
देहरादून : उत्तरकाशी के धराली में 5 अगस्त को खेरा गाड (खीरगंगा) से आए करीब 2,50,885 टन मलबे ने भारी तबाही मचाई थी। हर्षिल क्षेत्र अब भी खतरे के घेरे में है। सचिव आईटी नितेश झा के निर्देश पर गठित वैज्ञानिक समिति ने इस आपदा पर पहली रिपोर्ट सौंप दी है।
यूकॉस्ट के महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत की अध्यक्षता में बनी इस समिति में आईआईआरएस और वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक भी शामिल थे। समिति ने लिडार सर्वे, एनडीआरएफ-एसडीआरएफ के ड्रोन सर्वे, सैटेलाइट स्टडी और स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की।
क्यों आई यह आपदा?
समिति के मुताबिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हुई अत्यधिक बारिश के कारण भूस्खलन बांध टूटा और मलबे का विशाल प्रवाह नीचे की ओर आया। इस दौरान कई जगहों पर छोटे पैमाने पर लैंडस्लाइड डेम आउटबर्स्ट फ्लड (LLOF) भी बने। वैज्ञानिकों ने साफ किया है कि यह आपदा जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ी बारिश का सीधा नतीजा है।
मलबे और भूस्खलन का पैमाना
- लिडार सर्वे में सामने आया कि धराली क्षेत्र में मलबे का फैलाव बढ़कर 0.151 वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गया है।
- इस मलबे का कुल भार करीब 2,50,885 टन आंका गया।
- 5000 मीटर ऊंचाई से शुरू हुआ मलबा 2570 मीटर तक पूरे वेग से नीचे आया।
- ताजा मलबा और खड़ी ढलानों के कारण प्रवाह और तेज हुआ।
बारिश का 124 साल का रिकॉर्ड
समिति ने बताया कि 1901 से 2024 के बीच इस क्षेत्र में मानसून सीजन की बारिश में 0.57 मिमी प्रति वर्ष की दर से बढ़ोतरी हो रही है। प्री-मानसून में भी वर्षा लगातार बढ़ रही है। इसी वजह से क्लाइमेट-इंड्यूस्ड डेब्रिस फ्लो (CIDF) की घटनाएं भविष्य में और बढ़ सकती हैं।
हर्षिल में भी खतरा
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि हर्षिल क्षेत्र भी पहाड़ी ढलानों पर बसा होने के कारण ऐसे खतरों की जद में है। यहां भी भविष्य में मलबे और भूस्खलन का जोखिम बना रहेगा।