वाली ट्रेन में उनके पिता भी हों। आखिरकार, पिता के लिए उनका ये इंतजार उस दिन खत्म हुआ जब शरणार्थियों के एक काफिले के साथ किसी तरह उनके पिता गुरुमुख सिंह भारत लौट आए। इस दौरान उनकी माता अमृत कौर ने मुश्किलों के बीच परिवार को संभाला।
परिवार अमृतसर में बस गया
हल्द्वानी आकर उन्होंने परिवार के साथ भारत में किसी नए काम की तलाश शुरू की। इसी क्रम में बाद में उन्होंने अमृतसर जाकर एक किराने की दुकान खोली। धीरे-धीरे एक बार फिर जीवन पटरियों पर लौट आया। यह अनसुनी कहानी मल्लिका अहलूवालिया की किताब ‘डिवाइडेड बाय पार्टीशन यूनाइटेड साइलेंस’ से ली गई है।
कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से की पढ़ाई
मनमोहन सिंह का जन्म ब्रिटिश भारत (वर्तमान पाकिस्तान) के पंजाब प्रांत में 26 सितंबर 1932 को हुआ था। उनकी माता का नाम अमृत कौर और पिता का गुरुमुख सिंह था। देश के विभाजन के वक्त मनमोहन सिंह का परिवार भारत चला आया था। बाद में इनका परिवार अमृतसर में बस गया। मनमोहन सिंह ने पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और तथा पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। बाद में वे कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी गए। वहां से उन्होंने पीएचडी की। बाद में उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से डी.फिल.किया। उनकी पुस्तक ‘इंडियाज एक्सपोर्ट ट्रेंड्स एंड प्रोस्पेक्ट्स फॉर सेल्फ सस्टेंड ग्रोथ’ भारत की अंतर्मुखी व्यापार नीति की पहली और सटीक आलोचना मानी जाती है।
शानदार रहा करियर
डॉ. मनमोहन सिंह ने अर्थशास्त्र के अध्यापक के तौर पर काफी प्रसिद्धि पाई। वे पंजाब यूनिवर्सिटी और बाद में प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर रहे। इसी बीच वे संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन सचिवालय में सलाहकार भी रहे। 1987 तथा 1990 में जेनेवा में साउथ कमीशन में सचिव भी रहे। 1971 में डॉ.मनमोहन सिंह भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किए गए थे। इसके तुरंत बाद 1972 में उन्हें वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया। बाद के वर्षों में वे योजना आयोग के उपाध्यक्ष, रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष भी रहे।
वित्त मंत्री के रूप में लिया क्रांतिकारी फैसला
भारत के आर्थिक इतिहास में हाल के वर्षों में सबसे महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब डॉ. सिंह 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री रहे। उन्हें भारत के आर्थिक सुधारों का प्रणेता माना गया। आम जनमानस में ये साल निश्चित रूप से डॉ. मनमोहन सिंह के व्यक्तित्व के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। डॉ. सिंह के परिवार में उनकी पत्नी गुरशरण कौर और तीन बेटियां हैं।
डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ाव:
– 1957 से 1965 तक चंडीगढ़ स्थित पंजाब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ।
– 1969 से 1971 तक दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के प्रोफेसर।
– 1976 में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में मानद प्रोफ़ेसर।
– 1982 से 1985 तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर।
– 1985 से 1987 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष।
– 1990 से 1991 तक भारतीय प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार।
– 1991 में नरसिंह राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री।
– 1991 में असम से राज्यसभा सदस्य।
– 1995 दूसरी बार राज्यसभा सदस्य।
– 1996 दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में मानद प्रोफ़ेसर।
– 1999 में दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए ।
– 2001 में तीसरी बार राज्यसभा सदस्य और सदन में विपक्ष के नेता ।
– 2004 में भारत के प्रधानमंत्री बने।इसके अतिरिक्त उन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक के लिए भी कई महत्वपूर्ण काम किया है।
– 26 दिसंबर 2024 को देहांत।